एक कहानी मेरी भी
एक कहानी मेरी भी
मैं एक कहानीकार बनना चाहता था, लेकिन अफसोस न तो मेरे पास कोई कहानी बनाने का रोमानियत थी न ही कल्पनाशील मस्तिष्क जिससे मैं अपने कहानीकार के पात्रों एवं कथानक का चयन कर सकूं। मैं रोज कहानीकार लिखने को बैठ हूं, तो कभी कोई नायक नहीं मिल पाता मेरे लायक, न ही कभी कोई नायिका मिल पाती है। मैं हर बार, हर दिन उसे खुद के अंदर से बाहर निकालना चाहता हूं, उसे अपनी कलम से उकेरना चाहता हूं। लेकिन मेरा अहो भाग्य! देखिए न तो कोई कहानी का योग्य पात्र निकल पाता है, न कथा कि कथानक और इस तरह मेरी कहानी शुरू होने के पहले ही खत्म हो जाती है।
पर भी मैं बता दूं मेरी अपनी कहानी बहुत लंबी है ! बचपन में ही मैंने वो सारे सुख-दु:ख का अनुभव कर लिया जो किसी के भाग्य में शायद न ही लिखा होगा। माँ- बाप का सर से साया उठ गया, घर- परिवार में भर्त्सना का शिकार होना पड़ा । कई दिनों तक भूखा भी रहना पड़ा। रहने और सोने के लिए भी सुरक्षित माहौल न मिल सका। शायद ये सब बातें किसी को मनगढ़ंत कहानी की तरह लगे लेकिन ये कोई कहानी ये मेरी खुद की कहानी है, खैर छोड़िए अपनी बात पर आते हैं, हाँ तो इतनी विकट विभीषिका झेलते हुए भी मैंने अपनी मेहनत न छोड़ी लगातार निरंतर खुद को बनाने में लगाया, खुद को जानने में खुद को रूचियों के संग जीने में जिंदगी बिताई और बीता भी रहा हूं।
मेरी जिंदगी में अमानत बनकर एक शरारती और मेरे सच मेरी रूह से मोहब्बत करने वाली परी को मैंने दिल से चाहा और वो परी मेरी धड़कन में समा गई। जो मेरे जिंदगी को नई ऊर्जा, नई दिशा और दिशा दी और मेरी उजड़ी हुई बगिया को फिर से हरा- भरा कर रही है। और मैं भी अंतिम साँस तक उस साथी का साथ सदा निभाऊँगा।