Manjula Dusi

Tragedy

5.0  

Manjula Dusi

Tragedy

मै नहीं वैदेही

मै नहीं वैदेही

3 mins
379


माना कि तुम हो मर्यादा पुरुषोत्तम की तरह एक अच्छे पुत्र, एक अच्छे भाई, एक अच्छे इंसान।एक आदर्श पुरूष का रूप, जिसे पाने की कल्पना शायद हर लड़की को होती होगी।और मैं भी इतराई थी अपने अपनें नसीब पर, जब सबनें तुम्हारी तारीफ की थी।फिर जब तुम्हारे साथ इस घर में आई तो देख भी लिया।

जब तुम आधी रात को भी अपनी माँ के बुलाने पर मुझे अकेला छोड़ उनके पैर दबाने चले जाते थे, या फिर जब उनके द्वारा कुछ ग़लत कहे जाने पर भी, चुपचाप उनकी हाँ मेंं हाँ मिलाते थे, तब मैनें तुम्हारा आदर्श पुत्र वाला रूप देखा।

 जब अपनें भाई बहनों की गैर जरूरी माँगे पूरी करने के लिए, अपने और मेरे हिस्से की खुशियां भी उनकी झोली में डाल दी, और तुम्हारे माथे पर शिकन तक नहीं आई, तब मैनें तूम्हारे आदर्श भाई वाला रूप देखा।

 और जब केवल अपनी इस छवि को बचाने के लिए, तुम अपनें सामर्थ से बढ़कर दूसरों की मदद करते रहे ये भी न सोचा कि जब डूब रहें हो तो पहले अपनी जान बचानी चाहिए तभी दूसरों की मदद कर सकोगे, लेकिन नहीं। मैंने तुम्हारा आदर्श पुरुष का रूप देखा।

चलो ठीक है, तुम हो आदर्श मान लिया।लेकिन माफ करना मैं नहीं हूँ वैदेही, जो तुम्हारे हर उस फैसले की सहभागी बने, जो तुम्हे लगता है सही है।माता पिता की सेवा करना तुम्हारा कर्तव्य है तो, मेरे प्रति भी तुम्हारे कुछ फर्ज है।बेशक बनों तुम एक आदर्श पुत्र, लेकिन थोड़े आदर्श पति भी बन जाओ।भाई बहनों के प्रति तुम्हारी जिम्मेदारी है, और तुम्हे निभानी भी चाहिए लेकिन हमारे और हमारे बच्चों के भविष्य के लिए सोचना भी तुम्हारा ही फर्ज है।

बेशक मदद करो दूसरो की लेकिन तब जब करने लायक हो।

जब तुम एक आदर्श पति और एक आदर्श पिता की भूमिका ठीक तरह से नहीं निभा पाए, तब मुझे ही तुम्हारे भी कर्तव्यों का निर्वाह करने के लिए घर की दहलीज लांघकर बाहर आना पड़ा लेकिन तुम्हारी पुरूषोत्तम वाली छबि को यह बात भी रास नहीं आई कि, तुम्हारी पत्नी बाहर की दुनियां में इतने सारे रावणों के बीच काम करे।तो तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूँ, कि बाहर का हर पुरुष रावण नहीं है।और रावण के पास भी वैदेही सुरक्षित ही थी, वो तो राम नें ही उनपर सवाल उठाए थे।

लेकिन मैं वैदेही नहीं हूँ, जो तुम्हारे बेबुनियादी शक की वजह से अग्निपरीक्षा दूँ,

या तुम्हारा घर छोड़कर चली जाऊँ, या फिर धरती माँ से विनती करू कि वो मुझे अपने अपनें अंदर समा ले।और क्यों दूँ अग्निपरीक्षा उस ग़लती के लिए जो मैने की ही नहीं।अपनी मर्यादा में रहकर अपना घर सम्हालना क्या ये मेरी ग़लती है या फिर तुम्हारे फर्ज को अपना समझा ये मेरी गलती है । तुम्हे ये समझना होगा कि इस घर पर मेरा भी उतना ही अधिकार है जितना कि तुम्हारा हमारे बच्चों के प्रति तुम्हारी भी उतनी ही जिम्मेदारी है, जितनी मेरी और बनो तुम पुरूषोत्तम लेकिन उससे पहले अच्छे पति और पिता बनो।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy