"सदमा"
"सदमा"


फोन की घण्टी घनघनाती हैं, दूसरी तरफ से एक अनजान आवाज - क्या आप मीरा भार्गव बोल रहीं हैं ? हाँ जी कहिये। मैं दिल्ली पुलिस स्टेशन से बोल रहा हूँ आपकी कार का नम्बर ये है? हाँ जी आप ये क्यों पूछ रहे हैं? आप चिन्ता ना करें, पर आपकी कार का एक्सीडेन्ट हो गया है। आप तुरन्त दिल्ली के लिये रवाना हो जायें प्लीज। ये सुनने के बाद मीरा का कलेजा मुंह को आ रहा था। आनन - फानन में उसने रोते हुये अपने पति राकेश को फोन मिलाया। रुलाई बन्द होने का नाम नहीं ले रही थी।
राकेश - अरे, तुम रोती ही रहोगी या कुछ और भी बोलोगी।
मीरा - सुनो जी, नवीन की गाड़ी का दिल्ली में एक्सीडेंट हो गया है, फोन आया है पुलिस वालों का।
दोनों दिल्ली के लिये रवाना हो गये। मीरा को पिछली यादों ने घेर लिया कि नवीन कितना खिलखिलाता हुआ मद्रास से आया था और उसने मम्मी को आलिंगन में भरकर बताया था की मैं सुहानी के प्यार में गिरफ्तार हो चुका हूँ और वो दोनों कैसे खिलखिलाने लगे थे। आज वो सुहानी को अंग़ुठी ले कर यही खुशखबरी देने गया था की मम्मी-पाप
ा को सब मन्जूर है। पर खुशी का पल कैसे सदमे में बदल गया यह सोच-सोच कर वह सुबके जा रही थी। उसकी जैसे ही तन्द्रा टूटी वह दिल्ली पहुंच चुके थे। नवीन और कमलेश को हास्पिटल में दाखिल करवा दिया गया था। कमलेश तो जैसे ही हास्पिटल पहुंचा डाक्टरों ने जवाब दे दिया यानि कमलेश अपनी जान से हाथ धो चुका था। लेकिन नवीन में अभी सांस बाकी थी। हालत देखकर कलेजा मुंह को आ रहा था। आखिर 9 दिन की जिन्दगी और मौत की जंग में मौत जीत गई। राकेश और मीरा हाथ मलते रह गये। मीरा को बेटे की मौत ने सदमे में ला दिया, जब भी फोन की घण्टी बजती वह सहम उठती। सालों तक वह उस हादसे को भुला नहीं पाई।
बहुत सालों तक जैसे ही फोन की घण्टी बजती, कानों पर हाथ लगाकर मीरा चिल्लाने लगती - नहीं-नहीं फिर फ़ोन आ गया, फिर कोई बुरी खबर होगी और यह कहते हुए वह गहरे सदमे में चली जाती थी, पर कहते हैं कि वक़्त अच्छे - अच्छे घावों को भर देता है। परन्तु फिर भी हमारे बीच से जो लोग चलें जाते हैं, उनकी जब याद आती है, तो हमारे घाव हरे हो जाते हैं।