एक पति का प्रायश्चित
एक पति का प्रायश्चित
आज चार महीने बाद मैं अपनें कमरे से बाहर निकल कर अपनें घर के गार्डन में आया हूँ, सुबह की गुनगुनी धूप तन और मन को इतना सुकून दे सकती है ये आज पता चला, पक्षियों की चहचहाहट और फूलों की ख़ुशबू एक अलग ही खुशी दे रहे थे, अर्पिता ने मेरे दाढ़ी बनाने का सारा सामान लाकर टेबल पर रख दिया और किसी कुशल नाई की तरह मेरे गालों पर शेविंग क्रीम लगाने लगी। उसकी एक लट बार बार उसके चेहरे पर गिर उसे परेशान कर रही थी।मन तो कर रहा था कि अपनें हाँथों से उसे पीछे कर दूँ..लेकिन...नहीं कर सकता मैं ऐसा..अब कर नहीं सकता और जब कर कर सकता था तब ऐसा करनें मे अपनी तौहीन समझता था।
अर्पिता ने जाने कितने अरमानो से मुझसे शादी की होगी..लेकिन बदले मे उसे मुझसे क्या मिला..केवल उपेक्षा और अपमान,वो भी बिना किसी कसूर के। ऐसा नहीं कि मैं किसी और को पसंद करता था और मेरी शादी जबरदस्ती अर्पिता से कर दी गई हो। दरअसल बचपन से माँ और पिताजी के रिश्ते को देखते आया हूँ,माँ हमेंशा ही पिताजी पर हावी रही हैं,मानों माँ कोई जेलर हो और पिताजी कोई मुजरिम, माँ की एक आवाज पर पिताजी दौड़कर आ आते थे,और माँ का फैसला ही प
मै हमेंशा सोचता कि केवल हमारे घर ही ऐसा क्यों है,मेरे दोस्तों के घर तो उनके पिताजी की मर्जी चलती थी। मेरे दोस्त मुझे चिढ़ाते भी थे कहते "जा तेरी मम्मी से पूछकर आ,तेरी मम्मी की बात ही तो तेरे पापा मानते है"।मुझे बहुत गुस्सा आता था,और इस गुस्से नें ना जाने कब इस बात को मेरे अंदर भर दिया कि मैं कभी भी अपनी पत्नी को अपनें ऊपर हावी नहीं होनें दूंगा।उसकी कोई भी बात चाहे वो सही ही क्यों ना हो, नहीं मानूंगा।अर्पिता की भोली सूरत और मासूमियत भी मेरे इस इरादे को कमज़ोर नहीं कर पाई।
कितना सताया है मैनें उसे ,उसके हर काम में गलती निकालना,टोकना मानों मेरा जन्मसिद्ध अधिकार था। जिस अर्पिता नें पिछले चार महीनों में मेरा बेडपैन तक लगानें से परहेज़ नहीं किया,उसके लिए पैड लाना तक मैंने अपनी तौहीन समझी और कोई होती तो कबका छोड़कर चली जाती लेकिन अर्पिता ना जानें किस मिट्टी की बनी है,गजब की सहनशक्ति दी है भगवान ने उसे।
लेकिन भगवान नें मुझे मेरे कर्मो की सज़ा क्या खूब दी है,आखिर एक मासूम को सतानें की सजा तो मिलनी ही थी,फिर हुआ वो भयानक एक्सीडेंट जिसने बुरी तरह से ना केवल मेरी बैक बोन टूट गई बल्कि पूरा लेफ्ट साइड पैरालाइज्ड हो गया था,और दोनों हाथों नें काम करना बंद कर दिया था।डाक्टरों ने तो कह दिया था कि अब नार्मल होने के कोई आसार नहीं।
लेकिन जैसा मैने कहा अर्पिता ना जाने किस मिट्टी की बनी थी,उसनें तो हार ना मानने की कसम ले रखी थी,दिन रात मेरी सेवा में लगी रहती ,पिछले चार महीनों मे वो ये तक भूल गई कि उसका भी कोई अस्तित्व है।घर की अर्थव्यवस्था पूरी तरह चरमरा ही गई होती अगर उसनें ट्यूशन लेना ना शुरू किया होता,और जब उस बेचारी नें मुझसे पूछा था नौकरी के लिए ,तो मैने उसे कितनी बुरी तरह दुत्कार दिया था।मेरा वही ड़र कि अगर नौकरी करेगी तो मेरे सर चढ़कर ना बैठ जाए।
और आज देखो अर्पिता ना केवल मुझे बल्कि घर को भी कितनें अच्छे से सम्हाल रही है।मन ही मन मैनें ना जानें कितनी बार उससे माफी माँगी है बोल पाता तो बोलकर भी माँगता,लेकिन उस एक्सीडेंट नें मुझे जिंदा लाश बना कर रख दिया है।अर्पिता को तो मालूम भी नहीं कि अब तक मन ही मन कितने हजार बार उससे माफी माँग चुका हूँ।हर पल प्रायश्चित की अग्नि में जल रहा हूँ।उसके इस यकीन पर यकीन कर रहा हूँ कि एक दिन मैं ठीक हो जाऊँगा और उसे दुनियां की हर वो ख़ुशी दूँगा जिसकी वो हकदार है।
जाने कब सोच के भंवर से बाहर आया,वो लट अभी भी अर्पिता को परेशान कर रही थी।जाने कैसी इच्छाशक्ति जागी मन में पूरी कोशिश लगा दी हाथ ऊपर उठाने की।हाथ ऊपर तो नहीं उठा पाया लेकिन अपनी जगह से हिला जरूर।ये देख अर्पिता की आँखों में जो खुशी की चमक आई,उसे शब्दों में बयान करना मुमकिन नहीं।