शर्त
शर्त
चाची माँ के आने से हमारे घर की शान बढ़ गयी थी ,ख़ानदान की सबसे ज्यादा पढ़ी लिखी बहु आने से दादीजी भी बहुत खुश थी पूरेआस पड़ोस की बहुओं में हमारी चाची माँ ही दसवीं पास थी। उन दिनों की दसवीं पास का स्टैण्डर्ड शायद आज कल के ग्रेजुएट से भीकही ज़्यादा था।तभी तो जब हमारा अंग्रेजी स्कूल में दाख़िला कराना था तो चाची माँ ही हमारे साथ गयी क़्योकी हमारे घर मे अंग्रेजीसिर्फ चाची माँ ही समझती व बोल सकती थी।
उन दिनों स्कूल कम होने की वज़ह से सहशिक्षा का प्रचलन ज्यादा था। वस्तुतः चाची माँ की शिक्षा भी बालकों के साथ ही हुई थी।घर में सिर पर पल्ला ढक कर सारा दिन चूल्हा चौका करने वाली हमारी चाची माँ जब हमारे हेडमास्टर जी से अंग्रेजी में बाते कर रही थीतो चाचा जी उनका चेहरा स्तब्ध हो देख रहे थे।
बात क़ाबलियत की तारीफ़ तक तो स्वीक़ृत थी पर पुरुष प्रधान समाज मे पत्नी को पति से ज्यादा सम्मान मिले, यह उनके पौरुष को स्वीकार न था।चाची माँ को नीचा दिखने का कोई भी मौका नहीं छोड़ा जाता पर शायद चाची माँ की शिक्षा का असर था या उनकासदा हँस कर बात को मज़ाक में टाल देने का स्वाभाव ,वह हमेशा हँसती रहती। पर अंत में चाचाजी को मौका मिल ही गया।
चाची माँ के सहपाठी मित्र ब्रिजेश का तबादला हमारे शहर में हुआ तो वह हमारे घर मिलने आये। उनका आना जाना उनको अखरनेलगा। इस बीच चाची माँ के शादी के तीन साल बाद गर्भवती होने की खबर पर सब बहुत खुश थे पर चाचाजी पर मानों शक का भूतसवार हो गया था ,चाची माँ की कसमों का उन पर कोई असर न हुआ अंत में उन्होंने शर्त रख दी “ तुम्हे यह बच्चा गिरना होगा, नहीं तो तुम्हें यह घर छोड़ना होगा।”
सीता से एक बार फिर से अग्नि परीक्षा मांगी जा रही थी लकिन इस बार उस सीता ने अग्नि परीक्षा को नहीं स्वीकारा, माँ की ममता ने भ्रुर्ण को ख़त्म करना स्वीकार नहीं किया।बरसों बाद एक नौजवान को अपना ही रूप देख चाचाजी चौंक गए, काश उन्होंने परीक्षा की शर्त न रखी होती।