V Aaradhya

Romance Tragedy Classics

4.6  

V Aaradhya

Romance Tragedy Classics

अपने काम से काम रखो

अपने काम से काम रखो

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रावी, प्लीज मुझे माफ कर दो। मुझसे गलती हो गई जो तुम्हें तकलीफ पहुँचाई। मैं आज भी तुमको ही प्यार करता हूँ!"

कुणाल ने रावी की स्कूटी के सामने खड़े होकर लगभग हाथ जोड़ दिए।

पर रावी अब पहलेवाली मासूम रावी नहीं थी जो कुणाल की चिकनी चुपड़ी बातों में आ जाती। उसने भी अपनी स्कूटी के सामने से कुणाल को हटाते हुए कहा,

"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई फिर से मुझसे बात करने की। बेहतर है अपने काम से काम रखो और मुझसे कोई पंगा मत लो !"

बोलते हुए रावी गुस्से से जैसे काँप रही थी। कौन कह सकता था कि एक दिन फिर से रावी कुणाल के प्रेम निवेदन को अस्वीकार करेगी। उसके साथ आशी भी थी पर अगर आज आशी नहीं भी होती तब भी रावी में इतनी हिम्मत थी कि वह कुणाल का सामना करके उसका प्रणय निवेदन ठुकरा सकती थी।

रावी एक कॉलेज में पढ़ने वाली बड़ी ही प्यारी सी लड़की थी। कुछ महिनों पहले तो वह हमेशा खुश रहती थी।उसकी ज़िन्दगी में मम्मी, पापा, छोटा भाई रोहन और चश्मिश किशमिश सी सहेली आशी ही थे और वह खुद भी ज़िन्दगी से भरी हुई एक प्यारी सी चिड़िया थी सुबह सुबह चहचहाने वाली और शाम तक खिलखिलाने वाली।

यूँ तो रावी बहुत चुलबुली थी मगर बेहद मासूम भी थी। अब तक प्यार के पचड़े से दूर अपने आप में मस्त।

उसके लिए प्यार का मतलब था अपने पापा से अपनी ज़िद पूरी करवाना और अपना सारा प्यार वो उन्हें अपने हाथ की चाय में अदरक कूटकर मिलाकर पिलाती और जो भी चाहिए होता माँग लेती।

और माँ... माँ तो उसे बहुत प्यारी थी और उनके साथ भी उसकी एक डील थी कि वो रोज़ उन्हें मोबाइल के नए नए एप्प सिखाकर उन्हें भी उनकी सहेली तारा की तरह ट्रेंड कर देगी जो एक एन. जी. ओ. में कार्यरत थी और अपने आपको बाकी घरेलू महिलाओं से एक बित्ता ज़्यादा समझती थी। बदले में माँ से जब तब नए फैशन के कपड़े दिलवाने की फरमाइश और किसी सहेली के बर्थड़े पार्टी से लौटते हुए देर हो जाए तो उसे पापा की डाँट से बचाना।

और उसका जो छठी कक्षा में पढ़ने वाला छोटा भाई रोहन है उसे रावी यूँ ही बहुत प्यार करती थी कोई डील नहीं।

यही थी आज से सात आठ महीने पहले रावी की अल्लमस्त दुनिया।

यह भी रोज़ की तरह का एक दिन था, रावी आज कुछ ज़्यादा ही बन संवरकर कॉलेज के लिए निकली थी। एक दिन पहले कॉलेज में डिबेट कम्पिटिशन में एडल्ट एज़ूकेशन पर विवाद में रावी जीत तो गई थी पर अपने अपोजिट खड़े कुणाल की गहरी आँखों से हार गई थी।

यह पहली बार था जब रावी का छोटा सा दिल बहुत ज़ोर से धड़का था। वापसी में जब वो अपनी सहेली आशी से बात करते हुए कोलेज़ से निकल रही थी,तभी उसने अपना नाम सुना, कोई कह रहा था।

"आपका नाम रावी है ना, वो कुणाल आपकी बहुत तारीफ कर रहा था।एक लड़का रावी से कह रहा था जिसे रावी अक्सर कुणाल के साथ देखा करती थी।

"अरे ! ये तो वही लड़का है जो आज कुणाल के बगल में बैठा था!" आशी ने रावी को बताया तो रावी ने उसे थोड़ा नज़रअंदाज़

सा करते हुए कहा,

"मैं रावी हूँ....तो ?"

