निराशावादी जनतंत्र !
निराशावादी जनतंत्र !
"प्रशासनिक ढांचे", को "राजनीतिक ताकत" देने के लिए एवं वर्तमान की आवशयकता और भविष्य पर पड़ने वाले प्रभाव का, "संमुचित संचालन" करने के लिए "लोकतांत्रिक राजनीति" का जन्म हुआ। ये लोकतांत्रिक राजनीति, समाज के "बहुसंख्यकों के हितों की ओर अधिक बल देती है"। परंतु विडंबना ये है कि, "बहुसंख्यक समाज को अपने अधिकारों के प्रति जागरक रहना होगा"। अगर बहुसंख्यक समाज,
"लोकतांत्रिक ताकतों" का सही उपयोग नहीं करेगी या अपने अधिकारों के प्रति लापरवाह रहेगा।
तो "लोकतंत्र होते हुए भी "वास्तविक लोकतंत्र" न हो पाएगा" और धीरे-धीरे "लोकतांत्रिक राजनीति" की आड़ में "तानाशाहिक राजनीति" का ताना-बाना बुन लिया जाएगा ।
"शक्ति-विजय" की इस दुनिया में अगर "लोकतंत्र का उपहार, गरीब- सताई हुए कमजोर जन-मानस को मिला है", आवशयकता है इस "वास्तविक ताकत" का लाभ उठाने की, "मन में बैठे डर को बाहर निकालने की", क्योंकि अगर अब भी आप लड़ने की हिम्मत न जुटाई पाए, तो इस "आशावादी लोकतंत्र" में
"निराशावादी जनतंत्र" को सरकार की कमियां गिनाने से पहले अपनी "निराशावादी जागरुकता" के प्रशन के सवाल का जवाब भी दे लेना चाहिए।