अनु और सुधा की कहानी
अनु और सुधा की कहानी
निरू और आसमां का जन्म एक ही दिन हुआ था। निरू के माता - पिता निर्माण कार्य पर लगे मजदूर थे तो आसमां के पिता एक व्यवसायी तथा माँ शिल्पकार ( डिजाइनर)थी। निरू की माँ प्रसव पीड़ा आरंभ होने तक अपने सिर पे ईंटों का भार ढो रही थी। दर्द आरंभ होने पर वह निर्माण स्थल पर ही औजार आदि रखने के स्थान पर चली गई और वहीं उसने अकेले ही अपनी बेटी को जन्म दिया। अपनी बच्ची को दूध पिलाया, पुरानी फटी साड़ी के चिथड़ों में उसे लपेटा और बोरी के झुले में उसे एक पेड़ पर टाँग तुरंत काम पर वापस लौट आई। उसे डर था ,कहीं उसका रोजगार न छिन जाए। उसे इतनी आशा थी कि उसकी बेटी शाम तक सोती होगी।
आसमां का जन्म शहर के सर्वश्रेष्ठ नर्सिंग होम में। शिशु विशेषज्ञ डाक्टरों ने उसकी जाँच की ,उसे नहला कर साफ एवं स्वच्छ मुलायम कपड़े में लपेट कर उसकी माँ के पास ही एक पालने में लिटा दिया ।जब भी उसे भूख लगी ,उसकी माँ ने उसे दूध पिलाया ,दुलारा ,प्यार किया और लोरियाँ गुनगुनाते हुए उसे सुला दिया। उसके परिवार तथा पारिवारिक मित्रों ने उसके आगमन का जश्न मनाया।
इस कहानी के प्रथम भाग में हम देख सकते हैं कि किस प्रकार दो बच्चियों का जन्म अलग - अलग परिस्थिति में होने से उनके लालन - पालन में किस प्रकार अंतर होता है। एक जो शुरू से ही बीमारी और गंदगी का आदी से हो गया है जबकि एक स्वच्छ एवं स्वस्थ वातावरण में पल रही है।