अफसाना प्यार का
अफसाना प्यार का
आपने वो पुराना गाना तो सुना होगा.....
"अफ़साना लिख रही हूँ दिले बेक़रार का "
ये कहानी वैसे तो मेरी प्यारी सखी नाज़िया की कहानी है ...उसने मुझे बड़े दिलचस्प तरीक़े से सुनाई मैं उन्हीं लफ्जों में आप तक पहुंचाना चाहती हूँ ..।
"मैं आपको अपने उन दिनों में ले चलती हूँ जब में कॉलेज में फाइनल यीअर में थी, मेरी अम्मी और मेरे भाइयों को मेरी शादी की जल्दी होने लगी..बड़ी तेज़ी से लड़के की तलाश शुरू कर दी, वैसे मैंनें कभी ख़्वाबों भी सोचा न था, अरेंज मेरिज, किस तेज़ी से लव मेरिज में बदल जाएगी...।
'आपने अक्सर सुना होगा "लव हुआ फिर हमने शादी के लिए कितने 'पापड़ बेले' तब शादी की मंज़िल तक पहुंचे ...।
हमारे साथ उल्टा हुआ, हमारी सगाई तो दोनों परिवार की रज़ामंदी से हो गई, क़रीब 6 महीने का वक़्त था शादी होने में, मेरी भाभी के रिश्ते में होने कि वजह से भाई, भाभी से ज़िद की मुझे लड़की से मिलना है।
भाई मुझे जहाँ अम्मी के साथ रहती थी वहाँ से ले आए ...मैं भाई के क्वाटर पर पहुंची तो एक नए इंसान को देखकर झिझक गई भाभी से उनका नाम सुना तो घबरा गई ...ये नाम तो वही है जिससे मेरी सगाई हुई है ...मैं शर्माकर भाभी के पीछे छुप गई...।
हमारी प्यार की कहानी छह महीने चली, दिन बड़ी ख़ूबसूरती से गुज़र रहे थे।
अब शुरू होती है हमारी शादी में "रायता" फैलाने की कहानी, मेरे भाई मेरी शादी तारीख़े फाइनल करने, लड़के वालों के यहां गए मगर लड़के के पापा ने ये कहकर कि "हमारी बेटी "की शादी जब तक फाइनल नहीं होती हम ये शादी नहीं करेंगे ....
आपको जल्दी हो तो हम ये रिश्ता तोड़ते हैं।
मेरे भाई परेशान, साथ मेंं मेरे मंगेतर भी परेशान।
मेरे मंगेतर ने उनके एक फैमिली फ्रेंड जो वहाँ कॉलेज में प्रोफेसर थे उनके पास जाकर सारी बात बताई फिर मेरे भाई उनके पास ले गए लड़के ने अपने पापा को भी बुलाया ...।
उन प्रोफेसर साहब ने मेरे भाई से कहा आप जिस तारीख़ में शादी करना चाहते हैं उसमें ही करेंगे ...अगर लड़के पापा बारात ले कर नहीं आते हैं तो मैं लेकर आऊँगा, फिर लड़के के पापा को भी एग्री होना पड़ा ....।
ये थी आज से 50 साल पहले की लव स्टोरी ...
नाज़िया आज ख़ुश है दादी, नानी सब बन गई है।
हैप्पी एंडिंग...।।