आवारा इश्क़
आवारा इश्क़


सन 2003, जुलाई महीना, राज को 20 वा साल लगने वाला था।
आज से वो कॉलेज जाने वाला था।
राज जो सौ बातें जानता था और सौ बातों से अनभिज्ञ।
एक अजीबोगरीब पर्सनलिटी, अपने बारे में बहुत कुछ जानते हुए भी, अपने से, बहुत अनजान भी था।
स्कूल की पूरी पढ़ाई कुछ ख़ास और सुंदर दोस्तो के साथ हुई।
पांच छह अच्छे दोस्त, जिसमे वो सबसे छोटा था। सारे छोटे मोटे निर्णय, काम सब दोस्त ही करते थे।
अपनी अक्ल लगाने की जरूरत न थी।
नवी वलास में सब दोस्तो ने स्कूल बदला,उसी स्कूल में राज भी चला गया।
दोस्तो से जरूरी कुछ भी न था, वो ही खुशी थे, बाते करने के साथी और जिंदगी भी।
राज के लिए दोस्ती बहुत महत्व रखती थी और वो दोस्तो को चाहता भी बहुत था। दोस्त भी सब उससे ज्यादा ही काबिल थे सो ऊपरवाले ने पूरी स्कूलिंग में साथ बनाये रखा।
दशवीं तक जिंदगी में खास परेशानी न थी, दोस्तो के साथ हँसी खुशी जिंदगी गुजर रही थी।
बस पैसों की तंगी का रोना लगा रहता था। राज अपने दोस्तों में सबसे गरीब ही था। दौ कमरों के गंदे से दिखने वाले मकान में रहता था।
ऊपर से जॉइंट फैमिली थी तो कई चीजों का अभाव था और पिताजी कम ही सुना करते थे।
कुछ तो उनको घर को अच्छा दिखाने में कोई दिलचस्पी ही न थी, कुछ पैसों की तंगी भी थी।
पर फिर भी सब ठीक ही था।
राज पढ़ाई में होशियार था, दशवीं अच्छे नम्बरों से पास हुई। ग्यारवी में कुछ दोस्तों ने मैथमेटिक्स ली थी और राज होशियार था तो घरवालो ने भी उसे मैथमेटिक्स दिलवा दी।
यही से बखेड़ा शुरू हो गया, जॉइंट फैमिली में बटवारा शुरू हो गया और झगड़े भी, उसी वक़्त पिताजी की नौकरी भी जाति रही।
वैसे ही तंगी थी,अब उसका विकराल रूप था।
घर की परेशानी सिर पर हावी हो गयी, और गणित समझ से दूर।
ट्यूशन के पैसे न थे, पिताजी जैसे तैसे करवा रहे थे पर मन न लगता था।
आर्ट्स लेने की कोशिश की पर घरवाले इंजीनयर ही बनाना चाहते थे।
राज चाहता था अच्छा बुरा कोई काम करके घर की मदद कर दे।
पर उसमे ना ही इतनी समझ थी,ना ही लगन।
हाथ जोड़ कर कई मास्टर से फीस माफ करवाई, कई से कम।
साथ साथ उसका आत्म विश्वास भी कम हो रहा था।
होशियार राज बाहरवी में ग्रेस से पास हुआ।
सारे दोस्त जहां इंजीनियरिंग और डॉक्टर्स की तैयारी करने कोटा निकल गए।
राज का दिमाग अब साइंस में न लगता था, वो आर्ट्स लेना चाहता था।
घर से चिल्ला चिल्ला के झगड़े किये पर उन्होंने प्रेशर बना इंजीनियरिंग का एग्जाम दिलवा दिया।
नई कॉलेजेस खूब आयी थी उस वक़्त, तो बेकार पेपर होने के बाद भी कुछ कॉलेज एडमिशन के लिए तैयार हो गई।
इंजीनिरिंग का खर्चा राज को पता था सो एडमिशन नही लिया और साइंस की कॉलेज के लिए फॉर्म भरा।
सरकारी कॉलेज का खर्चा दौ हजार से ज्यादा न था।
अब राज बिल्कुल अकेला था, सारे विश्वास पात्र दोस्त दूर हो गए थे और अब उसे सारे निर्णय खुद करने थे।
बचपन से ही बहुत शूरवीरो की कहानियां सुन वो बड़ा हुआ सो खुद को बहादुर और संस्कारी ही समझता था।
पैसा नही था पर अपने आप को किसी से छोटा भी न समझता था।
घरवालो ने उसे कॉलेज की काउंसलिंग के लिए अकेले ही भेज दिया।
यहीं से राज की पागलपन की कहानी शुरू होती हैं।
राज सरकारी कॉलेज की लाइन में फॉर्म लिए खड़ा था, तभी उसकी नज़र दूसरी लाइन में खड़ी एक लड़की पर गयी।
मासूम चेहरा, झुकी सी नज़र, प्यारी सी आवाज़, सलवार सूट में सादगी सी मूरत, राज देखता ही रह गया।
उसी लाइन में स्कूल का एक क्लासमेट खड़ा था, उससे बात हुई,उसने कहा- कहाँ सरकारी कॉलेज में जा रहे हो, प्राइवेट में आ जाओ, मस्ती करेंगे।
वो लड़की उसी लाइन में थी, राज भी खड़ा हो गया।
कॉलेज में साल की 13000 की फीस थी, अभी पांच हज़ार जमा कराने थे।
पिताजी के पास आया तो वो चोंक गए -पांच हज़ार कहाँ से लाएंगे इतने पैसे?
राज ने कहां वही से जहां से आप मुझे इंजीनियरिंग करवाने वाले थे।
कॉलेज में एडमिशन हो गया।
और आज उसका पहला दिन था।
अब कॉलेज के साथ प्रॉब्लम ये थी कि उसका ड्रेस कोड नही था।
स्कूल में तो एक ही ड्रेस होती हैं तो गरीब अमीर बच्चे का पता नही लगता था।
राज के पास घर मे पहनने की 2 ड्रेस और एक शादी ब्याह की थी।
और गाड़ी के नाम पे रेसर साईकल।
अच्छी बात थी राज कुछ भी छिपाने में विश्वास नही करता था, वो सबके सामने साईकल लेके जाता था।
कॉलेज में रैगिंग का ज़माना था सो बचने के लिए एक मुक्का मारने वाली क्लिप जेब मे लेके गया।
दाड़ी मूँछ बड़ा के गया, जितनी भी आयी हो।
पर कॉलेज बड़ा अजीब लगा पहले दिन।
कॉलेज में घुसते ही जो अध्य्क्ष पद के दावेदार थे अपना इंट्रोडक्शन दे रहे थे।
जो बदमाश दिख रहे थे वो सीधे निकले और जो सीधे लग रहे थे वो बदमाश।
राज ने एटीट्यूड ही ऐसा बना रखा था कि रैगिंग तो नही हुई,उल्टा कई लोगो ने आगे बढ़ कर बात की।
2003, बेल बॉटम की फैशन फिर से आई थी, एनटाइसर बाइक आयी थी।
जवान चेहरे रंग बिरंगे कपड़ो के साथ बारिश के बाद धुले हुवे,साफ नज़ारे से लग रहे थे।
सब के चेहरे पर हँसी, मस्ती और उम्मीदे बता रही थी कि जिंदगी यहाँ मस्त मगन हो नाच रही हो जैसे
इस रंगीन नज़ारे में ब्लैक पेंट और वाइट शर्ट,जिसमे शर्ट थोड़ा लंबा और बाहर था और अलग दिखने के लिए जूतियां भी पहन रखी थी।
दूसरे तीसरे दिन ही वो लड़की भी दिख गयी जिसके पीछे राज यहां आया था।
पांच छह लड़कियों का ग्रुप जैसे एक गैंग हो।
सबने ब्लैक जीन्स पहन रखी थी, सिल्वर कीज़ विद सिल्वर चैन स्टाइल से जीन्स में लगी थी। सबके कलरफुल टॉप्स ।
देखते ही राज हिम्मत हार गया, न उसके पास इतना कॉन्फिडेंस बचा, ना पैसे ही था, ना ही कपड़े।
कुछ पुराने क्लासमेट दिखे, राज ने बात भी की, पर उसकी हालत देख, उसे इग्नोर कर, उन्होंने अपने जैसो का ग्रुप बना लिया।
राज ने भी अपने जैसे सात आठ तलाश लिए और उसने भी अपना एक ग्रुप बनाया।वैसे राज को सबसे मिलना बात करना पसंद था।
लड़कियों से दोस्ती करने की उम्मीद राज छोड़ चुका था।
।
पर वो जीना चाहता था तो अपने तरीके से दोस्तो के साथ एन्जॉय कर रहा था।
उसे गुमनाम होने से बदनाम होना ठीक लगता था।
घर के हालात और बाहर के हालात ने उसमे बहुत गुस्सा तो भर ही दिया था।
इसी बीच उसके एक दोस्त दिनेश को लड़की पसंद आई और उसका पंगा एक ऐसे लड़के से हो गया जो कॉलेज का सबसे स्मार्ट और चहेता लड़का था, उसकी गैंग बड़ी थी,अमीर थी और ताकतवर भी।
राज ने उसकी मदद का वादा किया, दो लोग 30 से कैसे लड़ेंगे, समझ नही आ रहा था।
राज के पागल दिमाग को कुछ न सूझा,वो एक गुप्ति और तेजाब की बोतलें ले, अकेला ही लड़ने आ गया।
पूरे कॉलेज में हंगामा हो गया, सामने वाली गैंग ने आके माफी मांग ली जबकि कुछ गलती दिनेश की ही थी कि वो सिचुएशन अच्छे से हैंडल नही कर पाया और उतावला हो गया।
