Prabha Gawande

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4.7  

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रंगीली

रंगीली

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धरा इधर आ न। देख आज संभारवड़ी बना रही हूँ थोड़ी हेल्प तो बनती है न। ओ ताई .. आप भी न.. लंबे स्टायलिश बालों का जुड़ा बनाते हुए धरा किचन में पैर पटकते थोड़ा ऊं आं करते ताई के पीछे खड़े होकर गले में बाँहें कसने लगी। अरे छोड़ मार ड़ालेगी क्या कहते हुए आशी धरा का चुंबन लेने लगी।

राधिका अपनी दोनों बेटियों को देखकर खुशी से आँसू पोंछते मन को तृप्त करने लगी। पति के जाने के बाद बड़े जतन से उन्होने अपनी बेटियों को बड़ा किया था। उनके पति वसंतराव दादासाहेब चरड़े पाटिल स्वास्थ्य विभाग में यू. डी. सी थे। बीस वर्ष पहले एक रोड एक्सीडेंट में उनकी मृत्यु हो गई थी, और अनुकंपा नियुक्ति में नौकरी करते हुए राधिका ने अपनी बेटियों को उच्चशिक्षित किया था। बड़ी बेटी आशी हाईकोर्ट में वकील थी, और छोटी धरा अभी मेडिकल स्टूडेंट थी।

आशी बहुत गंभीर और धरा एक चंचल युवती थी। राधिकाजी की बहुत साधारण और सादी जीवनशैली थी, और बेटियों को भी वही सिखाया, आशी तो मान जाती मगर धरा को थोड़ा विलासिता पूर्ण जीवन पसंद था। वह एकदम आधुनिक कपड़े पहनती मन चाहा श्रृंगार करती, खुले दिल से खिल खिलाकर बिंदास हँसती थी, वह कहती जीवन खुलकर जीओ, जैसा आपको पसंद हो।

राधिका धरा की बहुत चिंता करतीं, बहुत अल्हड़ और बिंदास है। आशी कहती माँ वह धीरे-धीरे गंभीर हो जाएगी, आप चिंता मत करो। जीवन अपनी गति से आगे बढ़ रहा था। एक दिन आशी के लिए एक बहुत अच्छा रिश्ता आया, लड़का जज था बहुत साधारण तरीके से शादी हुई, आशी को ससुराल जाते वक्त बस धरा की चिंता थी, ये सबकुछ कैसे संभालेगी ?

धरा माँ के साथ काम में हाथ बंटाती और घर के काम भी करती। मोहल्ले के लोग उसे रंगीली डाक्टरनी कहते, वह हँस देती। जिंदगी साधारण तरीके से गुजारना उसे पसंद नही था।

डा. राहुल को वो बहुत पसंद थी, मगर उसका बिंदासपन नहीं। वह प्यार का इज़हार करने से डरते थे। इसी उहापोह में दो साल गुज़र गए। धरा को भी। राहुल पसंद था, उसने पूछ ही लिया क्या आप मुझसे शादी करोगे ? डा. राहुल अचंभित रह गए, ये लड़की कितनी एडवांस है। फिर भी वह उन्हे पसंद थी इसलिए शादी हो गई। धरा ससुराल में भी अपने तरीके से रहती।

सासू माँ को यह बिंदासपन पसंद नहीं था, राहुल भी बुझे से रहते, आस पड़ोस वाले उसे रंगीली बहू आई है, कहकर हँसते। धरा कुछ दिन तक चुप रही फिर राहुल से बोली मुझे स्टायलिश तरीके से जीना पसंद है। तुम्हें यदि नहीं पसंद तो बोल दो। राहुल मौन रहे, धरा घुट कर जीना नहीं चाहती थी, वह उसे तो खुलकर जीना पसंद था। वह माँ के पास लौट आई।



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