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Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Action Inspirational

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Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Action Inspirational

अनुभूति सुख और दुख की

अनुभूति सुख और दुख की

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सुखद और दुखद अनुभवों एवं इनका किसी व्यक्ति पर स्वयं और उनके संपर्क में आने वालों पर आने वालों पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में जानने के लिए मेरी कक्षा के मेधावी विद्यार्थियों में से एक छात्र रीतू का फोन आया। रीतू कक्षा के उन गिने-चुने विद्यार्थियों में से एक है जो अपने मन में किसी प्रकार की कोई जिज्ञासा होने पर उसके समाधान हेतु मुझे नि:संकोच फोन कर लिया करता है। औपचारिक अभिवादन और पारिवारिक कुशल-क्षेम पूछने के उपरांत उसने सीधे अपनी जिज्ञासा व्यक्त करते हुए कहा।

"सर, आज मैं आपसे यह जानना चाहता हूं कि दुनिया में सुखी लोग न के बराबर दिखते हैं जबकि दुखी लोग बहुतायत में मिलते हैं ,ऐसा क्यों है? जबकि हर व्यक्ति सर्वदा सुखी और प्रसन्न रहना चाहता है।हर व्यक्ति यह भी चाहता है कि वह दुखों से मुक्त रहे।"- रीतू ने एक ही सांस में बोल दिया।

मैंने रीतू को समझाते हुए बताया-"हर जीवन सुखद और दुखद अनुभवों से भरा होता है।हमें अधिकांश असंतुष्ट लोग ही मिलेंगे। इसका मूल कारण यह है कि हम अपनी उपलब्धियों की ओर तो ध्यान ही नहीं देते केवल हम उन चीजों पर ध्यान देते हुए खीझते रहते हैं जो हमें हासिल नहीं हो पाईं।उन कारणों पर भी अक्सर बहुत कम ध्यान देते हैं जो हमें हमारे इस को लक्ष्य को प्राप्त करने में बाधक बनीं जैसे हमने अपनी क्षमता से कहीं ज्यादा मुश्किल लक्ष्य ले लिया,हम अपनी योजना ठीक ढंग से नहीं बना पाए, योजना का कार्यान्वयन चरणबद्घ ढंग से नहीं हो पाया,यह भी संभव है कि टाली न जा सकने वाली बाधाएं आ गई हों। यहां हमें हमशा यह  याद रखना चाहिए कि जो हो चुका है और जिसे बदला या सुधारा नहीं जा सकता और हम उसे सोच-सोच कर दुखी होते रहते हैं तो हम अवसाद की ओर अग्रसर होते हैं जिससे नकारात्मक प्रभाव से हमारे अगले कार्य भी प्रतिकूल दिशा में प्रभावित होंगे।इस स्थिति में हम सदैव दुख के सागर में डूबते-उतराते रहेंगे। किसी भी व्यक्ति की नकारात्मक सोच और नकारात्मक भाव दूसरों को भी नकारात्मकता से भरकर प्रतिकूल रूप से प्रभावित करते हैं।आप प्रसन्नता से मीलों-कोसों दूर लेकिन प्रायः खिन्नता से भरे रहते हैं और आपकी यह खिन्नता आपके साथ-साथ दूसरों के मन मस्तिष्क में खिन्नता से भरे भाव स्थानांतरित करती है।"

रीतू का अगला प्रश्न था-" जीवन में दुखदाई स्मृतियों को समाप्त करने और सुखद अनुभवों की अनुभूति के लिए क्या किया जाना चाहिए?"

" निश्चित रूप से रीतू बेटे तुम्हारा यह प्रश्न दुख के सागर में डूबते-उतराते लोगों के लिए बड़ा सा सहायक सिद्ध होगा।इसके लिए हम सबको यह सकारात्मक ऊर्जा और सोच के साथ याद रखना है कि हमें जो मिला है इसके हम प्रभु का आभार व्यक्त करते हुए अपने सहयोगियों के प्रति कृतज्ञ रहते हुए प्रसन्नतापूर्वक रहें लेकिन बेहतर करने के लिए सदैव प्रयासरत रहें। सफलता से संतुष्ट होकर निष्चेष्ट होकर बैठ जाते हैं तो विकास का रास्ता अवरुद्ध हो जाता है। अपनी सफलता की संतुष्टि आपका उत्साहवर्धन करती है और विकास के नए रास्ते प्रशस्त करती है। आपके में प्रसन्नता का संचार करती है।आपकी सफलता दूसरों को भी उत्साहित करती है और आप दूसरों के लिए अनुकरणीय उदाहरण और प्रेरणास्रोत बनते हैं।ये सुखद अनुभव के पल आपके शारीरिक , मानसिक, बौद्धिक , नैतिक और आध्यात्मिक रूप से आपको समृद्ध करते हैं।"

"जीवन में सुखद और दुखद अनुभवों से सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित की जा सकती है?"-रीतू का अगला प्रश्न था।

मैंने इस संबंध उसकी शंका का समाधान करते हुए बताया-" जीवन में सफलता और प्रसन्नता के लिए दुखद पलों और अनुभवों को मन - मस्तिष्क से दूर रखकर अपनी स्मृतियों में सुखद पलों को संजोए रखें। ऐसा करना स्वयं आपके, आपके परिजनों-प्रियजनों और आपके संपर्क में आने वालों सके लिए संजीवनी का कार्य करेगा। आपके आसपास सुखकर वातावरण बनेगा ।आप दूसरों को अपनी वाणी की बजाय अपने आचरण - व्यवहार से सकारात्मक रूप से प्रभावित करने में सक्षम और सफल हो पाएंगे।"

" धन्यवाद सर,आपके यह विचार लोगों के जीवन में उनके दृष्टिकोण को सकारात्मक ऊर्जा से भरकर दुखों से मुक्ति देकर प्रसन्नता से भर देगा।"-औपचारिक अभिवादन के उपरांत रीतू ने मुझसे विदा ली।


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