आत्म कथा
आत्म कथा
अक्सर हम सब ने देखा है माता के दरबार में दर्शन हेतु लंबी कतार लगी होती है, भक्तगण मनोहारी भजन व गीत गाकर अपने जोश को बढ़ाते हैं, व अपने नैनों की पिपासा को तृप्त करने की जिज्ञासा भी जताते हैं और दर्शन के पश्चात् क्या होता है, आखिर वह शांत और चुप क्यों हो जाते हैं।वह क्यों कहने लगते हैं, "हाँ भैया !आप भी आकर दर्शन का लाभ लो। " होली के समय मुझे भी बांके-विहारी के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। यूं तो मेरी कलम अपने ठाकुर जी की हमेशा से ही दीवानी है और तरह-तरह के गीत, भजन व पद उन्हें समर्पित करती है। किंतु ब्रज जाने के पश्चात् इस लेखनी को क्या हुआ, कुछ समझ नहीं आता, क्या हुआ है उसे,पता नहीं। आज मैं माँ शारदा व लेखनी से बहुत प्रार्थना के पश्चात् यहाँ कुछ लिखने जा रही हूँ जो मात्र आभास है या सत्य है, कुछ नहीं पता। वृंदावन का निधिवन जहाँ कुंज गली से होकर पहुँचते हैं। यमुना तट के समीप कदम्ब वृक्ष जहाँ आज भी कान लगाकर सुनने से ठाकुर जी की मधुर मुरली की धुन को सुनने का सौभाग्य मिलेगा।
आज भी यहाँ रात्रि में पायल के छन-छन की आवाज़ सुनाई देती है। ये ब्रज मंडल एक आध्यात्मिक संसार है। वास्तव में ये वो स्थान है "जो नहीं है वो ही तो है।"यही आभास होगा।यहाँ आकर जाने के पश्चात् मैं बहुत रोमांचित हो गई थी। निधिवन के तुलसी के पौधें जो वास्तव में गोपियाँ हैं। सब कुछ अद्भुत लग रहा था। रंग- महल राधा-रानी व ठाकुर जी का विश्राम कक्ष साथ ही श्रृंगार कक्ष दोनों ही है। ये सब मन में कौतूहल को ही जन्म दे रहे थें। इन सब के बारे में देखने-सुनने के पश्चात् हम वापिस अपने आश्रम आ गए।जल्द ही सभी सो गए। मगर उसके पश्चात् जो मेरे साथ हुआ, वह बहुत सोचने-विचारने का प्रभाव था या आभास मात्र था या पूर्ण सत्य था कुछ नहीं जानती।
मैंने देखा रंग-महल जहाँ बांके विहारी, राधा-रानी के केश को सजा रहे हैं, ऐसा माहौल था निधिवन का कि जैसे कोई भारी उत्सव होने वाला है। तभी दो गोपियाँ बाग के रास्ते रंग- महल की तरफ तेजी से आती हैं, उनके पैरों में मोटी-मोटी पायल व महावर से रंगे हुए, हाथों में भरी-भरी चूड़ियाँ व मेहंदी से सजी हथेलियाँ, हरे रंग का लहंगा जिसमें सोने की ज़री से बहुत ही खूबसूरत भारी कारीगरी की हुई थी।सिर पर आधा घूंघट, मात्र नाक व लाल होंठ नज़र आ रहे थें।तरह तरह के फूलों की खूश्बू व इत्र की महक पूरे बाग को सुगंधित कर रही थी।पूरा मधुबन फूलों से सजा हुआ था।सखियाँ राधा-रानी को आवाज़ लगाती हैं। "जल्दी करो, हमें देर हो रही है, समय निकला जा रहा है। "इसके बाद एक बड़ा चाँदी का कटोरा, उस कटोरे पर भी कारीगरी थी, यह कटोरा पूरा माखन से भरा हुआ था और ऊपर से मिश्री सजी हुई थी, तेजी से जैसे मेरी तरफ ही सरका दिया गया हो और मैं चेतना में पुनःआ गई।
भाग्यवान ब्रज वासी, दिये शरण गिरधारी। वंशी वट की छैया, है उर को सुखकारी। थाम श्याम जग नैया, तुम ही पालन हारी। तुम ही मोर विहारी, तुम ही हृदय बिहारी।