Gita Parihar

Abstract

3  

Gita Parihar

Abstract

अक्षय तृतीया

अक्षय तृतीया

3 mins
187


दोस्तों, जिसका क्षय न हो, यानि अक्षय। वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को अक्षय तृतीया या आखा तीज कहा जाता है। अक्षय तृतीया ऐसा मूहूर्त है जिसमें पितरों को किए गए तर्पण, पिन्डदान व दान, जप,तप सभी कार्यों का अक्षय फल मिलता है। आज दिये दान के पीछे यह लोक विश्वास है कि इस दिन जिन-जिन वस्तुओं का दान किया जाएगा, वे समस्त वस्तुएँ स्वर्ग या अगले जन्म में प्राप्त होंगी।

 इस दिन गंगा स्नान करने से तथा भगवत पूजन से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और जाने-अनजाने किए गए अपराधों की सच्चे मन से ईश्वर से क्षमा प्रार्थना करें तो भगवान अपराधों को क्षमा कर देते हैं।

 भगवान विष्णु के नर-नारायण, हयग्रीव और परशुराम अवतरण भी इसी तिथि को हुए थे। ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का आविर्भाव भी इसी दिन हुआ था। इस दिन श्री बद्रीनाथ जी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है और श्री लक्ष्मी नारायण के दर्शन किए जाते हैं। प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बद्रीनारायण के कपाट भी इसी तिथि से ही पुनः खुलते हैं। वृंदावन स्थित श्री बांके बिहारी जी मन्दिर में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं, अन्यथा वे पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं। इसी दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था।  

सतयुग और त्रेता युग का प्रारंभ इसी तिथि से हुआ है द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ था।

 महाभारत की एक कथा है कि द्रोपदी के पास वनवास काल में अक्षय पात्र था जिससे वह प्रतिदिन असंख्य ब्राह्मणों को भोजन कराती थी। दुर्योधन द्रोपदी को दुर्वासा ऋषि से श्राप दिलाने की नीयत से पांडवों का अतिथि बना भेजता है। अक्षय पात्र से एक दिन में तभी तक भोजन प्राप्त होता था जब तक द्रोपदी स्वयं भोजन न करे। दुर्वासा ऋषि भी पांडवों के यहां द्रोपदी के यहां संत समाज को लेकर तभी पहुंचते जब वह भोजन कर चुकी होती है।

द्रोपदी दुर्वासा से स्नान कर आने की विनती करती है और श्री कृष्ण को पुकारती है भगवान वहां पहुंच कर द्रोपदी से भोजन की मांग करते तब द्रोपदी एक चावल का दाना जो अक्षय पात्र में लगा होता है वह परोसकर अपनी असमर्थता व्यक्त करती कि इसके अलावा कुछ भी नहीं है। भगवान उस दाने को ग्रहण इस भाव से करते कि समस्त प्राणी इससे तृप्त हों। दुर्वासा भी नहाते हुए ही इतने तृप्त हो गये कि फिर वे द्रोपदी के यहां नहीं जा सके और आगे बढ़ गये। इस प्रकार प्रभु ने दुर्वासा कोप से पांडवों की रक्षा की। यह घटना भी अक्षय तृतीया को ही घटित हुई थी।

आज ही के दिन माँ गंगा का अवतरण धरती पर हुआ था ।

माँ अन्नपूर्णा का जन्म भी आज ही के दिन हुआ था‌

कृष्ण और सुदामा का मिलन आज ही के दिन हुआ था।  

 कुबेर को आज ही के दिन खजाना मिला था।  

प्रसिद्ध तीर्थ स्थल श्री बद्री नारायण जी का कपाट आज ही के दिन खोला जाता है।  

 इस दिन से किसी भी शुभ कार्य का प्रारम्भ किया जा सकता है।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract