भैंस की विदाई
भैंस की विदाई
किसानों की समस्याओं पर व्यवहारिक और सामाजिक रुप से चर्चा चल रही थी। अचानक फोन की घंटी बजती है और गांव की भैंस के मर जाने की खबर मिलती है। मैं भी अफसोस करता हूँ। कुछ देर बाद घटनास्थल पर मैं भी गया।
भैंस का शव, दशहेरी आम के पेड़ की नीचे निढ़ाल पड़ा हुआ था। इसी पेड़ के डाल से अक्सर उसे बांध दिया जाता था। उसे भी यह हरियाली बहुत पसंद आती रही होगी। गांव में दिवालों से घिरे खूंटों से बंधना उसको भी न भाता था। आज वो दशहरी का पेड़ भी कुछ मायूस है, रोना चाहता है, अपने दोस्त की विदाई में। अफसोस! उसके पास आंखे न थी। दशहेरी का पेड़ भी उस डाल को कोस रहा है जो थोड़ा ज्यादा ही उपर थी जिससे लटक कर भैंस की गर्दन झूल गई। शायद भैंस बैठना चाहती थी, लेकिन रस्सी छोटी पड़ गई।
भैंस को चारों तरफ से गांव की महिलाओं ने घेर रखा था। कुछ महिलाएं #जीवन_के_सत्य_मृत्यु का पाठ भी पढ़ा रहीं थी। लेकिन पाठ उन आंसुओं को रोंक न पाया जो आंसू भैंस के बदन पर लिपट के गिर रहे थे। गांव के पुरुष भी चंद कदम दूर बैठे थे। मृत्यु एक सच है शायद वो ज्यादा अच्छी तरह से समझ पा रहे थे। गांव के लोग भैंस की विदाई में अपनी सांत्वनाएं व्यक्त करने के लिए आते ही जा रहे थे। इस दुख की बेला में गांव एक सा दिखा।
गांव के हृदय में बसा अपार प्रेम, व्याकुल मन की पुकार, पवित्र भावनाओं के सागर में आंसुओं की दरकार के साथ उस भैंस की विदाई हुई।
खैर, मैं चलता हूं लखनऊ जाने का समय हो चुका है।