आशंका
आशंका


माया का हमारी कॉलोनी में प्रेस का छोटा सा दुकान था। वह घरों से प्रेस के लिए कपड़े इकट्ठा करती फिर प्रेस किये कपड़े दे जाती सभी घर वाले माया को अच्छे से जानते थे की वह मेहनती और ईमानदार है। माया की दस साल की बेटी मिनी जो पांचवी कक्षा में पढ़ती थी वह स्कूल से सीधे माया के पास आ जाया करती थी माया उसका खाना दुकान पर ही ले आती थी,मिनी खाना खाती थोड़ा आराम करती फिर पढ़ाई इसके बाद वो माया की मदद करती कपड़े लाने और छोड़ने में। माया, मिनी को समझाती की कपड़े लेने और छोड़ने जाती है तो कही रुकना मत,किसी घर में चॉकलेट वगैरह दे और अंदर बुलाये तो बिलकुल मत जाना,कहीं टीवी देखने मत बैठ जाना बस अपना काम करके आ जाया कर। । मिनी अपनी माँ की बात का अनुसरण करती थी दोनों माँ बेटी में बढ़िया सामंजस्य और तालमेल था। एक दिन शाम को माया मिनी को मारते हुवे दुकान की ओर लेकर आ रही थी मैंने पूछा क्या हुवा माया बच्ची को मार क्यों रही है?माया ने एक सांस में जवाब दिया दीदी इसे एक घर में कपड़ा लेने भेजी थी तो आने में देर होने पर मैं इसे देखने चली गयी तो रानी साहिबा भइया के साथ बैठकर टीवी देख रही थी,कुछ समझती नही ना दीदी, भाभी मायके गई है और भईया इसे बिस्किट देकर फिल्म दिखा रहे थे। दीदी आप ही बताइये कहाँ -कहाँ इसके पीछे जाउंगी,कहीं कुछ हो जाये तो मेरी फूल सी बच्ची का क्या होगा?दुनिया को तो मैं नही बदल सकती इसलिए इसे समझाती हूँ!माया बोलते जा रही थी और उसके आंसू बहते जा रहे थे मिनी चुपचाप अपनी माँ को देख रही थी। मुझे लगा माया के मन की आशंका सच ही तो थी।