निशान्त "स्नेहाकांक्षी"

Tragedy

4.8  

निशान्त "स्नेहाकांक्षी"

Tragedy

अगले जन्म भी मोहे बिटिया कीजो

अगले जन्म भी मोहे बिटिया कीजो

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आज श्रेया की तेरहवीं है। मेरी श्रेया, मेरी मासूम सी हँसती खेलती बच्ची, फूलों सी नाजुक, जो कुछ दिनो पूर्व उस दरिन्दे की हैवानियत का शिकार हो गयी। भला इसमें उस मासूम की क्या ग़लती थी? वो तो कमल के फूल पर मोती के सदृश्य जल के बूंद के समान थी, जो हमेशा हँसती खेलती, खिलखिलाती, दूसरों की ख़ुशियों मे खुद की खुशी ढूंढती, मेरा गर्व, मेरा अभिमान, मेरी अनुभूति थी मेरी ‘श्रेया’। ग़लती बस इतनी थी उसकी कि एक अबला, एक मासूम, एक बेटी थी मेरी ‘श्रेया’ जिसकी मासूमियत को उस दरिन्दे की नज़र लग गयी।

पुरुषत्व शब्द को कलंकित कर उस दरिन्दे ने न सिर्फ हमारी गुड़िया का मान मर्दन किया अपितु, हमारी श्रेया को, उसकी चहचहाहट को, उसके चुलबुलेपन को भी हमेशा के लिए हमसे दूर कर दिया। आज हमारी श्रेया हमारे बीच नहीं है...!


उन बातों का स्मरण कर आज भी आँखों में अंगार रूपी ज्वाला भड़क उठती है और फिर उसके न होने का एहसास होता है तो उस अंगार को शांत करने हेतु नैनों से अश्रु धारा छलक पड़ती हैकिसी तरह खुद की भावनाओं पर काबू पाते हुये आज उसकी तेरहवीं के दिन अनायास ही मेरे कदम मुझे उसके कमरे की ओर खींच लाये उसका कमरा जो आज भी उसके चले जाने के बाद भी बिल्कुल उसी तरह सज्जित है जैसा उसे पसंद था। वो पलंग, उसका स्टडी टेबल, बगल मे रखा हुआ वो ४ फुट लंबा टेडी बीयर, उसका श्रृंगार दान, उसकी पसंदीदा पुस्तकें सब कुछ बिल्कुल ज्यों का त्यों, फर्क सिर्फ इतना आ गया है की विगत कुछ दिनों मे उन पर धूल की एक परत सी जम चुकी है।

श्रेया के कमरे के अंदर प्रवेश करते ही उसकी स्मृतियों ने मानो मुझे जकड़ लिया। ऐसा प्रतीत हुआ मानो वो मेरे समक्ष खड़ी मुझसे हमेशा की तरह खिलखिला कर बातें कर रही हो। वही शरारत, वही शोखपन, वही मुस्कान। सब कुछ वैसा ही, सिर्फ अंतर इतना की मेरी गुड़िया मेरे सामने नहीं थी!


अचानक किताबों के पन्नों की सरसराहट ने मुझे यादों की इस गहराई से जब बाहर निकाला तो मैंने पाया की वहाँ पुस्तकों के मध्य रखी उसकी सर्वाधिक प्रिय पुस्तक चेतन भगत के द्वारा रचित “टू स्टेट” के पन्नों के बीच एक पत्र झाँकता हुआ नज़र आ रहा था। उत्सुकता वश मैंने वो पत्र उठाया तो पाया, वो श्रेया के द्वारा लिखित अंतिम पत्र था जिस पर उसके शब्द कुछ यूं अंकित थे-

“माँ मुझे माफ़ कर देना माँ। दुराचारियों की इस दुनिया में मैं कलंकित हो गयी माँ। मैं अब तेरी लाड़ली, बड़ी नीली आँखों वाली चुलबुली ‘श्रेया’ नहीं रही माँ। माँ, मैं आज असहनीय दर्द सहकर तुझसे कुछ कह कर हमेशा के लिए तुझसे दूर जा रही हूँ माँ।"

 "माँ, आज जब मेरी अंतिम विदाई होगी और मेरी सारी प्रिय सहेलियाँ मुझसे मिलने आएँगी, पर अफसोस माँ हमेशा की तरह वो मेरी टांग खींचने या मुझे हँसाने के बजाय इस बार मुझे सफ़ेद जोड़े में लिपटा देख कर सिसक सिसक कर घुट कर रह जाएंगी माँ। मुझे उसका अफसोस रहेगा माँ।"

"माँ, जब इस रक्षाबंधन पर ‘छोटू’ की कलाई सूनी रह जाएगी और जब उस मासूम की आँखें मुझे न पाकर भर आएँगी, सच कहती हूँ माँ, मेरी रूह भी उसके माथे पर तिलक लगाने को मचल जाएगी पर मुझे पता है कि तू हर पल उसके साथ होगी और उसे रोने नहीं देगी माँ।"

"और माँ पिता जी? उनका क्या कसूर माँ? जब मेरे साथ हुये इस घिनौने कुकृत्य के लिए ये समाज उनके संस्कारों पर सवाल उठाएगा, माँ , उनके आँसू भले न दिखे, पर वो चुपचाप कोने में बैठकर बहुत रोएँगे माँ और मैं कुछ न कर पाया ये सोचकर खुद को बहुत कोसेंगे। माँ तू उनसे कहना- वो मेरा अभिमान हैं और वही मेरी पहचान हैं। इसलिए उन्हे तू टूटने न देना माँ ।"

"और माँ अंत में तेरे लिए क्या लिखूँ? कैसे उस परमेश्वर से फिर से तेरी कोख में ९ महीने पलने का अधिकार माँगूँ? कैसे मैं इस दुनिया मे जीने का फिर से अधिकार माँगूँ? कैसे मैं अकेली इस दुराचारी दुनिया से अपना खोया सम्मान माँगूँ माँ?

माँ शायद लोग तुझ पर मुझे जरूरत से ज्यादा आज़ादी देने का इल्ज़ाम लगाएंगे, तुझे कोसेंगे, पर तू हिम्मत रखना माँ ! ऐसे लोग कभी न समझ पायेंगे कि एक बेटी की ज़िंदगी इतनी सस्ती नहीं होती, एक नारी की ज़िंदगी कोई खेल नहीं होती ! ये बात तू ही उनको बात सकती है माँ !"

तू सब कुछ सह लेना माँ, पर भूलवश भी ऐसा ना कहना माँ कि “अगले जन्म मोहे बिटिया ना दीजो “,क्योंकि माँ परलोक में मेरी रूह ईश्वर से सिर्फ एक ही प्रार्थना करेगी माँ कि-

"अगले जन्म भी मोहे बिटिया ही कीजो!"



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