नजरिया
नजरिया
एक बार की बात है सड़क किनारे एक माँ और उसका बच्चा स्कूल बस के इंतजार में रहते हैं। सड़क के दूसरी तरफ भी एक माँ और उसका बेटा बस के इंतजार में खड़े रहते हैं। तभी एक कचरा बिननेवाला वाला पीठ पर कचरा का ढेर लिए हुए सड़क किनारे से कचरा जैसे कि पुरानी बोतल, प्लास्टिक, टूटी- फूटी चीजें बटोर रहा था।
उसकी ओर इशारा करते हुए एक माँ अपने बेटे बोलती है " देख ले जरा अपनी आँखों से अगर तू भी नहीं पढ़ेगा तो तुम भी कल इसके जगह होगा। " इसीलिए कहती हूं बेटा कि तू पढ़ाई कर लिया कर नहीं तो देखा न इसका हस्र।
वहीं सड़क के दूसरी ओर खड़ी माँ भी अपने बेटे को उसे दिखाते हुए बोलती है " इसीलिए कहती हूं बेटा कि तू पढ़ाई कर लिया करो, कल को पढ़कर इनके भलाई के लिए तुम तभी कुछ कर पाओगे जब तुम्हारे पास कोई आर्थिक जरिया होगा।
यह कहानी नजरिये को दर्शाती है की हम जिस तरह की तालीम बच्चों को देगें बच्चा भी उसी तरह का बनता है ।हमारी असली शिक्षा तो घर- परिवार में उनके आचरण ,व्यवहार और सोच से मिलती है ।
# यह कहानी किसी कथा- प्रसंग से लिया गया है जिसका अल्फ़ाजों के रूप में मैंने संपादित किया है ।