इस कांड ने राज को बदनाम कर दिया, लोग उसे गुण्डा और सनकी मानने लगे गए। पर अब उसे अच्छा लग रहा था कि सारा कॉलेज उसे जानता हैं और दौ मिनट रुक के उससे बात करता हैं।
उसे इग्नोर करने की हिम्मत अब लोगो मे न थी। राज ने सब से दोस्ती करनी शुरू कर दी।
अब राज़ भी इस कॉलेज का जरूरी हिस्सा था, जिंदगी उसमे भी हिलोरे ले रही थी।
बेवजह नाहक परेशान करने की आदत राज की नही थी, उसे किसी की मदद करना ज्यादा अच्छा लगता था।
हां उसके दोस्त लोग उसके नाम का,डर का फायदा उठा लेते थे कभी कभार।
कॉलेज में मन रच गया था,सब ठीक चल रहा था, बस पढ़ाई समझ नही आ रही थी।
ग्यारवी, बाहरवी में बेस स्ट्रांग नही बना था सो कॉलेज की पढ़ाई समझ नही आ रही थी। ट्यूशन के पैसे थे नही। फेल होना पक्का था।
दूसरी क़िस्त जमा करवाने से पहले, घरवालो के पैसे बर्बाद हो जाएंगे ये सोच निर्णय लिया कि आर्ट्स ही ले लेते हैं।
बहुत दिन झगड़े हुवे,घरवाले नही माने।
आखिरकार सुसाइड की धमकी दी, तब डर के आर्ट्स कॉलेज में एडमिशन करा दिया ।
आर्ट्स की क्लास होती ही न थी, सरकारी कॉलेज था,1600 रुपये फीस थी।
ग्रुप प्राइवेट कॉलेज में बना हुआ था, आई कार्ड भी बने हुवे थे, कुछ मास्टर भी जानने लग गए थे।
सो एन्जॉय करने के लिए इसी कॉलेज में आता रहा।
अब इस कॉलेज में थे ही नही तो डर बिल्कुल भी न रहा।
दिनभर कॉलेज में रहना और दोस्तो से गप्पे,ऐसे ही लाइफ चल रही थी।
दोस्त लोग जब राज को पूछते थे, किसी लड़की को नही पटाते तो राज मन ही मन सोचता "गर्लफ्रैंड होगी तो कुछ खर्चे होंगे, घुमाने के लिए गाड़ी भी नही, अच्छे कपड़े भी नही"
राज कहता यूं समझलो ब्रह्मचारी हूँ, लड़कियों मैं इंटरेस्ट नही।
किस्मत ने ऐसा नाम दिया कॉलेज में की राज के कहे हर काम होने लगे।
क्लास के टाइमिंग चेंज कराने हो, बाबू या प्रिंसिपल से काम कराना हो, वो हो जाता था।
राज को भी लगता, ये कैसे हो गया।
राज के काम बढ़ते गए, दोस्तो के भेष में कई चापलूश बढ़ते गये।
पर राज था सीधे स्वभाव का, उसको काम के बदले पैसा बनाना न आता था।
अपना काम निकालने के लिए लोग उसे - बात का पक्का, एक बार बोल दिया तो काम हो के रहेगा, ईमानदार, डॉन, ब्रह्चारी, ये सब कहने लगे।
राज भी इनमें बंधता गया।
वैसे भी राज की खुद की भी आदत थी, प्राण जाए पर वचन न जाये।
दोस्तो के लिए कई और झगड़े भी हुवे, उसका कोई पर्सनल झगड़ा किसी से न था।
समय ने राज का ख्याल रखा और उसका नाम कॉलेज में और बड़ा हो गया।
घर के हालात और साईकल अब भी वही थे। पर राज की हिम्मत और हौसला बढ़ चुका था।
ऐसे में ही पहला साल निकल गया।
दूसरा साल शुरु हुआ और अब राज सीनियर था, उसकी रैगिंग तो नही हुई थी पर उसके दोस्त लोग रैगिंग लेना चाह रहे थे।
राज ने हां की तो सब मस्ती से उछल पड़े।
रैगिंग में जब ज्यादतियां होने लगी तो राज ने मना किया, उसके साथियों की हिम्मत न थी कि उसके बिना अकेले रैगिंग करले।
उन्हें पता था, लड़ने के लिए राज हैं।
तभी एक लड़के अनिल ने कहा- यार आप तो ब्रह्मचारी रह गये, नही तो लड़कियों की रैगिंग करते।
