Asha Gandhi

Abstract Drama

4.8  

Asha Gandhi

Abstract Drama

अमर प्यार

अमर प्यार

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    नये घर में आकर आरती बहुत ही खुश थी। यूँ तो हर चार पांच सालों मे नए घर मे जाना एक आम बात थी ,पिताजी की नौकरी मे तबादला होता ही रहता था ,पर इस बार खुशी इस बात की थी कि रिटारमेंट के बाद पिताजी ने शहर की भीड़ भाड़ से दूर अलीगढ़ मे यह बड़ा सा मकान बनवाया था। सारा दिन सफाई व सेटिंग में बीता ,सामने रेलिंग से उस तरफ देखा तो घर के बिल्कुल सामने वाले मकान की छत नज़र आ रही थी वहां एक नवयुवक को देखा ,आरती को देखते ही उसने अपनी आँखे दूसरी ओर घुमा ली। शायद बहुत देर से वह उसे ही देख रहा था। 

     अगला दिन भी घर की सफाई -सजावट मे बीता। माँ ने भी उस नवयुवक की उपस्थिति को महसूस किया था ,तभी तो पिताजी से पूछ बैठी “ लगता है सामने घर में सिर्फ इकलौता लड़का ही रहता है ,शायद कुंवारा है। देखने में भी अच्छे घर का दिखता है ” पिताजी उसकी बातों पर हंस पड़े “तुम्हारी ताक झांक की आदत नहीं जाएगी ,एक दिन मे ही सब जान लिया ” इस पर माँ झेंप गयी। 

  अगले दिन आरती का कॉलेज शुरू होना था, पिताजी भी साथ जा रहे थे , नीचे उतरे तो बारिश शुरू हो गयी ,वह सड़क पर रिक्शा खोज ही रहे थे ,तभी एक बड़ी सी कार उनके पास आकर रुकी ,ड्राइविंग सीट मे सामने घर वाला नवयुवक बैठा था , “आइए अंकल मै आपको छोड़ देता हूँ ,बारिश बहूत तेज़ हो रही है इस रोड में रिक्शा नहीं मिलेगा ,मैं सामने घर पर ही रहता हूँ ” उसने कार का दरवाजा खोल दिया था ,पिताजी और आरती उसकी कार में बैठ गए। “हमें मेन रोड पर रिक्शा स्टैंड के पास उतार देना ”ओके अंकल वैसे आपको जाना कहाँ है?” “अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ” आरती ने जल्दी से जवाब देकर सामने के शीशे मे देखा। नवयुवक ने भी उसे शीशे देखा। पहली बार दो आँखे चार हुई ,पल भर के लिए उसकी धड़कन तेज़ हो गई थी। “ अरे मेरा ऑफिस भी तो वहीं है ,मैं आपको वहीं छोड़ देता हूँ।” “बेटा आप को तकलीफ़ होगी” “नहीं अंकल मेरा तो वही रास्ता है ” पीछे की सीट मे बैठी आरती की जब भी ड्राइविंग शीशे पर नज़र पड़ती वह उसी को देख रहा होता।

            उसके बाद से तो लगभग रोज़ का सिलसिला सा हो गया था। मानस अपनी छत पर खाना खा कर टहलने आता तो उसकी नज़र आरती की बालकनी पर ही होती ,आरती भी कनखियों से उसे देख रही होती।फिर एक दिन वह हुआ जो उनके जीवन की बहूत सुन्दर याद बन कर रह गया। वह कॉलेज से लौट रही थी सामने लगी कार के बग़ल में उस नवयुवक को खड़ा देख घबरा गयी। वह उसे अनदेखा कर जल्दी -जल्दी आगे बढ़ने लगी, “सुनिये !मै घर तरफ़ ही जा रहा हूँ ,आपको भी छोड़ दूँगा ” “सॉरी पर इस तरह रोज़ रोज़ आपको परेशान नहीं कर सकती ” आरती की आवाज़ मे घबड़ाहट थी। ” बारिश होने वाली है जल्दी बैठ जाइए नहीं तो दोनों भींग जाएंगे ” उसने जोर देते हुए कहा और सचमुच उसी समय तेज बारिश शुरू हो गयी। उसने गाड़ी का दरवाजा खोल दिया आरती भी बैठ गयी। आरती अपने दुप्पटे से बाहँ पोंछ रही थी उसने भी पॉकेट से रुमाल निकाल कर अपने सर को पोंछना शुरू कर दिया।उसने अपना नाम मानस बताया माँ बाप बचपन में गुजर गए थे बुआ ने ही पढ़ाया लिखाया था ,अलीगढ़ में एक साल पहले ही वह जॉब करने आया था। पहली मुलाक़ात में ही उसने आरती को बता दिया कि वह उसको बहूत पसंद करता है। 

        इसी बीच मानस की बुआ मानस के घर आयी ,आरती की माँ ने अपनी छत से ही खड़े -खड़े अपना परिचय दे दिया ,बुआ भी शहर में नयी थी सारा दिन अकेली रहती मानस तो सुबह ही ऑफिस चला जाता। आरती व उसकी माँ ने भी महसूस किया वह हर समय आरती को निहारती रहती। एक दिन मानस बुआ के साथ छत पर बैठा चाय पी रहा था बुआ ने पूछा “बेटा तुम्हे यह सामने वाली आरती कैसी लगती है?” मानस को अहसास नहीं था बुआ इतनी जल्दी उसके मन की बात जान जाएगी। “बहुत अच्छी है ,कॉलेज में पढ़ाई के साथ साथ सारे घर की देखभाल करती है ,देखने में भी सुन्दर है और कितनी सिंपल है , आज के समय में ऐसी लड़किया कहाँ होतीं हैं।” मानस को लगा कि वह कुछ ज्यादा ही बोल गया था। “ मुझे भी यह बहुत पसंद है ,सोचती हूँ इसे अपनी बहु बना लूँ ,तुम्हारा क्या ख्याल है ?” मानस तो मानो खुशी से उछल पड़ा ,अपनी खुशी छिपाते हुए बोला “ मैं क्या बोलूं तुम तो बड़ी हो तुम जो सोचते हो ,ठीक ही होगा ” “हाँ बेटा तुम तो अतुल को जानते ही हो बचपन से ही जिद्दी है ,तुम्हारे फूफा के जाने के बाद तो और भी गलत आदतें लग गयी हैं ,रोज़ शराब मे डूबा रहता है , कारोबार में भी नुकसान बढ़ता जा रहा है ,सोचती हूँ आरती जैसी लड़की उसकी जिंदगी मे आ जाएगी ,तो सुधार लेगी ” मानस तो पर मानो बिजली गिर पडी ,उसके पहले प्यार की कुर्बानी मांगी जा रही थी। 

   अतुल को बुआ ने अलीगढ बुला लिया था। उसे भी आरती बहुत पसंद आयी थी। आरती के माता पिता भी अपनी इकलौती संतान का रिश्ता एक सम्पन परिवार मे करने को तैयार हो गए थे। बुआ रिश्ता पक्का कर अतुल को लेकर वापिस शादी की तैयारियों मे लग गयी। मानस कॉलेज के गेट के बाहर ही आरती का इंतजार कर रहा था। उस दिन उसने आरती से वादा लिया कि वह उनके रिश्ते को सदा के लिए भूल जाएगी।आरती बहुत नाराज़ थी पर मानस ने अपने प्यार की क़ुर्बानी देकर बुआ के अहसानों का कर्ज चूका दिया था। 

