आवारा जानवर और एक किसान
आवारा जानवर और एक किसान
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धान की फसल के लिए पहले ब्याढ(नर्सरी) लगाई जाती है। जिसकी बाद में रोपाई की जाती है।
एक महिला करीब 60 वर्ष जिनके बायें पैर में गंभीर गठिया है। धान की ब्याढ़(नर्सरी) लगे खेत की आवारा जानवरों से रखवाली करने के लिए खेत की मेढ़ पर बैठी हुई हैं। भले ही सरकार गाँवों को, "खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) घोषित करने में लगी है, लेकिन वो जद्दोजहद् अभी इस गांव में नहीं पहुंची है, अतः खेत का नज़ारा और दुर्गंध, सरकार की "ओडीएफ" को आईना दिखाते हुए, उस औरत को मजबूर कर रही थी कि वो नाक को सिकोड़े।
आवारा जानवरों का झुंड दूसरी तरफ मेढ़ के पार, खेत को रौंदने और चरने के लिए बेकरार खड़ा था। इधर ये महिला फिलहाल नाक सिकोड़ना भूल चुकी थी। और चिल्लाकर कहती है, "हट-हट-हट-हट, नसिया कठऊ फिर मरै आएगे, हईजा खा लिंयें इनका, हट-हट-हट"। उधर आवारा जानवर कुछ क़दम पीछे जरुर हटते हैं, लेकिन उस महिला की लड़खड़ाती चाल देख, आवारा जानवरों का मनोबल मजबूत हो जाता है। वो अपनी क्रिकेट टीम के साथ, धान की ब्याढ़(नर्सरी) के खेत प्रवेश कर चुके होते हैं। आवारा जानवरों को खेत रौंदता देख, वो महिला भी हांथ में डंडा लेकर जानवरों को भगाने के लिए दौड़ती है, शायद वो भूल चुकी थी अपने बांय पैर की गठिया। धान की ब्याढ़(नर्सरी) के खेत को पानी की प्यास ज्यादा होती है, जिसके परिणाम स्वरूप खेत में लगभग 10 इंच तक की मिट्टी दलदल बन जाती है। वो महिला जैसे ही चार पाँच क़दम डंडा लेकर दौड़ती है, उसका शरीर, उसको गठिया का एहसास करा देता है, क्योंकि उसका बांया पैर, जिसमें गठिया है दलदल में फँसता है, 10 इंच ही सही, लेकिन दोनों पैरों की ताकतों में इतना तालमेल नहीं बन पा रहा था, कि, वो एक के बाद एक पैर उठा, उस 10 इंच के दलदल में चल भी पाये, और आवारा जानवरों से खेत को बचा पाये। उधर आवारा जानवरों ने "परिस्थिति जन्य सुविधा" का लाभ उठाने का निर्णय ले ही लिया था।
इस पूरे घटनाक्रम में 6-7 मिनट ही लगे थे लेकिन खेत की 60% ब्याढ़(नर्सरी धान की) बर्बाद हो चुकी थी। अब तक अग़ल-बग़ल किसान मदद के लिये दौड़ चुके थे। वो महिला किसी तरह डंडा छोंड़, अपने एक पैर को हांथ से खींच खींच कर वापस मेढ़ पर आ बैठ़ती है, अब गठिया का दर्द इतना ज्यादा हो रहा था कि, वो ओडिएफ से विपरीत, खेत में पडी़ दुर्गंध, से बचने के लिए नाक सिकोड़ना भूल चुकी है।