राजकुमारी
राजकुमारी
सुगंधा बेंत की आरामकुर्सी में पेंट करते करते बाबा से बात भी कर रही थी। आज मौसम बहुत ठंडा है बाबा आपकी शाल ला दूँ पहले , कहकर वह झोंपड़ी में शाल लेने गई और, बाबा की खाँसी से चिंतित भी हो गई। आज लगातार एक हफ्ते से खांसी है बाबा को। डा. को दिखाया तो उन्होने बहुत से टेस्ट लिखे हैं, मगर पैसे न होने के कारण वह कुछ नहीं कर सकती।
सुगंधा के माँ पापा बचपन में चल बसे। बाबा ने ही उसे पाला। अब वह बारहवीं की छात्रा है, और इधर उधर के छोटे-मोटे काम करके बाबा और अपना पेट पालती है। पहले बाबा सब्जी की दुकान लगाते थे बाजार में, मगर अशक्त होने के कारण अब नहीं लगाते और दुकान बाजार में होने के कारण सुगंधा को भी नहीं बैठने देते दुकान में।
किसी तरह आस पड़ोस के काम करके वह घर चलाती थी। उसे काम करते देख मोहल्ले में सभी को उससे सहानुभूति हो गई थी। समय बीतता रहा, बाबा की तबियत ज्यादा खराब रहने लगी, सेकेंड ईयर में पहुंचते पहुंचते जीवन की सारी तंगियों से रूबरू हो चुकी थी वह, बाबा को अस्पताल लेकर गई, और जाते ही बाबा ने वहाँ दम तोड़ दिया वह धम्म से अस्पताल के दालान में बैठ गई, आँसू सूख चुके थे, उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कैसे जिएगी।
उसने बाबा की दुकान फिर से चालू करने का सोचा। सब लोग विरोध करने लगे लड़की होकर दुकान वो भी बीच बाज़ार में। उसने सिर्फ मन की सुनी, सब्जी की दुकान धीरे धीरे रेस्टोरेंट बन गई। शहर के नामी रेस्टोरेंट पीछे रह गए। उसकी मेहनत रंग लाई। आज उसके होटल का इनोग्रेशन है। अपने बाबा की लाडली राजकुमारी ने उनके खानदान का नाम रौशन किया था। होटल का नाम है राजकुमारी।