Shubhra Varshney

Action Inspirational

4.0  

Shubhra Varshney

Action Inspirational

अमर जवान

अमर जवान

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अब वह भी अमर जवान था

पंडाल रंग-बिरंगी झालरों से सजा हुआ था। अवसर था स्वतंत्रता दिवस के पावन पर्व पर अपने अदम्य साहस के द्वारा कुछ कर गुजरने के जज्बा रखने वाले सेना के सिपाहियों और वीर जवानों को सम्मानित करने का।

स्वाभिमान के प्रतीक तीनों रंग के गुब्बारे पंडाल के छत से लगे उसकी सुंदरता को दूना कर रहे थे। पंडाल खचाखच भरा जा रहा था।

जवानों के परिजन आज इस भव्य आयोजन में सम्मिलित होकर गर्व का अनुभव कर रहे थे।

यही तो वह खास दिन होता है जब साल भर अपने इन वीर जवानों से दूर रहकर और हमेशा इनकी सलामती की कामना करते अपनी सांसे चलाने वाले इनके परिजन इनको सम्मानित होता देखकर अपनी नम आंखों के साथ फक्र से अपना सीना चौड़ा करते हैं।

सीआरपीएफ के सूबेदार आ चुके थे। असिस्टेंट कमांडेंट का इंतजार हो रहा था। थोड़ी देर बाद वह भी आ गए।

उनके स्वागत में सभी जवान और परिजन स्वागत की मुद्रा में खड़े हो गए। राष्ट्रगान के साथ ध्वजारोहण का कार्य संपन्न हुआ। और अब बारी थी पुरस्कार वितरण की।

एक-एक करके नाम पुकारे जा रहे थे। फिर नाम आया बलदेव सिंह।

अनाउंसमेंट होने लगा ।"कॉन्स्टेबल बलदेव सिंह। यह वह शख्स हैं जिन्होंने अदम्य साहस से ना सिर्फ चार आतंकवादी मार गिराए बल्कि हथियारों का जखीरा भी इनकी सहायता से हमारी टीम ने बरामद किया। आज इनको सम्मानित करते हुए सीआरपीएफ गर्व महसूस कर रही है"

 पंडाल में अपनी मां के साथ बैठा बलदेव मां के पैर छूकर धीरे-धीरे स्टेज की तरफ चलने लगा। छोटी बहन और मां की आंखों में आंसू थे और सब ताली बजा रहे थे। बलदेव को मेडल पहनाए जाने लगा। पर यह क्या। मेडल तो बलदेव पहन ही नहीं पा रहा था बहन जोर जोर से हिला जा रही थी।

"बल्लू भैया। बल्लू भैया। उठो बल्लू भैया मां बहुत नाराज है। आज फिर तुम्हारे टाइगर ने घर गंदा कर दिया है"

"धत्त तेरे की। आज फिर यह सपना ही था",बलदेव उर्फ उर्फ बल्लू अपना सर खुजलाते लाते हुए उठ कर बैठ गया।

अंदर अम्मा चीख रही थी। वह सोता रह गया था। अपने पालतू कुत्ते टाइगर को टहला कर नहीं ला पाया था फिर अब उसे घर तो गंदा करना ही था।

"कहां से यह आफत मोल ले ली है इसने। अरे हम कौन से नवाब साहब के खानदान के हैं जो हमें पहरेदारी के लिए इतने मोटे ताजे कुत्ते की जरूरत है। और पता ना कपड़े कैसे धोते होगा इसके साथ। कितनी बार कही है मैंने ।जहाँ से लाया है इसे वही छोड़ आ। पर मेरी सुनता कौन है। मैं बेचारी किस-किस का ध्यान रखूॅ।" अब सफाई करती हांफती बल्लू की माँ सावित्री रोने लगी थी।

"ला ला अम्मा झाड़ू मुझे दे। तू परेशान ना हो तो बाहर जाकर खाट पर बैठ आराम से। अरे रूपा मां को चाय बना कर ला बढ़िया वाली और एक कप मुझे भी" मां के हाथ से झाड़ू छीन बल्लू अब कमरे की सफाई कर रहा था और मुस्कुराती हुई रूपा चाय बनाने निकल गई थी।

पिता के गुजर जाने के बाद बल्लू अपनी मां सावित्री और बहन रूपा के साथ अपने पिता के पुश्तैनी कपड़े धोने के व्यवसाय को आगे तो बड़ा रहा था पर यह काम वह बड़े बुझे मन से करता था।