राज को आईडिया अच्छा लगा, उसने लड़कियों से फर्स्ट ईयर में बहुत दूरी बना ली थी। उसमे कई डर थे।
उसे लगा पटानी नही तो क्या, बात करने में क्या जायेगा।
राज ने हां करदी।
सब उसे देखने लग गए, पर रैगिंग लेगा कोन, हमारे ग्रुप में तो कोई लड़की भी नही।
राज ने कहा -हम लोग।
राज साथ आया तो एक बड़ा ग्रुप साथ हो गया, कुछ उसके दोस्त और कुछ और लोग भी।
रैंगिंग की क्लास तक पहुंचे तो किसी की हिम्मत न हुई कि लड़कियों से बात करें।
राज समझ गया,इनमे किसी के बस की बात नही।
राज ने इंट्रोडक्शन लेना शुरु किया, कुछ देर बाद सब बोलना शुरू हुवे।
राज ने सब लड़कियों को सीनियर्स को देखते ही सैलूट करने को कहा।
सबने माना भी, बाद में ये सीन उसी साल आयी मूवी " तेरे नाम" मे भी आया तो सब दोस्तो ने बहुत एन्जॉय किया।
उन्हें लगा हमारा आईडिया फ़िल्म वालो को कैसे पता चला।
कुछ देर बाद राज बाहर आ गया।
बाहर क्लासरूम की गैलरी में कॉलेज हॉल से आती हुई एक लड़की दिखाई दी।
उसकी आंखें टाइटैनिक के रोज़ जैसी थी, रंग भी वैसा।
राज उन आंखों में खो ही गया।
तभी सर आ गये। तो सब निकल गए।
राज के दिल मे वो आंखे उतर गयी, उसे चेहरा भी याद नही रहा।
जब नजरें इनायत हुई थी पहली बार, बेखुद में यार हुआ
चेहरा भी तो याद नहीं रहा, पहला पहला प्यार हुआ
यह न पूछो वो रात कैसे गुजरी वह सुबह का इंतजार कैसे हुआ
तुझसे मिलने के लिए ए जिंदगी मैं कितना बेकरार हुआ
चेहरा भी तो याद नहीं रहा, पहला पहला प्यार हुआ
सुबह राज ने अपने दोस्त दिनेश को बात बताई।
अगले दिन राज उसी क्लास के बाहर खड़ा था, उसे चेहरा नही याद था।
सब दोस्त लोग उसपे हँस रहे थे, की हम क्या क्या देख लेते हैं,आपको चेहरा भी याद नही।
राज बड़ा अजीब लड़का था, एक तरफ 22 का होके अपने तोर तरीको से वो 26 का लगता था और उसकी दबंगई थी।
दूसरी तरफ वो शराब, सिगरेट, गाली गलौच, गंदा बोलना इन सबसे उसे परहेज़ था। उससे दोस्त लोग भी आदर से बात किया करते थे।
राज को आज किसी की भी रैगिंग लेने की इच्छा नही थी, उसे बस उसका इंतज़ार था।
तभी वो हुस्न परी आई, आंखे मिलते ही राज ने उसे पहचान लिया।
बात की, इंट्रोडक्शन लिया, नाम पूछा।
उसका नाम राज़ के दिल मे उत्तर गया। "नेहा"
वो चली गयी पर राज के मन मे अपनी छवि उतार गयी।
दीवानों सी हालत हो गयी।
अब बस कॉलेज में हरदम नज़रे उसे ही तलाश करती।
उसके दीदार से एक तृप्ति सी मिलती।
एक तो वो लड़की जूनियर थी दूसरा राज का नाम बदनाम था।
पर उसे डर किसी बात का न था, न अपनी गरीबी का, न कपड़ो का।
वो बस उससे किसी बहाने बात करना चाह रहा था।
राज मोके निकाल निकाल के बात कर रहा था, कभी नोट्स के बहाने, कभी बुक्स के बहाने, उसकी हेल्प करना राज को अच्छा लग रहा था।
उसे भी राज से बात करने में कोई प्रॉब्लम न थी, उसे अच्छा भी लगता था बस राज का अति उतावलापन उसे थोड़ा परेशान करता था।
