Prabha Gawande

Inspirational

4.6  

Prabha Gawande

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मैं जिंदा हूँ

मैं जिंदा हूँ

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घड़ी के अलार्म से अपर्णा हड़बड़ाकर जल्दी से उठी, धरती को प्रणाम कर आदि और ओनू को जगाने चल दी। चलो उठो आज दोनों के सिक्समंथली एग्जाम हैं, दोनों जुड़वा हैं, एक ही कक्षा आठवीं में पढ़ते हैं। अपर्णा को एक बेटी न होने का मलाल हमेशा रहता, काश एक बेटी होती जो मेरे मन को समझती। जल्दी से गीज़र में पानी गर्म करके वह किचन में दूध चढ़ाने लगी, नाश्ता क्या बनाऊँ। दोनों बच्चों की पसंद अलग-अलग थी। चलो मेथी और आलू की सब्जी और पराठे बना देती हूँ। फ्रिज से सब्जी निकाल ही रही थी की अविनाश का आदेश हुआ, अरे भई पत्नीजी कहाँ हैं आप एक कप चाय तो पिला दीजिए। जी अभी आई कहकर वह चाय चढ़ाने लगी, बच्चों के कपड़े निकालकर अब वह किचन में थी, जल्दी जल्दी टिफिन तैयार करके बच्चों को स्कूल बस में बिठाकर वह घर वापस आई।

मम्मी उठ चुकीं थीं और अविनाश भी उठकर आँगन में चहलकदमी कर रहे थे, आरती भी कॉलेज के लिए तैयार थी, आते ही बोली भाभी नाश्ता दो न, आज मुझे स्टफ्ड पराँठा खाना है, ठीक है, कहकर अपर्णा किचन में पहुँचकर फ्रिज से पनीर आलू निकालकर स्टफ्ड़ पराठा बनाने लगी। मम्मी को पूजा की थाली लगाकर देना था, और अविनाश की आँफिस की तैयारी, कोई इधर बुलाता, कोई उधर, अपर्णा किसी रोबोट सी पूरे घर में सबकी फरमाईशें पूरी करती घूमती। करीब एक बजे बच्चों को स्कूल बस से लेकर आने के बाद थोड़ी राहत मिलती फिर शाम के काम शुरू हो जाते, इस बीच कोई मेहमान आ गए तो पूरा दिन काम करते जाता।

अपर्णा की सहेलियाँ उसको कहतीं तुम कब फुर्सत में होती हो, धीरे-धीरे सहेलियाँ, मायका मनोरंजन सब छूट गया बस कर्तव्य पालन रह गया, वह सोचती खुद के लिए समय कैसे निकालूँ। एक मशीन बनकर रह गई हूँ। जिसे बस आदेशों का पालन करना होता है।

एक दिन शाम को थोड़ा फुर्सत में बैठी थी, अविनाश भी थोड़ा करीब आकर बैठ गए, अपर्णा के आँसू निकल आए, वह कहने लगी मुझे एहसास कराओ कि मैं जिंदा हूँ। मुझे लगता है मैं सिर्फ एक रोबोट हूँ। अविनाश ने गहराई से उसकी आँखों में झांका, पहली बार एहसास हुआ, शायद हम अब तक तुम्हारा खयाल ही नहीं रख पाए। उसे बाँहों में भर कर बोले, आज से तुम्हारे साथ घर के काम हम भी करवाएंगे, और तुम अपनी संगीत साधना फिर से शुरू करो, आज ही हम गुरूजी के यहाँ चलेंगे, और तुम रोज़ सीखने जाओगी।

आज अपर्णा को लगा कि मैं महज एक रोबोट या मशीन नहीं। मैं जिंदा हूँ। एक परिंदे की तरह खुली हवा में चहचहा सकती हूँ।



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