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Manjula Dusi

Abstract

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Manjula Dusi

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अन्तरमन

अन्तरमन

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 खचाखच भरी हुई बस में,बड़ी मुश्किल से उसने अपने खड़े रहने लायक जगह बनाई"आज का दिन तो बहुत बेकार था,बॉस ने भी बिना वजह डाँट दिया" वो मन ही मन सोच रहा था।


 अचानक ही उसे अपनी जाँघों के पास कुछ महसूस हुआ,देखा तो एक लड़की थी , जिसकी उम्र रही होगी १५,१६ साल,शायद कोचिंग से लौट रही थी,बस में बैठे बैठे आँख लग गई होगी, और गलती से उसकी जाँघो पर सर टिका दिया।


  पहले तो वो थोडा असहज हुआ,लेकिन थोड़ी ही देर में उसका स्पर्श उसे अच्छा लगने लगा।वो उसका ध्यान से अवलोकन करने लगा,भरा पूरा शरीर, अभी अभी यौवन की दहलीज पर कदम रखा था , उस लडकी ने..उसने इधर उधर देखा कोई देख तो नहीं रहा..फिर उसके हाथ अनायस ही उस लड़की की ओर बढ़ चले..वो उसे छूने ही वाला था कि..तभी उसका फोन बज उठा..


  उसने हड़बड़ा कर फोन उठाया..उधर से आवाज़ आई "हैलो पापा..कोचिंग खत्म हो गई है,मैं बस चढ़ गई हूँ,आप बस स्टॉप पर मिलोगे ना,आज पानी पुरी खाएँगे"..."हूँ"..उसके गले से बस यही आवाज़ निकली ...उसके हाथ काँप रहे थे..शरीर कुछ ही पलो में पसीने से भीग गया था।


 सामने खिड़की के शीशे में उसे ख़ुद की धुंधली सी छवि दिखाई पड़ी ..."ऐसे लोगो को फाँसी की सजा मिलनी चाहिए जो दूसरों की बेटियों को ग़लत नज़रो से देखते हैं" आज उसका अन्तरमन ,चीख चीख कर वही बात उसी के लिए कह रहा था,जो अक्सर टी.वी पर छेडछाड़ और बलात्कार की ख़बरें आने पर वो ख़ुद गुनहगारों के लिए कहता था।



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