गुलाब घर
गुलाब घर
“सर आज फिर एक नया एडमिशन आया है।" गोविन्द के आते ही संजय ने कहा।
“ कितनी बार कहा संजय, ऐसे नहीं कहते वह हमारे नए गुलाब है, नए एडमिशन नहीं।"
गोविन्द ने संजय को नाराज होते हुए समझाया।
"तो - कितना बड़ा है, हमारा यह नया गुलाब।" अपनी बात पूरा करते हुए पूछा।
“सर शायद दो दिन का, उर्मिला मासी उसका चेक-अप करवाने डाक्टर के पास ले गयी है।" संजय ने गोविन्द को पूरी खबर दे दी थी।
गोविन्द की पत्नी प्रतिभा ने जब गुलाब घर खोला था तो उस समय शुरु में केवल दो ही बच्चे थे। कन्नौज का यह गुलाब घर पहले गोविन्द का घर हुआ करता था। घर भी ऐसा मानो राजा महराजाओं की हवेली जैसा। गोविन्द अपने परिवार की इकलौती संतान था। पढ़ाई ख़त्म करते ही उसे फैक्टरी की सारी जिम्मेदारीयाँ पकड़ा दी गयी। कनौज की उस विशाल इत्र की फैक्टरी का सारा काम गोविन्द ही देखता था, इसी सिलसिले मे उसे देश विदेश भी जाना पड़ता। उन दिनों संचार साधन इतने विस्तृत नहीं थे। नई नवली दुल्हन को पति का साथ मिले महीनों बीत जाते।
शादी के दस वर्ष बाद भी उन्हे संतान सुख न मिला। समाज के आक्षेपों से दोनों ही दुःखी थे। उन दिनों निःसंतान होना एक बहुत बड़ी क्षीणता मानी जाती थी। स्त्री को सहनशीलता की शक्ति क़ुदरत ने दी है पर जहाँ पुरुष के पौरुष पर उपहास होता है तो वह सहन नहीं कर पाता। गोविन्द ने विदेश मे दूसरा विवाह कर लिया था।
प्रतिभा ने अपनी उस हवेली को गुलाब घर बना लिया। जिस उपवन में एक फूल न खिला था, वह अब हरदम भरा -पूरा रहता। प्रतिभा की मृत्यु के बाद गोविन्द ने उस गुलाब घर का काज सार संभाल लिया था। हर अनाथ बच्चे का वहाँ स्वागत होता, हर बच्चा वहाँ गुलाब के नाम से जाना जाता।