अनजाना सफ़र, अनजाना रिश्ता
अनजाना सफ़र, अनजाना रिश्ता
सोना की धड़कनें बढ़ने लगी थीं, वो रात को तीन बजे मांड्या पहुंचने वाली थी।नई जगह थी, उसे कुछ पता नहीं था, परीक्षा देने जा रही थी वो।ऐसा नहीं था कि इससे पहले सोना ने अकेले सफर नहीं किया था, वो एक खिलाड़ी थी।उसे हर महीने कहीं ना कहीं जाना ही होता था।उसने आधे से ज्यादा भारत घूमा था।शुरुआत में तो पापा साथ जाते थे, पर वो हर जगह साथ नहीं जा सकते थे इसलिए उसने अकेले ही बहुत सफर किया है।
साइड की खिड़की वाली सीट, कुछ किताबें, एक डायरी और पेन और अगर दूध या जूस मिल जाये तो सोने पर सुहागा।बस इन्ही के सहारे उसने जाने कितने ही सफर उसने अकेले काटे थे।पर पता नहीं क्यूँ इस बार उसे डर लग रहा था। उसे जिस जगह पहुंचना था वहाँ के लिये ये ही एकमात्र ट्रैन थी ।शायद वजह ये भीं थी की जैसे जैसे वो अपनी मंजिल की ओर बढ़ रही थी।ट्रेन खाली होती जा रही थी। उसकी बोगी में गिनती के लोग रह गए थे। बस वो और कुछ आदमी। और अब 11 बजते बजते तो बस वो और एक आदमी।
बस इसीलिए वो थोड़ा डर रही थी क्युकि पूरी बोगी खाली हो चुकी थी। वो आदमी दिखने में लम्बा चौड़ा, और बलिष्ठ था। मानो जैसे कोई फ़ौजी हो। सुन्दर भीं था। पर वो काफ़ी समय से सोना को घूरे जा रहा था। बस इसीलिए शायद एक शंका ने मन में घर बना लिया था।मोबाइल में नेटवर्क भीं बहुत कम आ रहा था।अचानक कुछ होगा भीं तो किसे फ़ोन लगाएगी। ये सोच कर उसने फटाफट कर्नाटक रेलवे का नम्बर सर्च किया। जो नेटवर्क लो होने के कारण नहीं मिल पर रहा था। बड़ी मुश्किल से मिला तो उसने जल्दी से डायल करके रख लिया। और इमरजेंसी कॉल डिटेल में भीं अपडेट कर दिया।
उसे नींद तो बहुत आ रही थी पर डर के मारे वो सोई भीं नहीं। रात की एक बज गयी थी। वो चुपचाप अपनी किताब में आंखे बढ़ाये उसे पढ़ने की कोशिश कर रही थी जिसमें उसका मन बिलकुल भीं नहीं लग रहा था। फिर भीं समय व्यतीत करना था। उसने पानी पिने के लिये बोतल निकाली तो देखा पानी खत्म हो गया था। उसने बोतल वही रख दी।
हद तो तब हुयी ज़ब उसने देखा वो आदमी उस की तरफ आने लगा। वो और डर गयी। उसने अपने डर पर काबू पाने की कोशिश की. जैसे ही वो आया।सोना एकदम पीछे होकर बैठ गयी। उसने हाथ आग बढ़ाया। सोना एकदम डर गयी। उसने डर के मारे दो सेकंड आंखे बंद कर ली।उसे कदमो के दूर जाने की आवाज़ आयी तो उसने आंखे खोली। देखा पास में एक पानी की बोतल रखी हुयी थी।
उसने अपने माथे पर आयी पसीने की बूंदो को पोछा और पानी की बोतल उठायी। पीने ही वाली थी की मन में शंका आयी की इसमें कुछ मिला तो नहीं।फिर पानी ना पीकर बोतल वहीं रख दी। उसने देखा वो आदमी फिर आ रहा है उसने सोचा जरूर पानी में कुछ मिलाया होगा तभी देखने आ रहा है। वो फिर सतर्क होकर बैठ गयी.
वो आदमी पास आया और बोला"पानी पी लीजिये आपका गला प्यास से सूख रहा है। मैंने इसमें कुछ नहीं मिलाया है।" पहली बार तो सोना तो झिझक हुयी और शर्म भीं आयी क्युकि उसने सोना के मन के भाव जान लिये थे। फिर भीं उसने पानी नहीं पिया.