एक आध महीना ऐसा चला कि एक दिन कुछ साथी शिकायत लेके आये की एक लड़की हैं जिसने इंट्रोडक्शन नही दिया और हमें झाड़ दिया।
राज ने उस लड़की से क्लास में बात करनी चाही पर वो गैलरी में आ गई।
राज ने उससे बात करनी चाही पर उसने तड़ाक से जवाब दिया- " हु द हेल आर यू"
राज ने कहा - मै आपका सीनियर हूँ। आपसे बात करना चाह रहा हूँ।
लड़की ने ब्लैक जीन्स और शार्ट टॉप पहन रखा था, उसकी कमर दौ, तीन इंच साफ दिख रही थी।
लड़की बोली - यू हेव नो राइटस टु रैगिंग
लड़की की तेज आवाज सुन गैलरी और हॉल में काफी स्टूडेंट इक्कठे हो गए।
राज ने उसको रोकना चाहा पर वो मुह फेर के जाने लगी।
सब लोग राज को देख रहे थे, राज को क्या करना चाहिए, उसे पता न था।
उसने उसे रोकने के लिए हाथ बढ़ाया पर वो थप्पड़ में तब्दील हो गया।
लडक़ी रो के भाग गई, सारे हाल में सन्नाटा छा गया।
राज भी वहाँ से चला गया, पर उसे बड़ा अफसोस हो रहा था कि उससे ये पाप हो गया।
ये मामला बढ़ने से पहले ही कंट्रोल हो गया।
पर ये बेड पब्लिसिटी इतनी फैली की, कॉलेज तो क्या, उसके बाहर भी लोग उसे जानने लगे।
कुछ बाहर के खराब लोग जिनको अपने काम साधने थे, राज की तारीफ कर कर उससे दोस्ती करने लगे।
कॉलेज में तो हर जूनियर सीनियर की जबान पे उसका नाम था।
एक दोस्त के प्रोजेक्ट रिपोर्ट पे साइन न हुआ तो,राज क्लास में जा टीचर को धमकी दे आया। डर के टीचर ने साइन कर दिए।
सब बातों ने राज की बदनामी में चार चांद लगा दिए।
बात नेहा तक भी पहुंची और उसने दूरी बना ली।
राज को भी लगा अब क्या करें, कोई नही जाने दो।
राज के छिछोरे दोस्तो ने भाभीजी, भाभीजी कह नेहा को परेशान कर दिया।
गलती राज की भी थी कि उसने दोस्तो को ज्यादा ही ढील दे रखी थी।
राज के सच्चे दोस्त जो बचपन के साथी थे, जिसके साथ उसे सोचने समझने की जरूरत न थी, वो तो दूर थे, कोटा में थे।
और ये सब जो थे वो सब नए थे और जरूरतों की वजह से साथ थे।
राज नेहा को भूलने की कोशिश कर रहा था कि नेहा ही एक दिन उसके पास आई।
तुम्हारे सारे दोस्त मुझे परेशान करते हैं, सब मुझे भाभीजी भाभीजी कहते हैं।
राज ने कहा आज से कोई नही कहेगा।
राज ने गुस्से से समझाया तो सब मान गए।
पर अब राज की हरकतों से नेहा दूर रहने लगी।
नेहा की दूरी राज को परेशान करने लगी।
वो उससे बात करना चाह रहा था पर उसकी गलतिया और गुस्सा कंट्रोल नही कर पाने की कमजोरी उसे खाये जा रही थी।
एक दिन जब तड़प बढ़ गयी थी किसी ने आ के बताया कि नेहा कॉलेज के पीछे जूस की दुकान पर हैं।
राज दो दोस्तों के साथ उनकी बाइक पे वहां गया।
नेहा से बात करनी चाही तो जूस वाले ने रोका।
किसी न किसी से कॉलेज में बहस बाजी होती रहती थी तो राज ने एक लंबा चौड़ा छुरा किसी मेले से लिया था।
यह छुरा दिखने में ही बहुत खूंखार था, उसने वो निकाल, दुकान वाले से दुकान बंद करवा दी।
नेहा भी डर गई, वो बहुत परेशान थी और गुस्सा भी।
वो एड़ी पटक के बोली, अपने आप को देखो, अपनी हरकते देखो, गुंडे लगते हो। अपने दोस्तों को देखो सब चोर लफंगे लगते हैं। लड़ाई के अलावा तुम्हे आता क्या हैं। कोंन तुमसे दोस्ती करेगा।
राज को बात ठीक लगी, वो चला गया।
अगले दिन अकेला नेहा के पास गया और बोला- मैं सब छोड़ रहा हूँ, गलत लोगो से दोस्ती और लड़ाई झगड़े। फिर क्या तुम दोस्ती करोगी।
नेहा - छह महीने देखते हैं, अगर सुधर गए तो सोचूंगी
राज- किसी ने तुम्हे छेड़ा तो
नेहा - मैं खुद आके हेल्प मांगू, तब करना, नही तो कोई झगड़ा नही
राज और नेहा की कहानी कॉलेज में मशहूर और बदनाम होने लगी।
राज ने अपने पास जो भी छोटे मोटे हथियार थे, जैसे गुप्ति, छुरा, क्लिप, चैन सब दोस्तो में बांट दिए।
कुछ से दोस्ती तोड़ ली।
कुछ जो पहले डरते थे अब उसका मजाक उड़ाने लग गए।
कुछ जो बिना वजह ही राज से जलते थे या दुश्मन थे, नेहा को परेशान करने लगे।
पर राज चुप ही रहा।
एक दोस्त जो थोड़ा समझदार था, उसने कहा हुलिया देखो अपना, कोई लड़की क्यों पसंद करेंगी।
राज ने पहली बार ध्यान से अपने आप को देखा और उसे बात सही लगी।
राज ने लाल टिका लगाना बंद किया, कान से बालिया निकाली, बालों को थोड़ा ट्रिम किया।
मूछें हटा दी, जिसे वो अपनी शान समझता था।
कुछ पैसे इकट्ठे कर कुछ जीन्स और टीशर्ट लिए।
अब जो राज निकल के बाहर आया वो 22 साल का, सुंदर नयन नक्श का लड़का था।
वो रूप में अब कॉलेज में किसी लड़के से कम न था।
वो चुपचाप कॉलेज जाता था, नेहा से भी बात न करता था, उसे बस छह महीने खत्म होने का इंतज़ार था।
इसी बीच नेहा ने एक लड़के से दोस्ती करली थी, जो राज का ही क्लासमेट था। लड़का राज को ठीक ही लगता था।
राज ने न कुछ कहा न कुछ किया।
कुछ ने बहुत चिढ़ाया की लड़की ले जायेगा, गुस्सा आते हुवे भी राज कंट्रोल कर लेता।
अब राज का सीधा नजरिया देख कुछ दोस्त बेलगाम होने लगे।
एक बार राज के साथ ही बैठे बाइक पे, दिनेश ने एक स्कूटी पे जाती लड़की के पीठ पे मारा।
राज ने डांटा, उसको ये सब बिल्कुल पसंद न था, पर उसको ज्यादा फर्क न पड़ा।
राज ने ऐसी हरकत में आगे से साथ न बैठाने को कहा।
पर राज ऐसे दोस्तो से भी दोस्ती न तोड़ी।
अच्छे दोस्तो की कमी ने,उनके अभाव ने राज को बेकार दोस्तो की दोस्ती का भी गुलाम बना दिया था।
उससे ना कहना, न होता था।
लगभग चार महीने गुज़र गए। नेहा अपने नये दोस्तो में खुश थी,उसके दिमाग से राज का खतरा निकल गया था।
उसे अब कोई लगाव भी न था राज से।
राज ने बात करनी चाही पर उसको सही रेस्पोंस न मिला।
राज - नेहा मेने सब छोड़ दिया हैं, बिल्कुल बदल गया हूँ।
नेहा - हां, दिख रहा हैं, अब अच्छे लग रहे हो।
राज - अब बात कर सकते हैं।
नेहा - हां क्यों नही, कभी कभी कर सकते हैं
राज- कभी कभी? मै तुमसे रोज बात करना चाहता हूं, तुम्हारे साथ टाइम गुजारना चाहता हूं।
नेहा - क्यों
राज - क्यों? तुम्हे नही पता। में तुम्हारे बिना जी नही सकता। तुम्हारा चेहरा हरपल मेरे साथ रहता हैं।
नेहा - आप गलत समझ रहे हो। आप कहां जा रहे हो, मैने दोस्ती का, नार्मल बात करने का बोला था।
राज गुस्से में आ जाता हैं।
राज - नेहा मै तेरे बिना नही जी सकता, या तो तुझे मार दूंगा या खुद मर जाऊंगा।
नेहा - गुस्से में - मुझे जीना हैं, तुम्हे मरना हैं तो मरो।
राज गुस्से में चला जाता हैं, रात भर सोचता हैं और मरने का फैसला कर लेता हैं।
उसने नेहा को मरने का बोला हैं तो मर जायेगा, पीछे नही हटेगा।
वैसे भी वो अपनी बात से, अपने वचन से पीछे नही हटता।
कहीं मरने में चूक ना हो जाये सो फिनाइल के अलावा एक ब्लेड पिछली जेब मे डाल देता हैं।
और इससे भी बच गया तो कॉलेज के ऊपर से कूद के जान दे देगा।
राज ने नेहा के लैंडलाइन नंबर पहले ही पता कर लिए थे।
उसको कॉल कर के कह भी दिया कि कल 12 बजे तक तूने " आई लव यू'
नही बोला तो में मर जाऊंगा।
नेहा कॉलेज ही नही आती हैं।
12 बजते ही बीच कॉलेज में राज फिनाइल पिने लग जाता हैं।
2 घूंट से ही उसका गला चोक हो जाता हैं।
तभी पास में खड़े उसके जूनियर्स उससे बोतल ले फेंक देते हैं।
सब लोग उसे देखने लग जाते हैं।
कुछ साथी राज को दूर लेके चले जाते हैं।
राज को पता होता हैं कि उसके पास ब्लेड भी हैं पर वो उससे सुसाइड नही कर पाता, पता नही क्यों?
उसे मरने का या दर्द का कोई डर नही होता, पर वो ब्लेड से ट्राय नही करता हैं, न ही कॉलेज से जम्प करता हैं।
कोई नेहा को खबर देता हैं, नेहा स्कूटी लेके आती हैं।
कॉलेज की दीवार पर ही उदास, हताश राज को देखती है।
एक मिनट के लिए आंख मिलाती हैं और वापस घर चली जाती हैं।
शाम को जैसे जैसे दोस्तो को खबर मिलती हैं,सब इक्कठे होते हैं।
सब नेहा को बुरा भला कहते हैं, राज मना करता हैं।
कुछ कहते हैं- अच्छे भले आदमी को खराब कर दिया।
कुछ - उठा लेंगे साली को।
राज को दो एक पेग भी पिला दीये जाते हैं।
एक ने राज से नेहा के नंबर मांगे।
कोई समझदार आदमी न थे पर राज ने नंबर दे दिए।
वो कॉल कर पहले नेहा को, फिर उसकी माँ को, फिर उसके भाई को गंदी गालियां देते हैं, डराते हैं।
राज जिस भाषा में नेहा से बात नही कर सकता,उस भाषा मे उसके दोस्त लोग, उसके परिवार से बात करते हैं।
राज जानता था कि सब गलत हो रहा हैं, पर वो बातें सुन पागलो की तरह हँसता हैं।
अगली सुबह
राज जानता था कि नेहा को उसने हमेशा के लिए खो दिया हैं।
उधर नेहा के पिताजी राज के घर का पता कर, उसके वार्ड पंच को कॉल कर सारी बात बताते हैं और सब ठीक करने को कहते हैं।
वार्डपंच राज को कॉल करता हैं, पर राज का गुस्सा कम नही हुआ होता वो वार्डपंच को भी धमकी देता हैं और नेहा की स्कूटी तोड़ने की धमकी देता हैं, क्योंकि वो नेहा को नही मार सकता पर उसकी स्कूटी तो तोड़ ही सकता हैं।
वार्ड पंच राज के पिताजी को खबर देने की बात कहते हैं, इससे राज घबरा जाता हैं।
उसकी गरीबी उसे घेर लेती हैं, वो भावुक हो जाता हैं, पिताजी क्या सोचेंगे।
वो वॉड पंच को कहता हैं अब सब खत्म, कुछ नही होगा। सब मस्त रहो।
कुछ ही देर बाद एक छिछोरे दोस्त ने पुराने किसी दुश्मन से झगड़ा मोल ले लिया। क्योंकि राज वही था उसकी हिम्मत बढ़ गयी।
