इंकार

इंकार

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जब वो घर से निकली थी बेहद खुश थी।

माँ ने बड़े प्यार से अपने हाथों से नाश्ता कराया था।पापा अॉफिस जाते हुए इस रविवार स्कूटी दिलवाने का वादा कर गए थे, और छोटू हमेशा की तरह पीछे से चोटी खींच कर भाग गया था। बस अब तेज कदमों से कॉलेज भाग रही थी। उसके बाद उसे राज से भी तो मिलना था।

राज को याद करते ही उसके चेहरे पर मुस्कान तैर गई।अब तो राज की नौकरी भी लग गई है। बस वो एक बार घर आ कर बात कर ले और वो हमेशा-हमेशा के लिए राज की हो जाए। भविष्य के सुनहरे सपने उसकी आँखो में तैरने लगे ...कि तभी सारा शरीर असहनीय जलन से भर उठा।

इससे पहले कि वो कुछ समझ पाती आग की लपटों ने उसके पूरे शरीर को अपने कब्जे में ले लिया था।

शरीर में बस चंद साँसे ही शेष बची थीं, और दिमाग लगभग चेतनाशून्य हो गया था, तभी एक चिरपरिचित आवाज़ कानों में पड़ी- "जो तू मेरी न हुई..तो किसी की नहीं हो सकती" ये...ये तो वही दो घर छोड़कर रहने वाला दो बच्चों का बाप था, जिसने उससे अपनी एकतरफा मुहब्बत का इजहार किया था, और उसने...इंकार।      


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