Prabha Gawande

Abstract

4.0  

Prabha Gawande

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अग्निदग्धा

अग्निदग्धा

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भीनी, हाँ यही नाम दिया था उसे मम्मी ने। मम्मी हमेशा कहती तू सबके मन को भा जाती है न इसलिए भीनी कहती हूँ तुझे। वैसे स्कूल मेंं भारती नाम लिखाया गया था उसका। साँवली रंगत और बडी-बडी बोलती आँखें। बचपन से ही उसके बाल खूब लंबे और रेशमी थे । पंद्रह की होते होते गज़ब का निखार आया था उसमें, एकदम स्लिम और सलोनी दिखने लगी थी भीनी।

निशा और राहुल का मध्यम वर्गीय छोटा सा परिवार था। माँ राधादेवी और दो फूल सी बेटियाँ भीनी और महक। बहुत सुखी गृहस्थी थी। हाँ माँ राधादेवी को एक कुलदीपक न होने का बहुत दुख होता था, मगर वह दूसरी सासों के जैसे बहू को उलाहना नहीं देतीं थीं, वे पढ़ी-लिखीं महिला थीं, अच्छे से पता था इसमें बहू का कोई दोष नहीं बेटा होना न होना उनके बेटे पर ही निर्भर है। बहरहाल वह अपनी पोतियों से बहुत प्यार करती थीं।

समय सुख से बीत रहा था, भीनी अब कालेज खत्म करके कालेज में लेक्चरर् हो ग ई थी, अक्सर कालेज के लड़के उसे ब्लैकब्यूटी कह दिया करते और वह अनसुना कर देती थी, अपनी मेहनत के दम पर उसने जल्द ही गवर्नमेंट कालेज में अच्छी तनख्वाह पर नौकरी हासिल कर ली थी।

जल्द ही कौस्तुभ के घरवाले उसे देखने आए और एक हफ्ते में उसकी शादी हो गई। सब कुछ सपने जैसा था। कौस्तुभ बहुत खूबसूरत था, एमबीए था, खुद का बिजनेस था।

एक हफ्ते की लीव के बाद भीनी कालेज जाने लगी।घर का सारा काम निबटाकर, माँ पापा को खाना वगैरे खिलाकर वह कालेज आती फिर जाकर पूरा घर साफ करती डिनर तैयार करती और कौस्तुभ का इंतजार।

धीरे -धीरे सासुमाँ उसको ताने देने लगीं। इतना पक्का रंग है, हमारी तो मत मारी ग ई थी जो इसे ब्याह लाए। कौस्तुभ भी कटा कटा सा रहने लगा। जब कहीं किसी आयोजन में जाना होता तो उसे कोई नहीं ले जाता वह घर में ही रहती। अक्सर किसी पडोसन से यह कहते सुनती माँ को , हमने तो नौकरीवाली थी इसलिए ब्याह लाए, क्योंकि हमारे यहाँ कोई सरकारी नौकरी में नहीं था न इसलिए। वर्ना ऐसे पक्के रंग को कौन पसंद करता भला।

भीनी का कलेजा धक से रह गया सुनकर। मन को समझाकर किसी तरह कालेज गयी। उसको तीन.महिने का गर्भ भी था पेट में। चुपचाप सब सुनती रहती । उसका दिल जलता था ताने सुनकर। मम्मी को कुछ नहीं बताती थी। धीरे-धीरे कौस्तुभ भी ताने देने लगा, मेरे दोस्तों की बीवियां कितनी खूबसूरत हैं और एक तुम हो, काली भैंस। सुनकर वह कमरे में जाकर खूब रोई। उसकी जीने की तमन्ना खत्म होनेलगी। जाने कैसे उसकी सहेली मीरा उसका चेहरा पढ़ लेती थी, उसने भीनी को समझाया कि तू उदास रहेगी तो बच्चे पर असर होगा खुश रहाकर।

सासूमाँ कहतीं इसके तो बच्चे भी काले न पैदा हो जाएं। सुनकर उसको बहुत रोना आता। एक दिन उसको ताने सहन नहीं हो रहे थे, तो आवेश में माचिस लेकर खुद की साडी में आग लगा ली। जीवन ही.नहीं रहेगा तो ये किसे बोलेंगे। आग देखकर सासूमाँ चिल्लाईं और पानी की बाटी उसके ऊपर डाली।

कौस्तुभ को बुलाया और अस्पताल ले ग ए। वो तो अच्छा हुआ, वह ज्यादा नहीं जली, कुछ हिस्सा हाथ और गले का तथा पीठ का जला। कुछ दिन अस्पताल में रहकर घाव ठीक हो ग ए। घर आनेपर उसको मम्मी पापा लेने आ ग ए। तन के घाव तो भर ग ए मन की जलन कम नहीं हो पा रही है, क्या करे वह। इसी उहापोह में उसकी डिलेवरी का वकवत आ गया, बेटी हुई है, सांवली सलोनी। नर्स ने बताया तो माँ खुश हुई मगर ससुराल से कोई न आया।

भीनी ने निर्णय लिया वह अकेले ही अपनी बेटी को पालेगी। उसे कभी किसी के ताने सुनने नहीं देगी। बहुत मजबूत बनाएगी।


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