दुखते रिश्तें
दुखते रिश्तें
शादी की रस्में पूरी करते हुए उसकी नज़रें अखिल पर ही टिकी थी। वह कुछ उखड़ा उखड़ा व परेशान सा दिख रहा था।उसे याद था, जब शादी की बात चली थी तो चाची ने जो फ़ोटो दिखाई थी उसमे अखिल का चेहरा मुस्कुराता हुआ था सभी को अच्छा लगा था।चाची ने भी अपने ममेरे भतीजे की बहुत तारीफ़ की थी “बहुत ही हँसमुख है, अंकिता को हमेशा ख़ुश रखेगा। जिस दिन सगाई हुई उसीदिन सबने अखिल को पहली बार देखा था। सभी को अखिल पसंद आया था, दादीजी ने उसके हाथ इक्कीस रुपये रख कर बात पक्की कर दी। चाची ने अखिल के बगल में जब उसे बैठाया तो अखिल की माताजी ने भी उसके हाथ मे सगुन पकड़ा दिया।
उस दिन भी अंकिता ने भाँप लिया था अखिल इस सगाई से खुश नहीं है लकिन अपने मन की शंका को दूर करने के लिए किसी से पूछने का साहस उस बिना माँ बाप की बेटी में न था। मेहमानों को विदा कर अखिल जब कमरे में आया तो बुरी तरह से थक चुका था।आते ही बोला “ आज बहुत थक गया हूँ, तुम भी थक गयी होगी, सो जाओ। कल सुबह जल्दी उठना है और सचमुच पलंग पर लेटते ही सो गया। सुबह अंकिता की आँख खुली तो अखिल कमरे में नहीं था। पलंग के पास एक कागज़ में कुछ लिखा पड़ा था “मैं किसी को धोखा नहीं दे सकता, मैं अपने पहले प्यार निशा के पास जा रहा हूँ, तुम्हारे साथ शादी करना मेरी मज़बूरी थी, हो सके तो मुझे माफ़ कर देना।”
आज दस साल बाद अचानक अखिल लौटा तो सास की आँखें नम थी, ससुरजी ने उसे दरवाजे पर ही यह कहकर रोक दिया “ यह घर अब हमारी अंकिता बेटी का है अगर वह इज़ाज़त दे, तभी तुम आ सकते हो, हमने बेटा खो कर यह बेटी पाई है, लेकिन अब बेटी खोकर बेटा नहीं चाहिए ” अंकिता की आँखें बह रही थी सुबह का भुला घर लौटा था, लेकिन ख़ून के रिश्तों से भी ज्यादा गहरा उसे गैरों ने अपना बनाकर कर लिया था।
