देवर के लिए बिठा दो
देवर के लिए बिठा दो


भाभी प्लीज बताओ ना कैसी लगी आपको रागिनी? पसंद आई होगी ना? वो है ही इतनी प्यारी। भाभी आप बताओ ना मम्मी पापा और भैया से बात करोगी ना मेरी और रागिनी की शादी के बारे में?" नंदिनी के देवर शेखर ने पूछा तो नंदिनी बोली, "सच में देवर जी बहुत अच्छी लगी मुझे आपकी पंसद। अब तो रागिनी को ही बनाकर लाऊंगी अपनी देवरानी वादा है आपसे। आप बेफिक्र हो जाओ, आपके भाई और मम्मी पापा जी को मनाने का काम मेरा, लेकिन अभी कुछ दिन रुक जाओ। रमा जीजी की ननद की शादी हो जाये, आपके भैया आ जाएँ तब उनके सामने सबसे बात करूंगी।"
"भाभी सच में आप दुनिया की सबसे प्यारी भाभी हैं, सच कहते हैं लोग भाभी माँ का रूप होती हैं। आप मेरी भाभी ही नहीं सबसे अच्छी दोस्त भी हो।" शेखर ने खुशी से झूमते हुए कहा।
शेखर अपनी भाभी नंदिनी से अपने दिल की हर बात कह लेता था। दोनों हमउम्र थे तो दोनों की अच्छी बनती थी। शेखर के भैया गोविन्द रेलवे में सरकारी नौकरी करते थे तो दूसरे शहर में रहते थे। पहले तो नंदिनी भी वहीं रहती थी, लेकिन अभी 6 महीने से अपने सास ससुर के साथ रह रही थी। दो महीने पहले ही प्यारे से बेटे को जन्म दिया था।
नंदिनी सोच रही थी रमा जीजी की ननद की शादी पर जब गोविन्द आयेंगे तो उनके साथ चली जायेगी। अब तो उसने मां जी से सीख लिया है कि बच्चे को कैसे संभालना है और गोविन्द भी तो बेचारे 6 महीने से अकेले ही एडजस्ट कर रहे थे।
"शेखर, तेरे भैया का फोन आया है उसकी गाडी 1 घंटे में स्टेशन पहुँच जायेगी। मोटर साइकिल ले जा और बुला ला उसे। शाम को रमा के ससुराल के लिए निकलना है तुम तीनों को।" शेखर की माँ ने कहा।
"अरे मां, आप और पापा भी चलना ना। कितना कहा है दीदी की सास ने आप दोनों को लाने के लिए।"
"अरे छोरा, दिमाग तो ठीक है? बेटी के घर का पानी भी पियो तो नर्क मिलता है और तू अपने मां बाप को शादी में ले जा रहा है अपनी बहन के ससुराल?" नंदिनी की बुआ सास अंगूरी देवी ने कहा।
अंगूरी जी पुराने ख्यालात की महिला थीं। घर की सबसे बड़ी थीं, घर में उनकी बात कोई नहीं टालता था। शेखर के पापा को उन्होंने ही पाल पोसकर बड़ा किया था। बहुत ही छोटे थे जब उनकी मां का देहान्त हो गया था।
नंदिनी तैयारी कर रही थी, शाम को ननद के यहां जाना था। आज उसने गोविन्द की पसंद का खाना बनाया था, पूरे 1 महीने बाद घर आ रहे थे। नंदिनी बड़ी ही बेसब्री से अपने पति का इन्तजार कर रही थी। शेखर को भी गये बहुत समय हो गया था। बार-बार फोन मिला रही थी, लेकिन दोनों में से कोई फोन नहीं उठा रहा था। जैसे जैसे समय निकल रहा था, सभी घर वालों की बैचेनी बढ़ती जा रही थी। सबके मन में अजीब-अजीब ख्याल आ रहे थे। थोड़ी देर बाद ऐम्बुलेंस की आवाज आई और सब लोग दौड़कर बाहर की तरफ भागे। ऐम्बुलेंस में गोविन्द की लाश थी। ट्रेन पूरी तरह से रुक भी नहीं पाई थी और वह जल्दी में उतर रहा था जिसके कारण वह हादसे का शिकार हुआ। शेखर के लिए अपने भाई को इस तरह घर लाना दुनिया का सबसे कष्ट का काम था। मम्मी पापा और नंदिनी तो बेसुध ही हो गए थे। नंदिनी की दुनिया ही उजड़ गई थी और दो महीने के बच्चे के सिर से पिता का साया उठ गया था। गोविन्द के जाने के बाद हंसते खेलते घर में उदासी और खामोशी ने अपनी जगह बना ली थी। लापरवाह शेखर अब जिम्मेदार बेटा बन गया था। हरपल मुस्कुराती नंदिनी का चेहरा अब मुरझाने लगा था। नंदिनी हर वक्त गुमसुम रहने लगी थी।
