कसूर
कसूर


विश्वा कहाँ खोई रहती हो ?तमतमाता हुआ वीर उसके पास पैर जमीन पर पटकते हुए आ बैठा और एकटक उसका चेहरा देखने लगा।
वीर थोड़ा दूर खिसककर बैठो, गर्मी लग रही है।.दुपट्टे से चेहरा पोंछते हुए विश्वा फिर सोचने लगती है।
आज पाँच बरस हो ग ए वीर की और उसकी शादी को, वह उस हादिसे को भूल नही पाई है। शादी के दूसरे ही दिन वो दोनों हनीमून मनाने गोवा गए थे, एक खूबसूरत होटल में दोनों रूके। दूसरे दिन वो दोनों घूमने निकले, एक सूनसान जगह पर अचानक विश्वा को.लगा कोई पीछे है। घबराकर पीछे मुड़कर देखा, चार पाँच लड़के उनका पीछा कर रहे हैं, शक्ल से ही गुंडे लग रहे थे, दोनों घबराकर भागने लगे पर उन्होने दोनों को पकड़ लिया, वो नशे में लग रहे थे, वीर और विश्वा मदद के लिए चिल्लाए मगर वहाँ कोई सुनने वाला न था, मो. भी उन लोगों ने छीन लिए थे।
और फिर वीर को पीट पीटकर बेहोश कर दिया उन दरिंदों ने और विश्वा की इज्जत तार तार कर दी उन राक्षसों ने विश्वा रो रो कर उनसे विनती करती रही हमें छोड़ दो क्या बिगाड़ा है हमने, गहने चाहिए तो ले लो मगर हमें जाने दो। मगर वो नही माने। उन्हें पैरों से रौंदकर वो भाग गए।
जैसे तैसे वीर को थोडा होश आया, घिसट-घिसटकर बड़ी मुश्किल से वे सड़क तक पहुँचे, एक कार वाले ने उनको हास्पिटल पहुँचाया।
चार पाँच दिन हास्पिटल में रहने के बाद जब थोडा ठीक हुए वो घर पहुँचे, मगर वो हादसा जैसे आँखों में ही बैठ गया था, विश्वा के आँसू थमते नही थे रातों को चीख उठती, फूल से चेहरे और पूरे शरीर पर चोट के निशान थे इन घावों से ज्यादा टीस उन घावों में थी जो आत्मा पर लगे थे। वीर कहता , मैं शर्मिंदा हूँ विश्वा तुमको उन दरिंदों से बचा नही पाया। और विश्वा वो क ई बार आत्महत्या करने की कोशिश कर चुकी। हर बार वीर बचा लेता था।
धीरे धीरे पाँच साल गुज़र गए। विश्वा और वीर सामान्य होने की कोशिश करते, वीर समझाता था विश्वा को इस दुर्घटना को एक हादिसा समझकर भूल जाओ, मगर विश्वा क्या करे उसे उन दरिंदो के हाथ अब भी अपने शरीर पर काँटों की तरह चुभते, और जख़्म हरे हो जाते। एक स्त्री की ये पीड़ा कोई महसूस नही कर सकता। वह अपने पति के साथ भी न्याय नही कर पाती । हर वक्त यही सोचती क्यूं पैदा होते हैं समाज मुझे ंं ऐसे दरिंदे। कुछ सालों में जेल से छूट जाएंगे, फिर किसी मासूम की जिंदगी बर्बाद करेंगे। इनकी सजा सिर्फ फाँसी होना चाहिए। आखिर हम औरतों का कूसूर क्या है ?