निशान्त मिश्र

Horror

4.5  

निशान्त मिश्र

Horror

आवाज़ मत देना!

आवाज़ मत देना!

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“एक ओर तो ये स्कूल वाले, टीचर – पेरेंट्स मीटिंग में कहते हैं कि बच्चों को मोबाइल से दूर रखा कीजिये, आँखों पर बुरा असर पड़ता है; दूसरी तरफ़ सुबह से शाम तक ऑनलाइन क्लासेज चला रहे हैं, सात – सात घंटे बच्चे मोबाइल में ही उलझे रहते हैं; ऊपर से दस – दस असाइनमेंट....घर का काम, साफ़ – सफ़ाई, सच बता रहे हैं हालत खराब हो जाती है; क्या क्या करे आदमी !!!” प्रभा के स्वर में झुंझलाहट और थकावट के साथ साथ, कुछ कुछ निराशा के भाव भी स्पष्ट रूप से सुनायी दे रहे थे.


“हाँ, बात तो सही है, समझ नहीं आता कि कब तक चलेगा ये सब !” प्रभा की निराशा ने नरेन्द्र को भी सहमति के दो शब्द बोलने पर विवश ही कर दिए!

“इन लोगों को समझना चाहिए कि घर पर पैरेन्ट्स ख़ाली नहीं बैठे हैं कि दिन भर बच्चे के साथ मोबाइल में ही लगे रहें”, प्रभा ने ज़ारी रखते हुए कहा; “ऊपर से जब देखो, मोबाइल ही हैंग हुआ रहता है, कभी इंटरनेट चला जाता है, तो बैटरी डाउन हो जाती है...”


“अरे एक बात का ध्यान रखना कि मोबाइल को चार्जिंग पर लगाकर इंटरनेट मत चलाना, मोबाइल ब्लास्ट हो सकता है”, प्रभा की बात बीच में ही रोककर सावधानी बरतने की सलाह देते हुए नरेन्द्र के माथे की सिकुड़ती हुई लकीरें बता रही थीं कि प्रभा की चिंता कितनी गंभीर थी!

“वो तो करना ही पड़ता है, सात – सात घंटे मोबाइल चार्ज कैसे रहेगा ?” प्रभा की बात बिलकुल जायज़ थी, और इस बात ने नरेन्द्र की चिंता को और भी बढ़ा दिया था! आये दिन अख़बार में और इंटरनेट पर मोबाइल ब्लास्ट की घटनाएँ आती ही रहती थीं!


“देखो, सुबह उठने के बाद मोबाइल चार्जिंग पर लगा दिया करो, और दस बजे के पहले, जब वो फुल चार्ज हो जाए तो हटा लिया करो; किसी भी सूरत में मोबाइल को चार्जिंग पर लगाकर सोना नहीं, न ही चार्जिंग पर लगाकर इंटरनेट चलाने देना स्तुति को, न बात करना, सही से समझा देना स्तुति को सब !”


“क्या करें, जैसे ही कुछ समस्या हुई नहीं कि मोबाइल में, इनका रोना शुरू हो जाता है; मैम डाटेंगी, हमारा असाइनमेंट छूट जायेगा, मार्क्स कम मिलेंगे....बच्चे हैं, परेशान हो जाते हैं” प्रभा ने अपनी मजबूरी को तार्किक ढंग से नरेंद्र को बताने की कोशिश की!


“दो चार क्लास मिस हो गयीं, तो इतना फ़र्क नहीं पड़ेगा, नंबर ही नहीं होते सब कुछ, ज़िंदगी से ज्यादा कीमती कुछ नहीं है, स्साले....पगला गए हैं फीस के चक्कर में बिलकुल, इससे अच्छा विद्या मंदिर में पढ़ाते, अंग्रेज न बनते तो कुछ तो सीखते ही; हम भी शिशु मंदिर में पढ़े हैं...“ नरेंद्र को अब उलझन होने लगी थी, गुस्सा भी आ रहा था!


“अब क्या करेंगे, सभी तो अंग्रेजी मीडियम में ही पढ़ा रहे हैं बच्चों को आजकल; आप ज्यादा परेशान मत होइए, सभी स्कूलों में यही चल रहा है, थोड़ा और ध्यान देंगे” नरेंद्र को परेशान होता देख जैसे अपनी सारी परेशानियाँ कम लगने लगीं प्रभा को; सच तो ये था कि उसने नरेंद्र को ढाढ़स बँधाने के उद्देश्य से विषय को समाप्त करना श्रेयष्कर समझा! यही तो भारतीय नारी के दैवीय रूप का निरूपण है! कहाँ तो उसने अपनी पीड़ा को कुछ कम करने के लिए, सांत्वना हेतु, कुछ मानसिक बल की अपेक्षा में नरेंद्र को फ़ोन किया था, किंतु यहाँ तो उसे ही सांत्वना देनी पड़ रही थी; नरेंद्र को! पत्नी के अलावा वो एक माँ भी तो है!


किंतु ऐसा ही नहीं था कि नरेंद्र, प्रभा की बातों से उसकी भावनाओं को भांप नहीं पाया था; उसने शीघ्र ही अपनी गलती सुधारते हुए कहा, “नहीं, ऐसा नहीं है, परेशानी की कोई बात नहीं; नयी नयी कोई भी चीज़ पहले अजीब ही लगती है, धीरे धीरे आदत पड़ ही जाती है”, “अब टीचर भी क्या करें, स्कूल से दबाव होगा, स्लेबस ख़त्म करने का! और स्कूल को भी तो टीचरों को सैलरी देनी होगी”, अब नरेंद्र ठंडे दिमाग से, बहुत परिपक्वता के साथ अपने शब्दों को बुन रहा था, ठीक उसी तरह जैसे प्रभा! पिता के अलावा वो एक पति भी तो है!!

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दो साल पहले ही नरेंद्र का स्थानांतरण उसके गृह जनपद संग्रामगढ़ से चंड़ीगढ़ हो गया था; कारण एक ही था – ज़रूरत से ज्यादा ईमानदारी, और भ्रष्टाचार का विरोध! नरेंद्र एक मिल्क प्रोडक्ट्स की कंपनी में काम करता था, मैनेजर के पद पर था; उच्च शिक्षित होने के बावज़ूद ज्यादा तरक्की नहीं कर पाया! कंपनी की थर्ड पार्टी (कॉन्ट्रैक्ट) इकाइयाँ पूरे देश में फ़ैली हुई थीं, कमोवेश प्रत्येक राज्य में! ऊपर के अधिकारी कॉन्ट्रैक्टरों से मिले हुए थे; महीना, दिवाली, होली, नया साल, बर्थडे गिफ्ट, बच्चों की फ़ीस, टूर के ख़र्च इत्यादि सब इन्हीं कॉन्ट्रैक्टरों की मेहरबानी से ही पूरे होते; बदले में भ्रष्टाचार के सभी अवसर मुहैया करवाना उनका फ़र्ज़ होता! नरेंद्र बाबू को तो ईमानदारी की सनक सवार रहती, चाय तक न पीते थर्ड पार्टी के यहाँ; ऊपर से तुर्रा ये कि “न खाऊंगा, न खाने दूँगा!”


“कलयुग में कहाँ जन्म ले लियो हो महाराज, तुम्हें तो त्रेता में पैदा होना चाहिए था”, सभी तंज कसते नरेंद्र की इस सनक पर! पर उसे तो जैसे फ़र्क ही नहीं पड़ता था,”तो त्रेता में भी रहे ही होंगे; युग बदलने से मनुष्य का चरित्र तो नहीं बदल जाता, ‘ईश्वर अंश जीव अविनाशी’, जीव तो वही रहता है ना!” नरेंद्र अपनी सनक को अपना स्वाभिमान मानता! “श्री राम ने भी तो कितने कष्ट उठाये, हरिश्चन्द्र क्या सनकी थे? चंद्रशेखर आज़ाद और भगत सिंह क्या सनकी थे? ये आज का आदमी बहुत समझदार है जैसे; चोर!भ्रष्टाचारी!कमीने हैं सबके सब” नरेंद्र अपने आप में ही बड़बड़ाता रहता, खुद से बातें करता रहता; पर यहाँ ‘प्रोफेशनलों’ के बीच में वो सबको बहरा ही पाता! उसे अपनी विद्यालयी शिक्षा पर बहुत गर्व था, श्री राम और श्री कृष्ण को उसने कभी भी काल्पनिक पात्र नहीं माना! किंतु जब कभी घर में कोई समस्या होती तो वो स्वयं को कोसता, कभी कभी अकेले में रोता भी! कहता, “क्या स्वाभिमान की इतनी बड़ी कीमत होती है?” पर सुनने वाला कोई न था; कोई था तो बस भगवान्! जिनसे वो सदैव यही माँगता कि उसे सच्चाई के मार्ग से कभी न हटना पड़े, चाहे जितनी बाधाएं आयें!


कोरोना की वजह से पूरे देश ही नहीं, पूरे विश्व में त्राहि – त्राहि मची हुई थी, लॉकडाउन चल रहा था; कोई भी बेवजह घर से बाहर नहीं निकल सकता था. शिक्षण संस्थान भी अपवाद नहीं थे! इसलिए आजकल एक नया फंदा पैरेन्ट्स के गले आ पड़ा था – ऑनलाइन क्लासेज! जो माता – पिता अभी तक इंटरनेट को व्हाट्सएप से अधिक नहीं जान पाए थे, उनके लिए ये अग्नि परीक्षा साबित हो रहा था! कोरोना ने उन्हें भी एक बार पुनः छात्र जीवन के दर्शन करा दिए थे! नित नयी गतिविधियों को देख कर एक ओर जहाँ उनका भी ज्ञानवर्धन हो रहा था, तो वहीँ दूसरी ओर गृहकार्यों में भी पर्याप्त विघ्न पड़ रहा था! ये प्रभा जैसी उच्च शिक्षित किंतु पूर्णकालिक गृहिणियों के लिए परीक्षा की घडी थी! नरेंद्र जैसे पिताओं के लिए, जो सुदूर रोजी रोटी के लिए गृहस्थ में भी ब्रह्मचर्य का जीवन व्यतीत कर रहे थे, एक कठिन समय था! दुग्ध उत्पादों को सरकार ‘आवश्यक वस्तुओं’ की सूची में रखा था, मतलब फैक्ट्री चालू! वो न तो घर जा सकता था, न ही अवकाश ले सकता था; वो बस लड़ सकता था – अपने ही भाग्य से!! और शायद उसने हार ही नहीं मानी थी अब तक, हार तो कब का चुका था वो, समय और भाग्य से!! पर असली लड़ाई देखनी तो अभी बाकी थी!!

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१४ मई, २०२०; दिन गुरुवार!


टेलीविज़न खोलते ही एक दुखद समाचार ने नरेंद्र को स्तब्ध कर दिया! संग्रामगढ़ में १३ वर्ष की एक बच्ची लापता, और पूरे परिवार के लोगों के शव क्षत – विक्षत अवस्था में पाए गए!! शवों को क्रूरता से नोचा गया था; आँखों से पुतलियाँ नसों के सहारे बाहर लटक रही थीं! चारों ओर रक्त ही रक्त बिखरा पड़ा था! पुलिस छानबीन कर रही थी, पर हत्यारों का सुराग नहीं मिल पा रहा था!


“मेरो गाम काठा पारे, जहाँ दूध की नदियाँ बाहे,

जहाँ कोयल कू कू गाये, म्हारे घर अंगना न भूलो ना......”


एक क्षण को सन्न रह गया नरेंद्र, विज्ञापन देखते ही जैसे सोते से जागा, दौड़कर मोबाइल उठाया, और कॉल सेक्शन को स्क्रॉल करने लगा! हड़बड़ाहट में वो प्रभा का मोबाइल नंबर ढूंढ ही नहीं पा रहा था; उसका दिल धाड़ धाड़ कर रहा था, बेचैनी हिलोरें मार रही थी, भय से आँखें बाहर निकलने को आतुर हो रही थीं, किसी अनहोनी की आशंका में! “कहीं...नहीं नहीं...ये नहीं हो सकता!”, एक ही क्षण में सैकड़ों दुखद विचारों से उसका सिर फटा जा रहा था; “हे भगवान्! रक्षा करना, मेरे परिवार की!!” बड़बड़ाते हुए याचक की दृष्टि से उसने एक बार पूजा घर की ओर दोनों हाथ जोड़कर मिन्नतें कीं!


“हलो...हलो..., कोई फ़ोन क्यों नहीं उठा रहा...” नरेंद्र की घबराहट बढती ही जा रही थी. उसने एक के बाद एक तीन बार प्रभा को फ़ोन मिला डाला!


“उहू..उहू..खाँसते व छींकते समय रुमाल या टिश्यू पेपर का प्रयोग करें! हाथों को लगातार धोएं, नाक, कान व मुँह को बार – बार छूने से बचें! खांसी व बुखार वाले व्यक्ति से एक मीटर की दूरी बनाये रखें! लगातार बुखार रहने पर नज़दीकी स्वास्थ्य केंद्र पर जाकर जाँच कराएँ!....आप जिस व्यक्ति से बात करना चाहते हैं, वो अभी जवाब नहीं दे रहे हैं.....द पर्सन...”,


“हाट..ट..!!” नरेंद्र पागल हुआ जा रहा था!!! उसे लगा कि मोबाइल ज़मीन पे दे मारे; फिर उसने खुद को थोड़ा सँभालते हुए पिताजी को फ़ोन लगाया...”


उहू..उहू..खाँसते व छींकते समय रुमाल या टिश्यू पेपर...”, “हाट..ट..!!” सम्हला हुआ नरेंद्र अब बिलकुल आवेशी हो चुका था! “कोई फ़ोन क्यों रिसीव नहीं कर रहा?कहीं...सोचते ही वो भय से काँप उठा! लेकिन उसने धैर्य न छोड़ा, फिर से फ़ोन प्रभा को लगाया!


“उहू..उहू..खाँस..हाँ, हलो....हलो...हलो..ओ” ये प्रभा की आवाज़ थी! नरेंद्र मोबाइल पकड़ के ज़मीन पर बैठ गया, उसकी धडकनें सामान्य होने लगीं, सबसे पहले उसने भगवान् के सामने माथा रखकर हाथ जोड़े, आंसुओं को पोंछा, कुछ संयमित हुआ, और फ़िर बोला – “हलो!”


“बोल क्यों नहीं रहे थे, हम हलो हलो किये जा रहे हैं तब से...” प्रभा का गुस्सा स्वाभाविक था! “फ़ोन क्यों उठाती हो? हम कब से फ़ोन लगा रहे हैं!!” नरेंद्र गुस्से में बोला, पर अन्दर ही अन्दर वो कितना खुश था अपने परिवार को सुरक्षित जान, उसने जाहिर नहीं होने दिया!


“अरे स्तुति की ऑनलाइन क्लासेज चल रही थीं, और नमन भी चिल्ल – पों काटे पड़ा था; पापा को ऑफिस जाना था, उनके लिए खाना बना रहे थे! अभी स्कूल से नोटिस आई है कि आनन्द भवन जाने कहाँ है, बुक्स लेने भी जाना है; एक काम तो है नहीं!” प्रभा ने थोड़ा चिढ़ते हुए कहा!


नरेन्द्र को सदैव से ही प्रभा पर गर्व रहा है, आखिर दोनों एक जैसे ही तो हैं; समय से हार न मानने वाले!!


“ठी...क है, ऑटो मिल जाये तो देख लेना” नरेंद्र ने प्रभा की हताशा को कम करने का प्रयास किया, “दोनों लोग हनुमान चालीसा याद कर रहे हैं कि नहीं?” नरेंद्र ने टॉपिक बदलते हुए प्रभा से पूछा!


“हाँ, याद तो करवाते हैं, स्तुति को लगभग पूरा याद हो गया है, नमन को अभी आधा ही याद हो पाया है; याद हो जायेगा!” “ठीक है, रखिये, पापा को खाना देने जा रहे हैं, बाद में फ़ोन करते हैं.”


नरेंद्र अब सामान्य था! किंतु, सुबह वाली ख़बर ने उसे अन्दर तक हिला डाला था; वो सोचने लगा कि कैसे भी कुछ अपना व्यवसाय किया जाय, पर रहा, परिवार के साथ ही जाये! जब से लॉकडाउन हुआ था, उसकी दिनचर्या पूरी तरह से अस्त व्यस्त हो गयी थी; ऱोज सुबह सुबह उठना, बर्तन धोना, खाना बनाना, कपड़े धोना, और फ़िर फैक्ट्री जाना! फैक्ट्री से घर आकर भी सुकून नहीं था; इसका फ़ोन, उसका फ़ोन..”कितने टैंकर लोड हुए, कहाँ कहाँ गए, प्रोडक्शन तेज करो, बात करो कॉन्ट्रेक्टर से, बहुत डिमांड है इस समय, जितना पैक हो जाये उतना बेहतर; लगे रहो!! इसी सब में पिस कर रह गया था उसका जीवन!!


“घर पर रहें, सुरक्षित रहें”, सुनकर उसका खून खौल उठता था. “कौन घर पर रहे, कैसे रहे, सेलरी तुम्हारा बाप देगा? बच्चों की फ़ीस कौन भरेगा??”

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अब तो ये ऱोज का किस्सा हो गया; “कल १५ साल की एक बच्ची गायब, परिवार के सभी लोग मृत पाए गए! १२ साल का बच्चा गायब, माता – पिता के शव बुरी तरह से उधड़े हुए पाए गए; आँखें बाहर लटक रही थीं!! पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला हत्यारों का!!”


“भड़ – भड़ – भड़ – भड़...” इस आवाज़ ने सोते हुए नरेन्द्र को झकझोर के उठाया, वो कुछ समझ पाता इससे पहले ही “धड़ाक” की बहुत जोर से हुई आवाज़ से नरेंद्र बुरी तरह डर गया. आवाज़ें नीचे से आ रही थीं; नरेंद्र ऊपर वाले कमरे में किराए पर रहता था, नीचे मकान मालिक, उनकी पत्नी, उनकी १३ साल की बच्ची और १२ साल का बच्चा, रहते थे! अचानक हुई आवाज़ों से बुरी तरह घबराया नरेंद्र, किसी तरह हिम्मत करके बिस्तर से उठा, और दरवाजे की ओर बढ़ा. आवाज़ें बढती जा रही थीं, और नरेंद्र का डर भी! उसे पहली बार लगा कि चोर आये हैं, इधर उधर ढूँढने पर उसे वाइपर मिला; यही उसका अपने बचाव में एकमात्र हथियार था! उसने रुद्राक्ष की माला उठाई, गले में पहनी, भगवान् को हाथ जोड़े और धीरे धीरे सीढ़ियों से नीचे की ओर बढ़ा!


“भाईसाब...भाईसाब...” नीचे किसी को न पाकर नरेंद्र ने मकान मालिक को आवाज़ दी, और फिर “जय श्री राम” की हुंकार भरके उसने दरवाज़े को जोर से लात मारी! दरवाज़ा खुला तो अन्दर का दृश्य देखकर उसकी रूह काँप गयी! मकान मालिक ज़मीन पर पड़े हुए थे, उनकी एक आँख बाहर निकलने को थी, दूसरी से खून बह रहा था; उनकी पत्नी और बच्चों का कहीं अता पता नहीं था! फिर उसने सामने देखा, और धड़ाम से नीचे गिर पड़ा!!

सामने एक भयानक आकृति खड़ी थी; सफ़ेद नीला चेहरा, गालों में घाव, होठों से टपकता रक्त, और...और...ये क्या..?? उसकी गोद में एक बच्चा भी था, नीले रंग का!! नरेंद्र चीखना चाहता था, पर भय से जड़वत हुए उसके होंठ आपस में चिपक गए थे, आवाज़ गले में घुट कर रह गयी थी! फिर वो आकृति गुर्राई, “मेरा बच्चा कहाँ है.....??” सुनते ही नरेंद्र के होश फाख्ता हो गए!! ये “ब्लडी मैरी” थी!!

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सुबह होते ही उसने आपके चारों ओर पुलिस को पाया. उससे थोड़ी पूछताछ हुई तो उसे पता चला कि मकान मालिक अस्पताल में भर्ती हैं, और भाभी जी तथा उनका बेटा नीचे वाले मकान में हैं, एक महिला पुलिस कर्मी के साथ! उनसे पूछताछ में कुछ भी पता नहीं चला है. दोनों बहुत गहरे सदमें में हैं, और कुछ भी बता पाने की स्थिति में नहीं हैं!


नरेंद्र की समझ में कुछ नहीं आ रहा था; एक ओर तो वो रात का दृश्य याद करके डर रहा था, दूसरी ओर सोच रहा था कि पुलिस को क्या बताये, न बताये! बहरहाल, उसने जो देखा, सब कुछ वैसा ही बता डाला; ये अलग बात थी कि किसी ने भी इस कहानी पर विश्वास नहीं किया, और इसे एक लूटपाट की घटना भर मानकर तफ़तीश ज़ारी रखी. लॉकडाउन की वजह से दुसरे लोगों को घर में आने की इज़ाज़त नहीं थी, बस उनके पास में रहने वाली वृद्ध हो चुकी बहन को उनके घर में ठहरने की अनुमति मिल सकी!


नरेंद्र को भी घर छोड़ कर कहीं न जाने की सलाह दी गयी; वो जा भी कहाँ सकता था, न तो यहाँ उसका कोई रिश्तेदार ही था, न ही वो घर जा सकता था! वो फँस कर रह गया था! दोपहर के १ बज रहे थे, तभी नरेंद्र को अपने मोबाइल की याद आई; बहुत ढूँढने पर भी उसे मोबाइल नहीं मिला तो वो नीचे मकान मालिक के कमरे की ओर चला, लेकिन सीढ़ियों से उतरते समय उसकी हिम्मत ज़वाब दे गयी, वो वापस लौट आया!


लौटकर उसने खुद को सम्हालते हुए एक बार फिर मोबाइल ढूँढना शुरू किया, तो रहस्मय ढंग से मोबाइल दरवाजे के पीछे टँगी हुई एक पैंट में मिल गया! उसे कुछ समझ नहीं आया! मोबाइल स्विच – ऑफ था. नरेंद्र ने मोबाइल चालू किया तो देखा कि उसमें बीस से ज्यादा मिस कॉल थीं; फैक्ट्री से, सहकर्मियों की, और प्रभा की! नरेंद्र ने तुरंत प्रभा को फ़ोन मिलाया!


“आपके द्वारा डायल किया गया नंबर अभी नेटवर्क क्षेत्र से बाहर है...कृपया दोबारा कोशिश करें!” नरेंद्र सिर पकड़ के बैठ गया. वो इतना टूटा हुआ महसूस कर रहा था कि दोबारा कॉल करने के लिए उसे अपने हाथ बहुत भारी जान पड़ रहे थे; वो समझ नहीं पा रहा था कि प्रभा के फ़ोन उठाने पर वो क्या कहेगा! हाँ, एक बात के लिए वो इस भयानक हादसे के बाद भी थोडा आश्वस्त था; वो थी परिवार की कुशलता! क्योंकि, अभी कल ही वो ऐसी ही स्थिति से गुज़र चुका था. उसे लगा, प्रभा के मोबाइल की बैट्री ख़त्म हो गयी होगी, ऑनलाइन क्लासेज के चक्कर में!


खैर, नरेंद्र ने फैक्ट्री कॉल करके सबको घटना की जानकारी दी, पर उसने “ब्लडी मैरी” वाली बात किसी को नहीं बताई, यह सोचकर कि कोई उसका विश्वास नहीं करेगा, और सब उसे पागल कहेंगे! पुलिस वाले अब जा चुके थे, नरेंद्र ऊपर वाले मकान में अकेला था; अब उसे रात का डर सता रहा था! उसने निश्चय किया कि वो नाहा धोकर पूजा - गृह में ही रहेगा, रात को नहीं सोयेगा, सुन्दरकाण्ड पढ़ते पढ़ते ही रात काटेगा! उसने किया भी यही! अभी वो नहाकर पूजा - गृह की ओर बढ़ा ही था कि मोबाइल की घंटी ने एकाएक उसके शरीर में सिहरन पैदा कर दी. उसने मोबाइल उठाया तो देखा कोई अपरिचित नंबर से कॉल कर रहा है!


“हलो...” नरेंद्र ने कॉल रिसीव की!


“हाँ, हैलो” एक भारी भरकम आवाज़! “नरेंद्र शर्मा बोल रहे हैं?”


“जी, मैं नरेंद्र ही बोल रहा हूँ...बताईये!”


“मैं संग्रामगढ़ पुलिस चौकी से इंस्पेक्टर पांडे बोल रहा हूँ!”


“जी..जि..बताईये..क्या बात है....??” नरेंद्र किसी अनहोनी की आशंका में घबराया हुआ सा बोला!


“लीजिये, अपनी वाइफ से बात करिए!”


“हलो..हलो..हाँ..हाँ..प्रभा..प्रभा, मैं नरेंद्र बोल रहा हूँ, क्या हुआ??”


उधर से जोर जोर से रोने की आवाज़ों ने नरेंद्र का दिल बैठा दिया. “हाँ..हाँ..प्रभा..क..क्या हुआ? तुम रो क्यों रही हो??


“स्तुति नहीं मिल रही है..सुबह उठे तो स्तुति का कहीं पता नहीं था, इधर उधर सब जगह पूँछे, कहीं नहीं है”, कहकर प्रभा फिर जोर जोर से रोने लगी.


“हलो..हलो..”


“हैलो, मैं पांडे बोल रहा हूँ, आपके यहाँ बाकी सभी लोग ठीक हैं, चिंता मत करिए, हम जल्द ही बच्ची का पता लगा लेंगे!” 


फ़िर रोते हुए नरेंद्र ने पिताजी को फ़ोन लगाया; बहुत देर तक दोनों तरफ से रोना और सिसकियाँ ज़ारी रहीं! नरेंद्र को पिताजी से ही पता चला कि नेटवर्क के चलते उनका फ़ोन सुबह से कहीं लग ही नहीं रहा था! “तो अब कैसे लग गया, जब मैंने मिलाया?” नरेंद्र की समझ में कुछ कुछ आ रहा था! उसने तुरंत पिताजी से फ़ोन प्रभा को देने के लिए कहा, और उसे जल्दी जल्दी रात को घटी घटना के बारे में सब कुछ बता डाला; ये चर्चा उसने पिताजी से न जाने क्या सोचकर नहीं की!


“नहीं, आप ऐसा कुछ मत करियेगा, मैं आपको खोना नहीं चाहती” प्रभा रोते हुए बोली!


“अपनी बच्ची के लिए मैं कुछ भी करूँगा, भगवान् हमारा साथ देंगे!!”


“तुम माता – पिताजी और नमन को लेकर पूजा गृह में ही रहना, सुन्दरकाण्ड और हनुमान चालीसा का पाठ करना, और देखना कि सुबह से पहले कोई भी पूजा गृह से बाहर न निकले, चाहे कुछ भी हो जाये!!” नरेंद्र एक ही साँस में प्रभा को सब कुछ समझाता चला गया।

नरेंद्र ने ठान लिया था कि वो “उसे” छोड़ेगा नहीं!!

रात हुई, मकान की सभी लाइटें बंद कर दी गयीं, ठीक ३ बजे नरेंद्र आईने के सामने एक मोमबत्ती जलाकर खड़ा हो गया!!


“ब्लडी मैरी...” उसने तीन बार पुकारा!!


अचानक खिड़की – दरवाजे जोर जोर से भाड़ – भाड़ की आवाज़ें करने लगे; नलों से पानी अपने आप निकलने लगा; बाथरूम में पानी भरने लगा!! नरेंद्र का दिल धाड़ – धाड़ जोर जोर से धड़कने लगा, इतना ज़ोर से जैसे बाहर आ जायेगा!


“हुआ..आ..आ..हीं..हीं..हीं” एक गुर्राहट के साथ, आईने में एक भयानक आकृति उभरी; “वही”, जिसका नरेंद्र को इंतज़ार था!


“मेरा बच्चा कहाँ है?” गुर्राती हुई वह आकृति बोली!


“मुझे नहीं मालूम!” “मेरी बच्ची मुझे वापस कर दे!” नरेंद्र न जाने किस शक्ति से उस आकृति पर गुर्राया!


“तूने मेरा रास्ता काटा, मैं तुझे नहीं छोडूंगी!!” कहकर वो आकृति आईने से बाहर आने लगी; किंतु जैसे ही उसने अपना सिर बाहर निकाला, नरेंद्र ने तुरंत ही हनुमान चालीसा का जाप शुरू कर दिया,


“जय हनुमान ज्ञान गुन सागर....जय कपीश तिहुं लोक उजागर....रामदूत अतुलित बलवाना....अंजनीपुत्र महासुतनामा......महावीर विक्रम बजरंगी....कुमति निवार सुमति के संगी.....”


नरेंद्र ने देखा कि जैसे जैसे वो हनुमान चालीसा पढता जा रहा था, वैसे वैसे आकृति आईने में वापस समां रही थी.