बल्लू के दादा स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस द्वारा गठित आजाद हिंद फौज के वीर सिपाही रहे थे। बल्लू ने कभी उनके किस्से उनके मुंह से तो नहीं सुने थे पर उसके पिता जब जीवित थे तो उसे अपने साथ काम पर ले जाते अपने पिता के साहसिक कारनामे सुनाते। अपने दादा के जीवन से प्रभावित होकर बल्लू बेचारा सेना में जाकर देश की सेवा में समर्पित होना चाहता था पर उसे कोई मौका मिल ही नहीं रहा था। सेना में भर्ती का।

ना तो बल्लू ढंग से शिक्षा ही प्राप्त कर पाया था और ना ही उसकी कद काठी इस प्रकार थी कि उसे सेना में भर्ती मिल जाती पर उसके सीने में कुछ कर दिखाने का जज्बा जरूर बरकरार था।

वह अक्सर इसका जिक्र अपने कामों पर भी किया करता था। लेकिन उसके बढ़िया कपड़े धोने के कारण कोई भी नहीं चाहता था कि वह यहां से काम छोड़ कर जाए। सब तरफ से निराश बल्लू बस जैसे-तैसे समय काट रहा था। एक दिन उसके काम पर एक परिवार ट्रांसफर होकर जा रहा था तो उस घर के मालिक को अपने पालतू कुत्ते की चिंता पड़ी जिसे वह कारणवश अपने साथ नहीं ले जा सकते थे।

बल्लू हमेशा उस ताकतवर और स्वस्थ कुत्ते टाइगर को देख कर बहुत खुश होता था और जब उसे पता चला कि मालिक इसे किसी को देना चाहते थे तो उसने आगे बढ़ कर टाइगर को अपने साथ ले जाने की बात कही।

अब टाइगर घर आ तो गया था। लेकिन उसकी खुराक से परेशान बल्लू की मां उसे कहीं छोड़ आने को कहती। आधा किलो आटे की रोटी तो टाइगर एक बार में ही खा जाता था और घर में शुद्ध शाकाहारी वातावरण होने के कारण बल्लू को चुपके-चुपके उसे बाहर उसके मन की पेट पूजा भी करानी होती।

एक दिन स्थानीय चुनाव में सेना के कुछ जवान एक स्कूल में आकर रुके थे। हमेशा से जवानों का मुरीद बल्लू वहां जाकर उन्हें चुपके चुपके देख रहा था।

थोड़ी दिनों में वहां जाते हुए उसे समझ में आ गया था कि इन लोगों के साथ कोई कपड़े धोने वाला कर्मचारी नहीं आया था। एक दिन एक जवान को कपड़े धोते देख वह डरते डरते उसके पास पहुंचा और बोला," लाओ भाई यह तो काम मैं कर दूं तुम्हारा?"

उस मरियल से लड़के को यह कहता देखकर जवान जोरों से हंसा," तू धो लेगा हमारे कपड़े?"

"हां भाई जी मुझे मौका दो मैं यही काम करता हूं", कहता हुआ बल्लू अब उसके हाथ से कपड़े लेकर खुद धोने बैठ गया था।

थोड़ी ही देर में उसने चकाचक सारे कपड़े धो दिए। उसको ऐसा करते देख कर अब और भी जवान उसके पास आकर अपने कपड़े डाल गए थे।

मात्र एक घंटे में ही बल्लू ने सभी के कपड़े चमका कर धो दिए। उसकी काबिलियत देखकर कैंप में उसकी प्रशंसा होने लगी।

जब इसकी खबर साथ आए सूबेदार को लगी तो उसने बल्लू को बुलाकर उससे पूछा," काम तो तू अच्छा करता है ।लड़के हमारे साथ काम करेगा। देख हमें अलग-अलग जगह जाना होता है तो तुझे अपना घर तो छोड़ना ही पड़ेगा यहां पर। साथ चलेगा सेना में भर्ती होकर?"