"कुछ नहीं, कुणाल लाइक्स यू "

वह आपको बहुत पसंद करता है।

उस वक़्त तो रावी ने आशी के सामने उसे ज़्यादा भाव नहीं दिया पर फिर घर आकर पुरे समय वो दो गहरी आँखें उसे याद आती रही थी। और आज सुबह उठते ही ड्रेस का सलेक्शन करने में पापा की लाडली उनको अपने हाथ वाली अदरक की चाय देना भूल गई। जब पापा ने याद दिलाया तो हड़बड़ी में बनाकर दे तो दिया पर उसमें वैसी मिठास नहीं थी,रोजवाली।

खैर, आज कोलेज़ में रावी की नज़रें कुणाल को ढूंढ़ रही थी और जब वो दिखा, पीली टी. शर्ट में बहुत डैशिंग लग रहा था। वो "हैलो" कहते हुए सामने आया तो रावी की चँचल आँखें उसको देखकर शरमा गई।

फिर धीरे धीरे मोबाइल नंबर एक्सचेंज करने के बाद घंटो बातें होने लगी। अब रावी को माँ को मोबाइल सीखाना बोरिंग लगता, पढ़ाई के बहाने से कमरे में जाकर बातें ही बातें कुणाल से।

कुणाल का जादू रावी के सर चढ़कर बोलने लगा था।

अब रावी के लिए ख़ुशी के मायने जैसे बदल गए थे। अच्छी ड्रेस से ख़ुश हो जानेवाली, पापा के साथ चाय पीकर ख़ुश होनेवाली रावी, भाई को होमवर्क में मदद करके खुश हो जानेवाली रावी आशी के साथ मस्ती करनेवाली रावी अब अपनी ख़ुशी कहीं और तलाश करने लगी थी। खो गई थी चुलबुली रावी किसी झूठे प्रेमजाल में।

रावी के लिए अब उसकी ख़ुशी की वजह कुणाल था और सिर्फ कुणाल। उससे जब तक बात होती रावी चहकती रहती, फिर उसके बारे में सोच सोचकर सो जाती दिन सुनहरे से हो गए थे।

रावी को मोहब्बत हो गई थी और उसकी खुशियों की तलाश कुणाल तक आकर खत्म हो गई थी।

अब दिनों हो जाते, पापा को रावी के हाथ की प्यारीवाली चाय नहीं मिल पाती और माँ को मोबाइल सिखाना तो पहले ही बोरिंग लगने लगा था, उसका चिढ़ना देखकर माँ अब रोहन से सीखने लगी थी।

रावी और कुणाल की मुलाकातें जब कॉलेज कैंटीन की कॉफी से लेकर शाम को पार्क और रेस्तरां में और कभी कभी कुछ ज़्यादा शाम तक होने लगी तो माँ पापा से डाँट पड़ने लगी। तो रावी की तरफ से फलां सहेली का बर्थडे है तो पार्टी है, जैसे बहाने बनाए जाने लगे,और शामें कुणाल संग गुजरने लगी।

अब जैसे कि...जीवन परिवर्तनशील है ,जो आज है वो कल वैसा ही कहाँ रहता है? तो अब कुणाल के फोन दिन ब दिन कम होने लगे। रावी पूछती तो वही बहाना कि व्यस्त हूँ, या सो गया था।

अब कुणाल किसी और लड़की तान्या के साथ घूम रहा था। और रावी को बहुत इग्नोर करने लगा था।

वो जितना दूर जाता रावी उसे पाने के लिए और कोशिश करती।एक दिन उसने रावी को फोन पर ब्लॉक कर दिया तो रावी से दो दिन तक कुछ खाया पिया ही नहीं गया।

अपने आप में मस्त रहनेवाली रावी जैसे खुद को खोती जा रही थी।

कुणाल से रिजेक्शन के बाद रावी को अपने आप में ही गलतियाँ नजर आने लगी थी।

अब ज़्यादातर रावी उदास अपने कमरे में पड़ी रहने लगी।

अपनी सारी खुशियाँ उसने कुणाल से जोड़ ली थी।

और कुणाल......?

वह तो रावी से मन ऊब जाने के बाद अन्य लड़कियों के साथ घूमने लगा था। रावी अभी भी कुणाल में दोष ना देखकर खुद को ही कमतर मानती थी।उसका आत्मविश्वास डोल गया था।

उसकी सहेली आशी बहुत समझाती कि, किसी के प्यार में खुद को खो देना ठीक नहीं।पहले तो रावी शून्य में देखने लगती फिर रोने लगती।

कुछ दिन बाद आशी ने देखा रावी सिर्फ कुणाल का ही नाम लेती है और उसके अलावा कुछ और उसे खुश नहीं कर सकते तो उसने कुणाल से बात की तो वह रावी का मज़ाक बनाते हुए बोला, "शी इज़ जस्ट इमोशनल फूल !"