     बुआ की मौत की खबर सुन मानस आगरा पहुँचा। क्रियाकर्म कर दूसरे दिन मानस भी लौटने की तैयारी मे था। रात मे अचानक आरती की सुबकने की आवाज सुन मानस के कदम रुक गए। आरती के कमरे मे गया तो वह फुट फुट कर रो पड़ी ,उसने बताया अतुल रोज़ रात अपनी रखैल के पास जाता है ,वह उसे रोकें तो मरने को दौड़ता है , माँ भी इसी ग़म मे चली गयी। “मैं कल ही अतुल को समझूंगा ” आरती को दिलासा दे वह कमरे से निकला तो अतुल नशे की हालत मे सामने पड़ गया “तो यह है तुम्हारी सती सावित्री का असली रूप सास की चिता अभी ठंडी भी नहीं हुई अपने यार के गले लग कर रंगरलियां मनाई जा रहीं हैं ”. “अ तू ल ” मानस चिल्लाया “चिल्लाओ मत मानस मैं सब जानता हूँ ,जिस नज़रों से तुम आरती को देखते हो मैं सब समझाता हूँ ,तुमने आज तक जो शादी नहीं की मैं अच्छी तरह से समझता हूँ ,तुम तो यही चाहते हो आरती कब मुझे छोड़े और तुम इसे ले जाओ ” “अतुल तुम होश में नहीं हो मैं कल बात करूँगा ” मानस ने उसे जोर से कहा। 

     बुआ को मरे बीस साल बीत गए मानस ने भी अपना तबादला करवा लिया था। कलकत्ता आये उसे बीस साल हो गए थे ,कई बार आरती की खबर लेने का मन होता ,पर अतुल की बातें याद कर मन को मार लेता।उसने अपने आप को काम मे पुरी तरह से वयस्त कर लिया था। इतवार का दिन था ,हर हफ्ते की तरह मॉल जाकर नयी किताबें ढूंढ रहा था ,अचानक किसी जानी पहचानी आवाज सुनकर उसके कदम वहीं रुक गए “शिखा तुम मेरी बात कब समझोगी?” मुड़ कर देखा तो एक प्रौढ़ा चश्मा लगा कर खड़ी थी। आरती को पहचानने मे देर नहीं लगी।  आरती ने भी मानस को पहचान लिया ,दो पल के लिए उनकी दुनिया वहीं रुक सी गयी थी। शिखा ने जब मानस को देखा तो बोली, “लेट मी गॅस मॉम — मानस अंकल ना ! ” मानस की तरफ इशारा करते हुए पूछा। “हाँ बेटा लेकिन तुमने मुझे कैसे पहचान लिया ” मानस ने प्यार से शिखा के सर पर हाथ रख दिया बचपन से आपके बारे मे माँ ने इतना कुछ बताया कि आपको देखते ही पहचान गयी। उसकी बातों से आरती झेंप गयी। 

     शिखा अतुल की आख़री निशानी थी ,शिखा जब पेट में ही थी अतुल की एक्सीडेंट में मृत्यु हो गयी थी ,आरती ने अकेले ही उसे पढ़ा लिखा कर बड़ा किया था ,कलकत्ता अपनी पहली जॉब के लिए आई थी। शिखा भी आरती की तरह बहुत ही समझदार थी। आरती की बाते सुन कर मानस की आँख भर आयी थी , “तुमने मुझे खबर ही नहीं दी ” अंकल आप तो खुद भाग गए थे अब प्लीज् हमें अपनी फैमिली से मिला दो ”शिखा ने एक पल शशंकित हो पुछ लिया । “बेटा तुम हो न मेरी बेटी ” तो आप ने शादी नहीं की? मानस ने ना की मुद्रा मे सिर हिला दिया , शिखा ख़ुशी से मानस के गले लग गयी। “आई लव यू पापा, मेरी माँ को अपने घर ले चलो न ! ” मानस की आँखे भर आयी थी। 

     कहते हैं सच्चा प्यार कभी मरता नहीं , मानस और आरती का प्यार जिसे उन्होंने समाज के बंधनों के लिए कुर्बान कर दिया था। आज उसे जीवन के आख़री मोड़ पर मिलन हुआ। वासनाओं की पूर्ति से परे आत्मा की गहराईयों से बंधा प्यार। अमर प्यार। 


  


      


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