"सेना में भर्ती। सेना में भर्ती", ये शब्द बल्लू के कान में घंटियों की तरह गूंज रहे थे। वह तो खुशी के मारे बावला सा हो गया था।

सूबेदार को तुरंत हां कह कर वह दौड़ता हुआ घर पहुंचा था।

घर जाकर भी एक तरह से नाचने लगा था। सावित्री का हाथ पकड़कर उसे गोल गोल घुमाने लगा।

"अरे बल्लू काहे इतना खुश हो रहा है रे तू" बल्लू को इतना खुश देखकर अब सावित्री मुस्कुराते हुए कह रही थी।

"अम्मा मेरी प्यारी अम्मा। मेरे सपने पूरे हो गए मुझे मिल गई सेना में नौकरी"

बल्लू तो उत्साह में कह रहा था और सावित्री का जी धक से रह गया।

वह धम्म से चारपाई पर बैठ कर रोने लगी।

"अरे बल्लू अगर तू सेना में जाएगा तो तू यहां से चला जाएगा। कैसे रहेंगे हम तेरे बिना। मैं तुझे जाने नहीं दूंगी", कहकर वह रोती हुई अंदर चली गई।

दो दिन घर में आपस में किसी ने बात नहीं की। बल्लू काम पर भी नहीं गया घर पर उदास चारपाई पर लेटा रहा।

रूपा के समझाने पर और बल्लू की हालत देखकर बुझे मन से सावित्री को हामी भरनी पड़ी।

बल्लू ने सावित्री को समझाते हुए कहा कि सेना में उसे पगार भी तो अच्छी मिलेगी तो घर चलाने की चिंता वह ना करें। वे उन दोनों का पूरा ध्यान रखेगा।

"अरे हमारा तो तू ध्यान रख लेगा ।पर इस कमबख्त को अपने साथ ले जाना। भैया मैं ना रोटी बनाऊंगी इसकी ।अब अपने साथी से वहीं पर खाना खिलाना", सावित्री कहे जा रही थी और टाइगर पूंछ हिला रहा था। रूपा और बलदेव हंसे जा रहे थे।

और वह दिन भी आ गया जब बल्लू सेना के ट्रक में बैठकर मां और रूपा को उदास छोड़कर अपने सपनों के जहां में चला गया था।

यहां से जवान सीधे सीमा पर पहुंचे थे। पहाड़ों की ठंडी हवा और कैंप में देशभक्ति का जज्बा बल्लू को रोमांचित करे जा रहा था।

बल्लू दिन भर मेहनत से काम करता। और कभी छुपकर और कभी सामने से जवानों की होती ट्रेनिंग देखता।

दिनभर हाड़ तोड़ मेहनत करने के बाद रात में वह टाइगर से चिपट कर सो जाता।

इधर वह कुछ दिनों से देख रहा था कैंप में तनाव का माहौल था। बीच-बीच में कुछ सीनियर अधिकारी भी आकर मीटिंग कर रहे थे।

जब उसने इस विषय में सेना में तैनात रसोईए महेंद्र से ,जो कि उसका दोस्त बन चुका था पूछा।

वहां का पुराना कर्मचारी होने से महेंद्र जो कि वहां की गतिविधियों से परिचित था बोला, "अरे ऐसा लगता है कि इन लोगों को कहीं पर आतंकवादियों के छुपे होने की भनक लग गई है। बस उन्हीं पर हमला कर उनके अड्डे को ध्वस्त करने की योजना बनाने में लगे हुए हैं यह लोग"

बल्लू अपने जीवन में इस तरह की बातें कहानियों में सुनता आया था ।वह पहली बार इस तरह की बातें देख रहा था। उसके शरीर में रोमांच की सिरहन दौड़ गई।

महिंद्र सही कह रहा था। पास की पहाड़ियों में पीछे आतंकवादियों ने अपना अड्डा बना लिया था जो चुपके चुपके भारतीय सीमा में प्रवेश करने की योजना बना रहे थे। ड्रोन के द्वारा सेना इस बात का पता लगा चुकी थी कि कुल पांच आतंकवादी थे जो घुसपैठ की कोशिश में लगे हुए थे।

योजना बनाई जा रही थी और टीम गठित हो चुकी थी।

और वह दिन भी आया जब टीम ने अड्डे पर अटैक कर दिया। दो आतंकवादियों को मार गिराया था टीम ने और एक को जिंदा पकड़ लिया था। दो का अभी भी कुछ पता नहीं था तो खतरा बरकरार था।

दोनों फरार आतंकवादी अड्डे को छोड़ गए थे और वहां पर भारी मात्रा में हथियारों का जखीरा बरामद हुआ।

कैंप में जश्न का माहौल था आखिर तीन आतंकवादियों को काबू में कर लिया गया था। पर कमांडेंट को चिंता उन दो आतंकवादियों की थी जो छुप चुके थे और अचानक कोई भी गंभीर वारदात को अंजाम दे सकते थे।

