Prabha Gawande

Drama

5.0  

Prabha Gawande

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गौरी

गौरी

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मम्मी जल्दी इधर आओ। उफ् अब क्या हुआ.... ये लडकी भी न मुझे चैन नही लेने देती। दौडकर मणि गौरी के कमरे में पहुँची, हाँफने लगी। उसकी पुकार सुनकर वैसे भी दिल हाथ में आ जाता था।

ओ ममा इतनी घबराती क्यों हो आप। देखो मेरे गाल पर ये दाने आ गए। देखूं तो, ओहहह तूने चाट खाई न कल उससे आ गए। कितनी बार मना करो , मानती ही नही, आओ इधर गोद में बैठाती मणि उसे क्रीम लगाने लगी। बस गौरी को यही तो चाहिए, ममा काम छोडकर उसे प्यार, दुलार करती रहे।

इंजीनियरिंग के पहले वर्ष की छात्रा है गौरी, मगर बड़ी नहीं होना चाहती, माँ के आँचल में छुपे रहना चाहती है, और मणि भी तो हर पल उसके चाँद से मुखडे को चूमना चाहती है बस, ये देख कर विशाल बस मुस्कुराते रहते। हरपल उनकी परी बिटिया घर भर फुदकती रहती।

समय बीतते गौरी की डिग्री पूरी हुई। बँगलुरू की एक कंपनी में जाब भी मिल गया। घर से दूर जाते तीनों का रो रो कर बुरा हाल था। पर भविष्य भी तो सँवारना था। कुछ दिनों में गौरी हास्टल में रहने लगी। अब हर रोज शाम को ममा से बात करती, छुट्टियों में आती तो बस ममा पापा को पास बिठाए रखती खूब कहानियाँ सुनाती वहाँ की, जाती तो फिर घर सूना हो जाता।

एक दिन गौरी के रिश्ते की खबर आई, खूब सुंदर सजीला नौजवान साहिल गौरी को पसंद आ गया। अमरीका में जाब थी उसकी। साहिल के मम्मी पापा को भी गौरी खूब पसंद आई। जल्द ही दोनों की शादी हो ग ई। दिल को किसी तरह मनाकर दोनों ने रोते हुए गौरी को विदा किया। बेटी परदेसन बन गई थी।

वीजा तैयार होतेतक वह ममा के पास रूकी। फिर दोनों अमरीका चले गए। मणि का रोरोकर बुरा हाल हो जाता। किटी पार्टी भी छोड दी उसने बस घर में बंद पडी रहती सारे शौक जैसे गौरी के साथ चले गए। छः महिने बीतते गौरी इंडिया वापस आई तो ममा का हाल देख घबरा ग ई। बस हड्डियों का ढ़ांचा बन गई थी। गौरी ने साहिल से कहा ममा पापा को मैं अपने पास रखना चाहती हूँ। मगर मणि तैयार नही थी लड़की के घर रहने के लिए। गौरी ने कहा, ठीक है कुछ दिन के लिए तो चलो। मणि मान गई।

गौरी के साथ ममा और पापा दोनों अमरीका आ ग ए, गौरी ममा को रोज घुमाने ले जाती, पार्क में योगासन करने और शाम को क्लब में, अब मणि के चेहरे की रंगत लौटने लगी थी, मणि के हाथ से बने पकवान सभी को पसंद आते। धीरे-धीरे एक साल बीत गया। पापा का बिजनेस भी बंद पडा था। दोनों जाने की तैयारी करने लगे, मगर गौरी नहीं मानती, उनका पासपोर्ट छुपा देती। उनका समय भी हो गया था।

मन न होते हुए भी गौरी को ममा पापा को वापस इंडिया भेजना पड़ा। मगर ममा से वादा लिया जल्द ही वापस आने का। और ममा के हाथों से बने व्ययंजन भिजवाने का। दोनो वापस आ ग ए।

अब मणि ने आनलाईन पकवान अमरीका भेजने का तरीका सीखा और बहुत सी चीजें गौरी के लिए बनाकर भेजती, उसके दोस्त बडे मजे से तारीफ करते हुए खाते, एक सहेली ने सलाह दी की माँ को बोलो वे इसे बिजनेस की तरह अपनाएं। बस फिर क्या था, मणि भारतीय व्ययंजनों की होलसेल डीलर बन गई। अब क ई कारीगरों के साथ मिलकर पकवान बनाती और सप्लाय करती। और इसी बहाने दो चार महिने में गौरी से मिल आती। उसे एक आनंदमय जीवन को जीने का जरिया मिल गया। अब तो गौरी एक बेटे की ममा बन गई है, साथ ही जाब भी फिर से शुरू कर दिया है।


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