गोविन्द को गये 6 महीने हो गये थे। नंदिनी के मम्मी पापा आज उसके ससुराल आये थे, अंगुरी बुआ जी ने बुलवाया था। शेखर और नंदिनी को भी वहीं बैठाया गया। बुआ जी ने नंदिनी के पापा से कहना शुरू किया "शर्मा जी नंदिनी आपकी बेटी ही नहीं, हमारे घर की बहु भी है। गोविन्द तो चला गया, इन दोनों का साथ शायद इतना ही लिखा था ईश्वर ने। लेकिन अभी उम्र ही क्या है बेचारी की? पहाड़ जैसा जीवन अकेले कैसे काटेगी? इसलिए मेरा तो यही फैसला है कि नंदिनी को उसके देवर के लिए बैठा दो। आपको सिर्फ बताने के लिए ही बुलाया गया है, 15 दिन बाद बडा़ ही शुुभ मुहुर्त है। उसी दिन इन दोनों का विवाह करवा दिया जायेगा। आप कहीं न कहीं अपनी बेटी की शादी तो करेगें ही, कहीं बाहर जायेगी तो हमारे बेटे को भी साथ ले जाएगी। इससे अच्छा है घर में ही रहेगी और इसका जीवन भी संवर जायेगा। वर्षों से यही होता आया है, इसमें कोई बुराई नहीं है।"
बुआ जी की बात सुनकर सभी लोग चुप बैठे थे, किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या बोलें।
बुआ जी ने शेखर से पूछा तो वह चुप रहा, उसने कोई जबाब नहीं दिया। फिर उन्होंने नंदिनी की तरफ देखा, नंदिनी ने अपने आंसू पोछे और बोली "बुआ जी आपके इस फैसले को मैं बिल्कुल भी नहीं मानती। शेखर भैया को हमेशा मैंने अपने छोटे भाई की तरह ही माना है, उनको पति का स्थान मैं कभी नहीं दे सकती। आप लोगों को मेरी फिक्र करने की जरूरत नहीं है, मैं ठीक हूँ। आप सब लोग हो ना मेरे साथ, शेखर मुझसे बिना शादी करे ही मेरे बेटे को पिता का प्यार दे सकते हैं और भविष्य में कभी मुझे लगा कि जीवनसाथी की आवश्यकता है और मैं मन से तैयार हूँ किसी को अपनाने के लिए तो मैं आप लोगो को बता दूँगी।"
फिर उसने अपने सास ससुर से कहा, "मम्मी जी पापा जी, शेखर भैया की शादी 15 दिन बाद उसी शुभ मुहूर्त में होगी, उस लड़की के साथ जिसे वह पसंद करते हैं। रागिनी नाम है उसका, इनके साथ पढती है। मिली हूँ मैं उससे, बहुत ही प्यारी लड़की है, उसको ही मैं अपनी देवरानी बनाकर लाउँगी। आप लोग शादी की तैयारी कीजिये, हम कल ही रागिनी के घर चलेंगे।"
नंदिनी की बात सुनकर सब निशब्द थे। बुआ जी कुछ बोलना चाह रही थीं, लेकिन शेखर के पापा ने उनको रोक लिया था। नंदिनी के मम्मी पापा को अपनी बेटी के फैसले पर गर्व हो रहा था और शेखर हाथ जोड़कर अपनी भाभी को धन्यवाद कर रहा था। नंदिनी ने आज एक सही फैसला लेकर तीन जीवन बर्बाद होने से बचा लिये थे और वर्षों से चली आ रही रुढि़वादिता को आगे बढ़ाने से इन्कार कर दिया था।