Shakuntla Agarwal

Abstract Classics

4  

Shakuntla Agarwal

Abstract Classics

अनछुई

अनछुई

2 mins
21


अरे !आंटी आपको पता है क्या ? माथुर साहिब के परसों ही तो शादी हुई और उनका बेटा विवेक वापिस बंगलौर चला गया| 

शान्ता बाई ने जैसे ही घर में प्रवेश किया (अचम्भित होती) हुई बोली| 

सुमन - क्या बात कर रही है शान्ता? ऐसे कैसे हो सकता है? वो तो हनीमून पर जाने वाले थे बाली। वह बंगलौर वापिस कैसे चला गया?

शान्ता बाई - सुना है, विवेक़ ने कहा, मैं इसे नहीं अपऩा सकता, इसे इसके मायके भेज दो वापिस।

सुमन - क्या विवेक किसी और लड़की से प्यार करता है?

शान्ता बाई - नहीं। ऐसा तो सुनने में नहीं आया। कहते हैं वह शादी नहीं करना चाहता था।

सुमन - क्या बात कर रही है? ऐसी कमसीन लड़की रुई के माफिक गौरी - चिट्टी और यह तो थी भी दूसरी जात से, हमने तो सोचा शायद विवेक का इससे चक्कर होगा, तभी शादी की है इससे। हम तो सोच रहे थे, यह विवेक की अपनी पसन्द है।

शान्ता बाई - पहली रात को ही विवेक़ तो बाहर दीवान पर सो गया, उसऩे साफ - साफ कह दिया की मेरी शादी-वादी में कोई रुचि नहीं थी। मैंने तो आप लोगों का मन रखने के लिये शादी कर ली। 

जब ये सुना मां - बाप ने हक्के - बक्के रह गये।

सुमन - उस नामुराद को उस लड़की के बारे में भी तो सोचना चाहिये था, उस पर क्या बीतेगी, ना तो ब्याही ना कुंंआरी, उसकी जिन्दगी उसने तबाह कर दी। इससे अच्छा तो वह पहले ही मना कर देता। उसने ये भी नहीं सोचा, वह तो बेचारी अनछुई ही दुुजवर कहलायेगी, उसे अब कुंआरा लड़का कैसे अपनायेगा।विवेक ने उसको शादीशुदा का दाग लगा दिया। किसी की जिंदगी यूँ बर्बाद करने का किसी को कोई हक नहीं बनता। वह तो बेचारी "ना घर की रही ना घाट की"।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract