आवरण

आवरण

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अरे मीनू सुना तूने दो घर छोड़कर जो मिसेज वर्मा रहती हैं ना, वो पागल हो गईंं है।"

"अच्छा तुझे कैसे पता" मीनू नें आश्चर्य से पूछा।

"अरे उसके घर वाले बता रहे थे, कह रहे थे आजकल अपनी मर्ज़ी से सोती है, अपनी मर्ज़ी से जागती है, झल्ली बनकर घूमती है, अपनी पसंद का खाना बनाकर खाती है, और तो और कभी बच्चों की तरह खिलखिला कर हँस पड़ती है, तो कभी किसी के कुछ कहने पर ज़ोर ज़ोर से रोने लगती है। सुना है वो लोग उसे दिमाग के डाक्टर के पास ले जाने वाले हैं।"


मीनू सोच में पड़ गई "ओह बेचारी मिसेज वर्मा, लगता है उन्होंने अपना आवरण उतार कर रख दिया, वही आवरण जो हर औरत पहनती है, या यूं कह लो पहनना पड़ता है, इस सभ्य समाज में बने रहने के लिए, वर्ना जीना तो हर औरत इसी तरह चाहती है आज़ाद और स्वछंद" सोचते हुए उसने अपने मन के भावों को अंदर ही दफ़ना दिया, और अपने सभ्यता के आवरण अच्छी तरह अपने चारों ओर लपेट लिया।



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