अधूरा बैडमिंटन का जोड़ा
अधूरा बैडमिंटन का जोड़ा
बैडमिंटन के जोड़े अलविदा हो, शायद जिसे कूड़े से ही उठाया होगा। आशियाना जो उनका, शहर के सभी नालों को मिलाते "कुकरैल नाले" के बग़ल में ही था। ट्रैफिक की मदमस्त अंगडाईयों से बचने के लिए ही, जर्जर, खतरनाक, प्रदूषित, रास्ता ऐसा कि, "नज़र हटी तो दुर्घटना घटी", खैर मजबूरी क्या न कराये। सांस को रोकने की कोशिश में, न रोक पाते हुए। मंज़र भी आँखों को कहता है, देखो तो, कितना भटका हुआ हूँ," जहाँ तुम नाक सिकोड़ रहे हो, मैं वहीं मदमस्त मजबूरियों के ख्वाब में मुस्कुरा कर, जी भर रहा हूँ।
देखो तो, कैसे बच्चे अधूरे बैडमिंटन से ही, मतलब, जोड़ा जो दुकान से निकला था, किसी अमीर के हाँथों में, जब उससे बिछड़ा, पुराना और बेकार सा होकर के, तो किसी गरीब निगाहों की मासूमियत भरे हाँथों ने नाले से अधूरा एक बैडमिंटन उठाया, जो थोड़ा टूटा भी था।
उन धूल भरी आँखों को वो शायद "नया दिखा होगा"। अपने फटे-पुराने कपड़े पहने हुए, दोस्तों की टोली में, लखनवी में भौकाल दिखाने, ईतराए भी होंगे। चिड़िया(कौक) तो थी ही नहीं, मगर खेल का उत्साह दृढं संकल्पी था, भला जुगाड़ कैसे न ढूंढ लेता! हल्की लकड़ी का टुकड़ा ले, चिड़िया समझ, एक तरफ तो पंजा ही बैडमिंटन था और दूसरी तरफ ईठलाता, नाले की दुर्गंध से नहाया, बैडमिंटन, बड़े चाव से खेले जा रहा था और आस पास अपनी बारी के इंतजार में कुछ लड़के और भी थे।
अब ट्रेफिक खुल चुका था। मुझे आगे बढ़ना ही पड़ा, नहीं तो शायद मैं कुछ और भी देख पाता और मेरी कल़म थोड़ा और "रोती"।