अस्तित्व

अस्तित्व

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आज फिर मेरे अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न लगया गया था "आखिर हो कौन तुम?क्या है तुम्हारा वजूद? मुझे देखो,मुझसे आलोकित है सारा संसार" उसकी गर्वित हँसी अंदर तक भेदती थी मुझे।

लेकिन प्रतिवाद करना आदत न थी मेरी, अपना कर्म करने पर ही विश्वास था मुझे, लेकिन मन में कई बार स्वयं से पूछा था "क्या सचमुच मेरा होना किसी के लिए भी मायने रखता है?"

तभी किसी के शब्द कानों में पड़े "हे प्रकाश पुंज ,तुम धन्य हो,जो स्वयं जलकर घनघोर तिमिर को हरते हो,और भटके हुए को रास्ता दिखाते हो" ये शब्द उसके कानों में तो न पड़े जिसने मेरे अस्तित्व पर प्रश्न उठाया था लेकिन मुझे अवश्य नवीन ऊर्जा से भर गए।


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