अदृश्य नशा
अदृश्य नशा
११ साल का वंश अस्पताल के बिस्तर पर पड़ा बुरी तरह छटपटा रहा था। उसके शरीर पर उसका बिल्कुल नियंत्रण नहीं था। अर्धमूर्छित अवस्था मे लगतार बड़बडा रहा था। "इससे पहले तुम मुझे खत्म करो ।मै तुम्हे खत्म कर दूंगा"
कमला बाई उसे पड़ोसियों की मदद से अस्पताल लेकर आई थी।"क्या हुआ।क्या हुआ है डॉक्टर साहब वंश को। "अपने अपने कार्यक्षेत्र से लगभग भागकर आते हुए हुए वंश के माता पिता ने डॉक्टर से पूछा
"बहुत अधिक मोबाइल पर कोई गेम खेलने की वजह से वंश का दिमाग इस अवस्था मे पहुंच गया है। वो गेम को गेम की तरह नहीं वरन् हकीकत की तरह जीने लगा है। उसे लग रहा है सचमुच कोई है। जो उसे मार रहा है "कहते हुए डॉक्टर रोहन को इंजेक्शन देने लगे। लेकिन वंश की हालत और भी बिगड़ गई और उसने दम तोड़ दिया
"नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता " वंश के माता पिता सर पकड़ कर बैठ गए
"हत्ययारे हो तुमलोग .जहर ।जहर दे रहे हो अपने बच्चो को।.देखना एक दिन पछताओगे तुम सब । तुम ही नहीं तुम जैसे तमाम माता पिता। जो. अपनी महत्वाकांछाओ तले अपने मासूमो का बचपन रौंद देते है"पड़ोस के बुजुर्ग माथुर साहब आवेश मे कहे जा रहे थे
"ये क्या कह रहे अंकल आप" वंश के पिता ने गुस्से से कहा
"बिल्कुल सही कह रहे है अंकल। आपलोग अपना समय तो देते नहीं बच्चों को । बदले में ये गैजेट्स पकड़ा देते है।जो धीरे धीरे उनके शरीर ही नहीं मस्तिस्क को भी खोखला कर देता है।नतीजा देख लिया ना आपने" डॉक्टर साहब मथुर जी की बातों पर सहमती की मुहर लगाकर चले गए
और वंश के माता पिता वहीं सर झुकाकर बैठ गए। शायद अब बहुत देर हो चुकी थी।