“सियावर रामचंद्र की जय!” “पवनसुत हनुमान की जय!”

जैसे ही हनुमान चालीसा ख़त्म हुई, नलों से पानी का बहना रुक गया, खिडकियों के भड़भड़ाने की आवाज़ें बंद हो गईं, और...और आईने में उस आकृति के पीछे नरेंद्र को स्तुति नज़र आने लगी!


नरेंद्र चीखा, “बेटे, हनुमान चालीसा पढ़ो, जल्दी..जल्दी...जय हनुमान ज्ञान गुन सागर..जय कपीश ...”

“पापा...पापा...मुझे ले चलो..पापा” आईने के अन्दर से रोती हुई, डरी हुई बच्ची बोली!


“बेटा हिम्मत करो..हिम्मत करो..तुम बहादुर हो बच्चे, उठो...याद करो..हनुमान चालीसा बोलो बच्चे...जय हनुमान ज्ञान गुन सागर..”


“जय हनुमा..न ज्ञान गुन सा..गर..जय क..पीश तिहुं लो..क उजागर...” पिता की लगातार कोशिशों ने बच्ची के अन्दर हिम्मत का संचार किया, या भगवान् की माया ने, ये बता पाना असंभव है; स्तुति ने हनुमान चालीसा का पाठ करना आरम्भ कर दिया.


“मैं तुम दोनों को नहीं छोडूँगी...मैं सबको मार दूँगी”, वह आकृति छेख्ती हुई बोली!


“तू कुछ नहीं कर सकती...भगवान् की शक्ति, शैतान से बड़ी होती है...छोड़ दे मेरी बच्ची को..नहीं तो मैं आईना तोड़ दूँगा, और तू हमेशा के लिए अंधेरों में भटकती रहेगी..तुझे तेरा बच्चा कभी नहीं मिलेगा!!”


“नहीं..ऐसा मत कर..मैं छोड़ दूँगी तेरी बच्ची को...मुझे जाने दे..जाने दे मुझे!!”


“ले छोड़ दिया तेरी बच्ची को...!!”


नरेंद्र ने देखा कि आईने में अब स्तुति कहीं भी दिखाई नहीं दे रही थी; पर उसे उस शैतान पर विश्वास नहीं था, इसलिए उसने आइने को तोड़ डालना चाहा! लेकिन फ़िर, उसके दिमाग में एक बात कौंधी कि “अगर आइने में स्तुति हुई तो...?” ये सोचकर उसने आइने को तोड़ने का विचार त्याग दिया!


और अगले ही पल उसने देखा कि आइना फिर से पहले जैसा हो गया था; तभी उसके मोबाइल की घंटी बजी!


“हलो...हलो...जी...स्तुति लौट आई है” रोते रोते प्रभा ने नरेंद्र को बताया. ये ख़ुशी के आंसू थे!


नरेंद्र समझ चुका था कि ये सब “ब्लडी मैरी” नामक खेल की वजह से ही हुआ था; बच्चों को दिन भर मोबाइल में चिपके रहने की आदत हो गयी थी, उसी में किसी तरह से बच्चे इस जाल में फँस रहे थे. उसे इसकी काट भी मिल गयी थी – “रुद्राक्ष!” इसकी वजह से ही “वो” न तो नरेंद्र को कोई नुकसान पहुँचा पायी, न ही उसके परिवार को!!

“फिर स्तुति को वो कैसे उठा ले गयी??”


शायद खेल के कुछ नियमों को बदला नहीं जा सकता! वो इसलिए भी कि सब कुछ जानते भी कोई क्यों इस खेल को खेलता है?? पर बच्चों को ये सब कहाँ मालूम; उनकी क्या ग़लती?? लेकिन उनके हाथों में मोबाइल थमाने वालों की तो है!!


पुलिस ने नरेंद्र की बातों का भरोसा कभी नहीं किया, न ही स्कूल वालों ने!! उसे पागल न घोषित न कर दिया जाए, इसलिए अब वो इस घटना का ज़िक्र किसी से नहीं करता. रोज नयी घटनाएँ सुनने में आती हैं; नरेंद्र को पता है कि ये सब कौन कर रहा है!


ऑनलाइन क्लासेज वैसे ही चल रही हैं; नरेंद्र ने सबको समझा दिया है कि “आवाज़ मत देना!!”

 


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