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Seema sharma Pathak

Classics Inspirational

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Seema sharma Pathak

Classics Inspirational

आजादी में महिलाओं का योगदान

आजादी में महिलाओं का योगदान

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15 अगस्त 1947 के शुभ दिन हमारे भारत देश को अंग्रेजों से आजादी मिली थी।उसी आजादी को मनाने के लिए हम हर साल 15 अगस्त को स्वतन्त्रता दिवस के रूप में मनाते हैं और देश के उस प्रत्येक अमर शहीद को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं।अंग्रेजों के क्रूर शासन के चंगुल से अपने वतन को आजाद कराने के लिए देश का बच्चा बच्चा अपनी जान पर खेल गया था।भले ही अनगिनत वीरों ने अपने प्राणों की आहुति हंसते हंसते दे दी थी लेकिन बिना उन वीर महिलाओं के योगदान के ये आजादी की लड़ाई कभी पूरी नहीं हो पाती जिन्होनें कभी घर में रहकर तो कभी सड़कों पर उतरकर आजादी की लड़ाई में साथ दिया।

इसकी शुरूआत सर्वप्रथम राजघराने की महिला रानी चेन्नमा ने 1824 में अंग्रेजी सेना के विरूद्ध बिगुल बजाकर कर दी थी।1857 के स्वतंत्रता संग्राम में महारानी लक्ष्मीबाई के त्याग, बहादुरी और योगदान से कौन चिर परिचित नहीं है।रानी लक्ष्मीबाई से प्रभावित होकर रानी बेगम हजरत महल भी पीछे नहीं हटी बल्कि पूरे साहस के साथ दुश्मन का सामना किया।इंदौर की रानी अहिल्याबाई और रामगढ़ की रानी अवन्तीबाई भी देश की आन के लिए अपने प्राण देने से पीछे नहीं हटी।आखरी मुगल बहादुरशाह जफर की पत्नी ने भी आजादी की लड़ाई में अपना सहयोग देकर देशभक्ति का परिचय दिया।अगर अंग्रेजों की रसोई में काम करने वाली लज्जो गाय की चर्बी से बनने वाले कारतूसों की सूचना ना देती तो 1857 का स्वतंत्रता संग्राम छिढ़ता ही नहीं।बहादुरी का मिशाल उदा देवी ने भी पेड़ पर चढ़कर 32 सैनिकों को मारकर अपने साहस और देशप्रेम का डंका बजा दिया था।

तवायफ समुदाय की महिलायें जिनका समाज में स्थान बहुत ही निम्न कोटि का था, वह भी आजादी की लडा़ई में पीछे नहीं रही।लखनऊ की हैदरीबाई, अजीजनबाई और मस्तानीबाई ने एक टोली बनाकर स्वतंत्रता सैनानियों का योगदान दिया।वह अपने पेशे का फायदा उठाकर अनेकानेक जरूरी सूचना प्रसारित करती थी तथा कुछ सैनानियों को छुपने में मदद भी किया करती थी।उन महिलाओं की रग में भी भारत के लिए देशभक्ति कूट कूटकर भरी थी।

बीसवीं सदी की महिलायें जैसे उर्मिला देवी, बासन्ती देवी, सरोजिनी नायडू, दुर्गाबाई देशमुख के योगदान को कौन भूल सकता है भला।असहयोग आन्दोलन में सुचेता कृपलानी, राजकुमारी अमृतकौर, कस्तूरबा गांधी, कमला नेहरू और विजयलक्ष्मी पंडित गान्धी जी के साथ कदम से कदम मिलाकर चली और देश को आजादी दिलाने में अहम भूमिका का निर्वाह किया।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की इंडियन आर्मी में डॉ. लक्छमी सहगल ने चिकित्सक होने के बावजूद रेजीमेंट का नेतृत्व करके देश प्रेम और देशभक्ति का परिचय दिया।देश की आजादी में योगदान देने का कार्य कुछ विदेशी महिलाओं ने भी किया।1907 में मैडम भीकाजी कामा ने भारतीय झंडे को फहराकर लन्दन, जर्मनी और अमेरिका में आजादी की लड़ाई की आग में घी डालने का काम किया।

अनगिनत वीर महिलाओं और शहीदों की मांओं और पत्नियों के त्याग, समर्पण और साहस के कारण ही हमारा देश इतनी बडी़ लडा़ई जीत पाया। देश को आजादी दिलाने के लिए चूडी़ पहनने वाले हाथों ने बन्दूक उठाई, रोटी बेलने वाले हाथों ने तलवार उठाई, परिवार वालों का दंश सहा मगर स्वतंत्रता संग्राम में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और इतिहास के पन्नों में अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखवा लिया।कुछ महिलाओं के त्याग और बलिदान को वो सम्मान नहीं मिला जो मिलना चाहिए था लेकिन हमें उनके योगदान को भूलना नहीं चाहिए क्योकिं उन सभी महिलाओं का नाम लिये बिना आजादी की लड़ाई को याद करना या उसके बारे में बात करना अधूरा ही माना जायेगा।


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