अनु और सुधा ( भाग- 2)
अनु और सुधा ( भाग- 2)
कहानी के प्रथम भाग में जिस निरू और आसमां की बात की थी दरअसल उनका असली नाम अनु और सुधा है।
अनु और सुधा का बचपन भी बहुत अलग रहा। अनु,एक सदा अभावों में अपनी बहुत कम उम्र में अपनी देखभाल स्वंय करना सीख लिया।उसे भूख और प्यास भरी अभाव की पूरी अनुभूति थी।उसने कुड़े के ढेर से खाने योग्य चीजें बीनना तथा सर्दी की रातों में किसी तरह ' गर्म ' रहना सीख लिया था।वह यह भी जान गई की बरसात में सर कैसे छुपाना है तो धागों ,पत्थरों या तिनकों की सहायता से खेल रचकर किस प्रकार अपना मनोरंजन करना है। वह स्कूल नहीं जा पाई ,क्योंकि उसके माँ- बाप प्रवासी मजदूर थे जो काम की तलाश में एक शहर से दूसरे शहर में भटकते रहते थे।
अनु को नाचना बहुत पसंद था।जब भी वह संगीत की धुन सुनती ,थिरकने लगती।वह बहुत ही सुंदर थी ,उसकी भाव- भंगिमाएँ भी बहुत अर्थपूर्ण थीं।किसी दिन रंगमंच पर अपनी प्रतिभा उसके जीवन की अभिलाषा थी। वह एक महान नृत्यांगना बन सकती थी।किंतु उसे बारह वर्ष की आयु में काम करना शुरू करना पड़ा। उसे अपने माँ - बाप के साथ अमीरों के लिए भवन बनाने के काम से रोजी- रोटी कमाने के लिए जुट जाना पड़ा ,ऐसे मकान बनाने में जिनमें वह स्वंय कभी नहीं रह पाएगी।
सुधा को एक श्रेष्ठ बाल विद्यालय में भेजा गया , जहाँ उसने खेल-खेल में ही पढ़ना ,लिखना और गिनना सीख लिया। वह नक्षत्रशालाओं, संग्रहालयों , राष्ट्रीय उद्यान आदि के भ्रमण- दर्शन पर भी गई। फिर वह एक शहर के बहुत ही अच्छे स्कूल में पढ़ने चली गई। उसे चित्रकारी से लगाव था तो उसके लिए एक प्रख्यात चित्रकार से प्रशिक्षण की व्यवस्था की गई। उसने आगे चलकर एक ललित कला महाविद्यालय में प्रवेश पाया और आज वह एक प्रख्यात चित्रकार बन चुकी है।
यद्यपि दोनों के पास प्रतिभाएं थी लेकिन एक की सुविधाओं के अभाव में दब गई और दूसरे कई सुविधाजनक स्थिति पाकर खिल गई।