अब आशी अपनी सहेली रावी के प्रति बहुत गंभीर हो गई और उसने रावी के मम्मी पापा से भी अकेले में बात की।उन्होंने निर्णय लिया कि, कैसे भी करके रावी को इस जाल से बाहर निकालना ही होगा। बाद में उन्होंने रोहन को भी साथ कर लिया।

सबने एकमत होकर सोचा, रावी को अकेले छोड़ना ही नहीं है, कोई ना कोई हमेशा उसके साथ रहता, उसका ध्यान कुणाल से हटाने की कोशिश की जाती।

माँ ने जब सुना तो समझाया,

"बेटा, यूँ किसीके प्यार में खुद को मिटाना सही नहीं और खुद को पहले प्यार करो!"

तो पहले रावी खाली खालीआँखों से उनको देखती रही फिर अपनी मम्मा से लिपटकर जोर से रो पड़ी और रोते रोते बोलती जाती,

"मम्मा, आज भी उसका फ़ोन नहीं आया, आज का दिन भी उदास कर गया मुझे "

उसकी रुलाई और टूटन देखकर माँ का कलेजा जैसे मुँह को आ गया।अपनी नटखट गुड़िया को इस हालत में देखकर उनका मन जोर से रो पड़ा।पर प्रकट में खुद को भरसक संयत रखते हुए वो रावी को ढांढस बढ़ाती रही। धीरे धीरे रावी माँ की बात मानने लगी थी और माँ अपनी लाडो पर जी जान से न्योछावर हो जाती।

पापा और भाई भी अक्सर रावी के साथ बने रहते. धीरे धीरे उसे फिर ज़िंदगी की तरफ मोड़ने लगे।

माँ मोबाइल पर गूगल करती कि ब्रेक अप के बाद कैसे बाहर निकले।फिर रावी का बहुत ख्याल रखती। कोई उसे ताने नहीं देता।उसे शॉपिंग ले जाती माँ, बेडमिंटन खिलाते अपने साथ पापा।

भाई रोनित जानबूझकर उससे अपने होमवर्क के प्रश्न को ना समझने का एक्टिंग करता तो रावी मुस्कुरा पड़ती।

धीरे धीरे रावी की मुस्कुराहट वापस लौटने लगी थी।

सुबह चिड़ियों की चहचहाट के साथ उठने लगी, पापा की चाय की मिठास फिर से पहले की तरह हो गई।

माँ, पापा और रोनित और उसकी प्यारी सखी आशी के अथक परिश्रम से रावी अवसाद से बाहर आने लगी थी। अपनों का प्यार साथ हो तो भला उससे ख़ुशी दूर कैसे रह सकती थी. अबके रावी की खुशियों की तलाश अपनों की ख़ुशी तक आकर सिमट गई थी।

पापा अपनी चहचहाती चिड़िया को बहुत प्यार करते और माँ उसे गले से लगाकर सुलाती।

रावी ने माँ की ममता को सर आँखों पर रखा और पापा की नसीहत को बड़े ध्यान से सुनने लगी।उसने माँ से वादा किया कि....

आगे से खुद को किसीके प्यार में बर्बाद नहीं करेगी, बल्कि अपनी पढ़ाई पर ध्यान देकर ऊँचा मकाम हासिल करेगी।

उसने खुद को बहुत प्यार करने का भी एक वादा लिया कि कभी किसी के कम आंकने से खुद की नज़र में अपना आपा कम नहीं होने देगी।

अब रावी को समझ आ गया था कि,असली ख़ुशी एकतरफा प्रेम में नहीं बल्कि अपने वज़ूद को कमी बेसी के साथ अपनाकर खुद को प्यार करने में है।

अपनों का प्यार सबसे महत्वपूर्ण है.

माँ ने जो सिखाया था....

"पहले प्यार खुद से

फिर जग से !"

रावी अक्सर दोहराती और माँ से लिपट जाती, अपनी गुड़िया की हँसी वापस आती देख माँ जैसे निहाल हो जाती।

अब रावी की खुशियों की चाबी उसके अपने हाथ में थी। अपनों का प्यार और साथ पाकर रावी ने अंततः वो खुशी पा ली थी जिसकी उसे तलाश थी। और।वह ख़ुशी थी खुद को हर हाल में स्वीकार करना, प्यार करना और अपनों का साथ कभी नहीं छोड़ना।

इस सशक्त रावी से कुणाल जैसे लड़कों की तो अब आज के बाद रावी से बात करने की हिम्मत ही नहीं पड़ेगी।


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