अंजाना डर
अंजाना डर


फ़ोन की घंटी घनघनाती है,
अरे ! तुमने सुना है लिस्ट आई है,
जिसमें अपने मौहल्ले से भी पॉज़िटिव हैं,
रात को एम्बुलेंस आई थी,
उनको लेकर गई है,
दूसरी तरफ़ से सहमी हुई आवाज़ सुनाई दे रही थी - तुम कुछ बोल क्यूँ नहीं रही हो ?
घर में सैनिटाइज़र रखा है या नहीं ?
हाथ धोते हो या नहीं ?
तुम हमारे अपने हो, इसलिए हितायत दे रहे हैं ! सुन रही हो ?
मैं कुछ चिंतित हुई, मैंने पूछा - आपको कहाँ से पता चला ?
किसी ने हमको फ़ोन करके कहा है !
अरे भई ! ये अफ़वाह भी तो हो सकती है !
हमने तो किसी को आते - जाते नहीं देखा !
मैंने कहा - चिंता मत करो, सब ठीक हो जायेगा !
वहाँ से कुछ घबराई हुई आवाज़ आई कि - हम सब साठ के आस - पास
के लोग हैं !
सुना है बूढ़े लोगों पर ही कोरोना का अटैक हो रहा है !
बच्चें भी पास नहीं हैं ! अगर कोरोना हो जाता है तो किसी से मिलने भी नहीं देते !
अगर कोरोना पॉजिटिव ठीक हो जाता है तो ठीक, वर्ना उसकी लाश भी नहीं दे रहें हैं !
क्या होगा समझ नहीं आ रहा है !
मैंने कहा - जो सबके साथ होगा वो हमारे साथ भी हो जायेगा !
घबराते क्यों हो ?
अरे ! मैं कह रही थी - आपकी आदत है बाहर निकलने की, आप तो घर में ही रहना, बाहर मत निकलना !
सुन रही हो तुम ?
एक अंजाना खौफ दिलों में घर कर गया है ! अपना और दूसरों का ख्याल रखना अच्छी बात है !
परन्तु अफ़वाहें फैलाना बुरी बात है, क्योंकि दहशत में मनुष्य अपना विवेक खो देता है !