उसने दुबारा कहा पानी पी लीजिये। ज़ब सोना ने फिर भीं नहीं पिया तो उसने बोतल उठायी और दो घूंट पानी खुद पिया। और बोला अब तो यकीन कर लीजिये मैंने इसमें कुछ नहीं मिलाया। पी लीजिये। और बोतल सोना की और बड़ा दी। तब सोना ने गड़गड़ करके आधी बोतल अपने गले में उतार दी। और उसे थोड़ा सुकून मिला। उसने संकोच करते हुए बोला। "थैंक्स।"
तब वो आदमी बोला "मैं आपको शाम से देख रहा हुँ।आप बहुत घबराई सी नजर आ रही है। डरिये मत। मैं एक फ़ौजी हुँ और छुट्टियों में अपने घर मांड्या जा रहा हुँ। मैं इस देश का रक्षक हुँ, आपको मुझे कोई डर नहीं है।"ये कहते हुए उसने अपना परिचय पत्र सोना की और बढ़ा दिया।
परिचय पत्र पर मेजर महेश राव पड़ा तब सोना की जान में जान आयी।उसने सकुचाते हुए उन्हें वो परिचय पत्र वापस किया। और बोली माफ कीजियेगा वो आप कब से मुझे घूर रहे थे इसीलिए थोड़ा डर गयी थी।
महेश हंसते हुए बोला। अरे वो, वो तो इसीलिए की जैसे ही एक एक यात्री नीचे उतर रहा था आप परेशान होती जा रही थी। बस इसीलिए देख रहा था की आपको कोई तकलीफ तो नहीं। हमें मानव व्यवहार पढ़ने की ट्रेनिंग दी जाती है। ताकि हम दुश्मन को देख कर उसके मन के भाव समझ सके।
"ओह तो इसीलिए आप समझ गए की मैं आपको गलत समझ रही हुँ मेरा मतलब।" बोल कर सोना चुप हो गयी।महेश बोला हां"वैसे आपकी जगह कोई भी लड़की होती तो डरती ही।अब तो डर ख़त्म हो गया ना? वैसे आप कहां जा रही हैं अकेले इतने लम्बे सफर पर? माफ करना पूछना नहीं चाहिये था पर मैंने बहुत कम लड़कियों को इस तरह अकेले सफर करते देखा है इसलिए पूछा।"
अब सोना सहज हो चुकी थी।बोली कोई बात नहीं।मैं मांड्या जा रही हूँ, मेरी कल परीक्षा है वहाँ।कह कर वो चुप हो गयी।महेश खुश होकर बोला "अरे वाह आप तो मेरे ही शहर जा रही हैं।बताइये कहां जाना है? और अब आप मेरी मेहमान।कितने दिन रहेंगी वहाँ?"
अभी तक सोना जिससे डर रही थी अब उसी में उसे एक चंचल, सीधा साधा सा सेना का जवान नजर आ रहा था जो अपने घर जाने के लिये उत्साहित था।
सोना ने उसे सब बताया। दोनों की बातो में सफर कब पूरा हुआ पता नहीं चला। स्टेशन पर महेश को लेने गाड़ी आयी थी। उसी ने सोना को स्टेडियम भीं छोड़ा और अगले दिन उसके घर आने का वादा भीं लिया। दोनों ने नंबर भीं ले लिये थे एक दूसरे के।
अगले दिन परीक्षा के बाद महेश और उसकी बेटी सुबाश्री उसे लेने आये थे। सोना उससे मिलकर बहुत खुश हुई। महेश के घर पर उसकी पत्नी मेघा ने उसकी बहुत अच्छे से आवभगत की। उस दिन सोना उसी के घर में रुकी। एक ही दिन में जैसे सोना को नया परिवार मिल गया था। अगले दिन सब उसे ट्रेन पर छोड़ने आये थे। महेश ने उसे रास्ते के लिए आर पी ऍफ़ स्टॉफ के नंबर दिए और कहा अब मत घबराना। एक फ़ौजी की दोस्त हो तुम और सब हंस पड़े।
ट्रेन में बैठने पर सोना सोच रही थी। वाकई कभी कभी अनजाने सफ़र मे भीं एक अनजाना सा रिश्ता कितना अज़ीज़ बन जाता है।