Brijlala Rohan

Tragedy

3.3  

Brijlala Rohan

Tragedy

हमारे देश के बंटवारे से उपजी विभीषिका

हमारे देश के बंटवारे से उपजी विभीषिका

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" ज़मीन पर खिंची गयीं लकीरें सिर्फ देश ,या किसी भूभाग का बँटवारा नहीं करती बल्कि उस देश ,उस क्षेत्र और उस भूभाग के भू- संपदा पर आश्रित लोगों के भविष्य और भाग्य तय कर उसके जीवन को एक नया आयाम देती है "।

" खून से सनी वीरान सड़कें ,दहशत भरा माहौल और भाई- भाई के बीच बंटवारे का वो खौफनाक मंजर"! कल्पना में ही ये चित्र कितना बीभत्स और भयानक के साथ-साथ विचित्र लगते हैं ! ज़रा सोचिए जो इन विकट परिस्थितियों के भुक्तभोगी होंगे उनपर क्या बीत रही होगी !जो इनके प्रत्यक्ष गवाह होंगे उनकी स्मृति में क्या अंकित हो रहा होगा ?

जी हां! मैं बात कर रहा हूं भारत के विभाजन से उपजी त्रासदी की ! अबतक एक ही देश का अभिन्न हिस्सा रहे क्षेत्र का धर्म के आधार पर बंटवारा हो रहा था- भारत और पाकिस्तान के रूप में दो देश बन रहे थे जो हमारे दुश्मन अंग्रेजी राज्य की 'फूट डालो और शासन करो ' की ही नीति का अनुसरण करते हुए उनकी बड़ी जीत थी! देश आजाद तो हो गया था लेकिन खण्डित भारत के रूप में जो साथ -ही- साथ कई प्रकार की विभीषिका लेकर आजाद हो रहा था! स्वतंत्र भारत के शिल्पकारों के अखंड भारत के सपना चूर- चूर हो गया! मज़हबी धर्मान्धता की जीत हो रही थी!

उन्हीं लोगों में से एक इस प्रकार की विभीषिका का शिकार हुए 'दीनानाथ शुक्ला जी" जो विभाजन के बाद सीमापार पाकिस्तान के होकर रह गए और उनका जिगरी दोस्त मोहम्मद 'वशीर शाह' भारतीय हो गए! विडंबना देखिए कल तक बहुसंख्यक आबादी का हिस्सा रहे दीनानाथ जी पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हो गए तो वहीं मोहम्मद वशीर भाईसाहब भारत के अल्पसंख्यक समुदाय का हिस्सा हो गए ! 

दोनों अपने अपने नये देश में अनजान, अजनबी सा महसूस कर रहे थे , वे अपने ही लोगों के साथ जो कल तक भाइचारे के साथ बात करते ,उनके साथ रहते थे वही आज एक- दूसरे से मिलने और बातचीत करने में भी हिचक रहे थे!

विभाजन के दौरान हुए खूनी हिंसक कार्रवाई में दोनों का परिवार हताहत हुआ था, अपने परिवार में दीनानाथ और उनकी सिर्फ पत्नी ही बच रहे थे शेष परिवार के सदस्यों में उनके दो बेटों को जान से हाथ धोना पड़ा और उनकी युवती बेटी भी हिंसा का शिकार हुईं और मारी गयी! वहीं मोहम्मद वशीर के परिवार में सिर्फ वही अकेले बच रहे थे और शेष परिवार को हिंसा में मार दिया गया ,वे भी कैसे- कैसे बचे थे उन्हें एक हिन्दू परिवार ने शरण दी और बाद में उन्हें सीमापार करने में भी सहायता की !

वो खौफनाक मंजर का जिक्र जैसे ही आता है उनके आँख भर आती है! उन दोनों के दृश्यपटल पर उनका हँसता- खेलता परिवार अचानक उनसे ओझल हो जाते हैं! वे अभी तक नहीं समझ पाये हैं कि ये विभाजन क्यूँ हुआ?क्या इस विभाजन को रोका जा सकता था ?


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