Shakuntla Agarwal

Abstract Others

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Shakuntla Agarwal

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"इल्ज़ाम"

"इल्ज़ाम"

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अरे भईया, ये पर्स कितने के दिये ?

मैडम, 800 का एक। 

800 का एक ?? 800 का, ये तो बहुत महँगा है। कीमत सही लगाओ तो मैं 3 पर्स ले लूँगी। 

मैडम, 50 कम दे देना।

50 रूपये क्या होते हैं ? 1000 के 3 नहीं दोगे क्या ?  

मैडम, 1800 लग जायेंगे। 

नहीं, और कम करना पड़ेगा। चलों 1200 लगा लेना। 

नहीं तो ऐसे कहते - कहते सौदा 1350 में आके अटका। परन्तु मधु पहले ही पैसे निकाल चुकी थी। उसने वैसे ही 1350 रूपये गिने, तभी उसके दूसरे मित्र भी उसी दुकान पर सामान देखने लगें। वह भी उनके साथ की - रिंग वगैरह देखने लगी और भूल से उसने की - रिंग का हिसाब किया और दुकानदार से कहा कि ये रहें की - रिंग के पैसे। 

दुकान वाले ने कहा कि मैडम, की - रिंग के तो आपने पैसे दे दिये, लेकिन पर्स के पैसे ? 

क्या बात कर रहे हो ? मैं तो दे चुकी। 

दुकान वाला - मैडम, अगर आपने पैसे दिये होते तो मेरे गल्ले में होते। आप इधर आकर देख लीजिये। 

परन्तु मधु टस से मस नहीं हुई। उसने छोटे पर्स में पैसे गिनने शुरू किये। उसमें से 1350 रूपये गायब थे। अब तो उसे पूरा यकीन हो गया कि वह पैसे दुकानदार को दे चुकी है। 

और वह कहने लगा कि - मैडम ! एक बार देख तो लीजिये। हो सकता है कि आपसे कोई गलती हो गई हो। 

परन्तु मधु को और गुस्सा आ गया था। उसने इल्ज़ाम लगाते हुए दुकानदार को कहा कि आप झूठ बोल रहे हैं। और आप क्या सोच रहें हैं कि मैं झूठ बोल रही हूँ। जब हम लाखों रूपये लगाकर यहाँ आये हैं तो मैं 1350 रूपये के लिये झूठ बोलूँगी ? 

मैडम, मैं ये नहीं कह रहा। परन्तु मेरे गल्ले में भी पैसे नहीं हैं। तो फिर पैसे कहाँ गये ?

लेकिन मधु तो और ज़ोर - ज़ोर से चिल्लाने लगी और उसने अपने दोस्तों को बुलाया और कहने लगी - मैंने इसको पैसे दे दिये थे, यह झूठ बोल रहा है। उसने चिल्लाकर दुकान वाले पर इल्ज़ाम लगाया कि वह झूठ बोल रहा है। मैं उसको पैसे दे चुकी हूँ। 

अरे मैडम ! तमाशा मत बनाओ। दुकान वाले ने कहा कि आप ये पर्स ले जाओ और उसने यह कहकर उसको ये पर्स दे दिया। 

मधु वह पर्स लेकर वापस चली गयी। वह खुश थी कि उसका पाँव ऊपर हो गया है। यह सब भरत बीच पर हुआ। वहाँ से वो लोग क्रिस्टल ब्रिज चले गये। वहाँ उन्होंने फिर ख़रीदारी की और बचे हुए पैसे उसने अपने पर्स में रख लिये। शाम को वह वापस होटल आ गयी और वह बहुत थक गयी थी और वह पर्स रखकर थोड़ी देर सुस्ताने लगी। 

रोज़ की तरह उसे हिसाब लगाने की आदत थी। सो मधु ने अपना पर्स खँगाला तो पाया कि उसने वो 1350 रूपये अपने पर्स की दूसरी जेब में रख लिये थे। अब तो मानों मधु पर घड़ों पानी गिर चुका था। उसका मन अब गल्याणी से भरपूर था। वह अपने - आप को माफ़ नहीं कर पा रही थी। उसने होटल के रिसेप्शनिस्ट से बात की - क्या पैसे दुकानदार तक पहुँचाये जा सकते हैं ? मधु ने कहा कि आप भरत बीच पर अन्नोउंस करवा देंगे क्या ? वह पैसे उस तक पहुँच सकते हैं ?     

रिसेप्शनिस्ट ने कहा - हाँ ! ऐसा हो सकता है। मधु के दिल को कुछ तस्सल्ली मिली। उसका बोझ कम हुआ। जैसे ही वह नाश्ते की टेबल पर पहुँची तो पता चला कि क्रूज का समय 3 बजे का हैं। सो हम सब भरत बीच पर वापस जा रहें हैं, मज़े करने। सो मधु अंदर से बहुत खुश थी। उसके दिल को बहुत सुकून मिला कि वह वापस भरत बीच जा रहें हैं। 

सबसे पहले वह उस दुकानदार को ढूँढ़ती हुई उसके पास पहुँची और भावुक होकर कहने लगी कि - भईया, मुझे माफ़ कर देना। मैंने तुम पर गलत इल्ज़ाम लगाया था। मैंने वो पैसे तुमको नहीं दिये। भूल से वो मैंने पर्स की दूसरी जेब में रख लिये थे। दुकानदार ने जैसे ही यह सुना वह भावुक हो गया और वह अपनी दुकान से बाहर आया और मधु के पैर छूने लगा। 

वह बोली - अरे, यह क्या ? 

मैडम, आप जैसे इन्सान दुनिया में बहुत कम होते हैं। कोई पैसे देने वापस नहीं आता। वहां पास के दुकानदार भी कहने लगें कि मैडम आप धन्य हैं।   

आप हमसे भी यहाँ से कुछ न कुछ लेकर जायें और मधु उनकी ईमानदारी और भोलेपन की कायल हो चुकी थी। उसे लगा कि अण्डेमान में अभी - भी भोले लोग निवास करते हैं जो की ईमानदार हैं। उसे अपनी करनी पर बहुत पछतावा हो रहा था क़ि उसने दुकान वाले पर नाहक़ ही इल्ज़ाम लगाया। 

अगर दुकान वाले वहीं मिलकर उसको ज़लील करते तो क्या होता - वह सोचने लगी कि पैसा ही सब कुछ नहीं हैं। सँस्कार से बढ़कर कोई चीज़ दुनिया में नहीं हैं। वह उन लोगों के सामने अपने - आप को बहुत बौना महसूस कर रही थी। मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि हमें बहुत सोच - समझकर कदम उठाने चाहियें और दुकान वाले की बात पर विश्वास न करकर मधु ने बहुत बड़ी गलती की। और अगर वह उसके गल्ले में पैसे देख लेती तो शायद वह उस पर यह इल्ज़ाम न लगाती। तो हमें नाहक ही किसी पर जल्दबाज़ी में इल्ज़ाम नहीं लगाना चाहिये। 



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