हथियारों वाली जगह जब कैंप के सब लोग हथियारों का जखीरा देखने जा रहे थे तो भला बल्लू कैसे पीछे रहता।

भारी मात्रा में एके-47 और गोला बारूद देखकर बल्लू की आंखें खिले जा रहीं थीं। उसका मन रोमांच से भर गया था। उसने पास जाकर एक गन छूकर देखी उसका मन भी उसे चलाने का करने लगा। वह फिर से दिवास्वप्न देख रहा था कि वह एके-47 से आतंकवादियों को भून रहा था।

महेंद्र ने उसे कंधे पर हाथ रखकर आवाज दी," अरे भाई चलो अभी पर खड़े रहोगे क्या?"

रोमांच से भरा बल्लू चलने लगा। पर देखा टाइगर उसके साथ नहीं आना चाहता था। वह हथियारों और टेंट में रखे सामानों को सूंघ रहा था। बल्लू से खींचकर टेंट ले जाना चाहता था लेकिन वह बल्लू को दूसरी दिशा में ले जाने की कोशिश कर रहा था।

टाइगर को ऐसा करते देख बल्लू ने उसके कान में फुसफुसा कर कहा," अरे क्या हो गया चलता क्यों नहीं। तू अगर कुछ गड़बड़ करेगा तो हम दोनों को कैंप से बाहर निकाल कर मुझे नौकरी से बाहर कर दिया जाएगा"

लेकिन टाइगर अभी भी चलने को तैयार नहीं था। तभी बल्लू के दिमाग में कौंधा कि शायद टाइगर को छुपे हुए आतंकवादियों के विषय में पता लग चुका था।

सब लोग वापस कैंप की ओर जा रहे थे। बल्लू ने सबकी नजर बचाकर जखीरे में से दो तीन गोला बारूद अपनी जेब में डाल दिए।

अब वह और टाइगर झाड़ियों में बढ़ रहे थे। महेंद्र ने जब उससे पूछा कि वह कहां जा रहा था तो बल्लू ने कहा कि," शायद आज मैं देश के काम आ जाऊं" कहकर बल्लू तेजी से आगे बढ़ गया था और महेंद्र उसे आश्चर्य से देखता रह गया था।

टाइगर बल्लू को वहां ले ही गया जहां पर दोनों आतंकवादी छुपे बैठे थे। दोनों आतंकवादी वायरलेस से किसी पर बात कर रहे थे। उनकी बात सुनकर बल्लू को यह तो समझ में आ रहा था कि वे दोनों कोई योजना बना रहे थे।

अचानक टाइगर के भौंकने की आवाज से आतंकवादियों को बल्लू और टाइगर के विषय में पता चल गया। बल्लू ने टाइगर से कैंप से किसी को बुलाकर लाने को कहा ।टाइगर भौंकता हुआ वहां से कैंप की ओर भाग चुका था।

बल्लू आतंकवादियों के द्वारा दबोचा जा चुका था। थोड़ी देर में संघर्ष करने के बाद ही बल्लू आतंकवादी की गोली का शिकार हो गया लेकिन इससे पहले बल्लू प्राण त्यागता। उसने अपनी जेब में रखे गोले बारूद की पिन निकाल दी थी और तेज विस्फोट के साथ दोनों आतंकवादियों के परखच्चे उड़ गए थे।

थोड़ी देर में सेना की टीम वहां पहुंच चुकी थी। जहां दोनों आतंकवादी दम तोड़ चुके थे। वही खून में लथपथ बल्लू सेना के जवानों को देखकर मुस्कुराता हुआ सेल्यूट कर रहा था। थोड़ी देर बाद बल्लू ने दम तोड़ दिया।

आज बल्लू का सपना साकार हो गया था। मंच सजा था। सम्मान समारोह भी हो रहा था। अम्मा और रूपा की आंखों में आंसू थे। मरणोपरांत बल्लू को सेना के वीर पदक से सम्मानित किया जा रहा था। एक पदक टाइगर को भी पहनाया गया। अब टाइगर बल्लू की तस्वीर के आगे बैठा था उसकी आंखों के आंसू उसके दर्द को बयां कर रहे थे

अपनी देशभक्ति के जज्बे से मर कर भी बल्लू अमर हो गया था। अब वह भी अमर जवान था।


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