कुछ देर में बहुत सारे लोग आ गए, राज अपने दोस्त को बचाने के लिए लड़ा।
पर वो लोग ज्यादा थे, राज ही लड़ रहा था तो वो ही सबका शिकार हुआ।
कुछ ही देर में उसके होंठ, नाक, कान फटे थे, वो जमीन पे गिरा था।
कुछ देर में पुलिस आ गयी, बड़ी मुश्किल से वो वहाँ से निकला।
हालांकि इन लोगो की राज से और राज को इनसे कोई दुश्मनी न थी पर नेहा का गुस्सा इन लोगो पर उतर गया।
राज ने सौगंध खायी की जिसने पीछे से वार किया था, उसको मार डालूंगा।
राज जो कि दोस्तो को ढाल की तरह लगता था, वो ढाल अब उन्हें कमजोर लगने लगी।
मर्डर की सौगंध भी सब मे डर पैदा कर देती हैं।
जो लोग राज के आगे पीछे रहते थे, वो अब दूर भाग रहे थे, मिल भी नही रहे थे।
कुछ कहते थे, की अब उसकी आँखों मे वो तेज़ नही रहा।
कुछ लोगो को राज ने बोल रखा था कि वो लड़के कहीं दिखे तो बताना।
कुछ ने बताया भी पर वो दूरी पे थे और राज के पास बाइक नही थी और कोई साथी साथ चलने को या सिर्फ गाड़ी देने को राजी नही था।
राज निराश होता गया। बदला लेने की शर्त ने उसे बहुत अशांत कर दिया था।
और वो अकेला ही निराश, हताश और परेशान था।
जिनकी दुश्मनी थी वो डर गए थे या शांति धर ली थी।
राज सोचता था काश मेरे पास जीप होती, दुश्मनों के उपर से चढ़ा देता।
राज लड़ाई में भी बहुत ईमानदार था और अकेला था।
कुछ दिन के लिए उसको शहर से बाहर जाना पड़ा।
उस वातावरण में उसे समझ आया कि उसके दोस्त कैसे हैं।
वो बदला इसलिए लेना चाहता हैं कि 2 साल का बनाया नाम खराब न हो।
बाकी तो लड़ने का कोई मतलब ही नही या फिर मेरा घमंड ही मुझसे ये सब करवा रहा हैं।
राज अपने आप से ईमानदार होने लगा, खुद को और जानने लगा।
क्यों उसे जूठे दोस्तो की नज़र में सम्मान चाहिये।
राज मन ही मन सोचता था, कही मुझमे डर न बैठ जायें सो एक बार सामने आएंगे तो मारूँगा जरूर पर जान से नही मारूँगा।
एक महीने बाद तीन लोग जिनसे लड़ाई हुई थी, एक साथ दिखे। राज अकेला था।
वो कुछ दूरी पर थे राज उन्हें घूरे जा रहा था, वो सोच रहा था, इनमे कूद पडूं।
पर उसमे अन्दर से वो ऊर्जा नही आ रही थी।
तीनो ने नज़रे झुकाई और पास के किसी बिल्डिंग में चले गए।
राज ने जैसे ही इन सब चीजों से हटने की सोची, उसको बड़ी शांति सी महसूस हुई।
शांति कितनी जरूरी हैं उसे पहली बार एहसास हुआ।
अब उसे कुछ न चाहिए था, न सम्मान, न नाम, न प्यार।
उसे बस अपने मे कुछ सुधार करने थे और बहुत कुछ अपने बारे में जानना था।
छह महीने के लिये राज ने खुद को घर मे कैद कर लिया।
सब मूर्खो से दोस्ती तोड़ी।
गलत को गलत और सही को सही देखना सीखा।
आखिरी एग्जाम के दिन, अपने शांत सुंदर रूप में नेहा के पास गया, अब वो छह महीने बाद नेहा से मिला।
उसने नेहा से पूछा - केसी हो
नेहा - ठीक हूँ।
एक बार आंख मिला, थोड़ा मुस्कुरा, राज नेहा की जिंदगी से हमेशा के लिए चला गया।
पर वो अकेला नहीं था, लव विद नॉलेज से वो परिपूर्ण था।