मैडम जी मुझे ठंड नहीं लगती
मैडम जी मुझे ठंड नहीं लगती
"भैया कृष्णा कॉलोनी तक चलोगे क्या? प्लीज मना मत करना, पहले से ही बहुत देर हो गई है। इतनी रात भी हो गई है, अब कोई रिक्शा भी नहीं मिलेगा। आप पैसे ज्यादा ले लेना प्लीज।"
अपने एनजिओ के काम से वापस घर आते हुए रीता जी ने कहा। काफी देर से रिक्शा तलाश रही थी, मिल ही नहीं रहा था। सर्दी के मौसम में तो वैसे भी 7 बजे ही कितना अन्धेरा हो जाता है।
"वैसे तो हमें जल्दी घर पहुँचना है मैडम जी, लेकिन पहली बार किसी ने हमसे इतनी इज्जत और प्यार से बात की है तो आपके लिए हम चलेगें, आइये बैठिये"। रिक्शेवाले ने कहा।
रीता जी रिक्शे में बैठ गईं और अपनी मंजिल की तरफ चल दीं। बहुत ठंडी हवा चल रही थी और रीता जी को गर्म इनर, जैकेट और शाल में भी ठंड लग रही थी। रीता जी सिकुड़कर बैठी हुई थी और रिक्शे वाले को देख रही थी। पतला सा स्वेटर और फटा हुआ मफलर पहन कर जल्दी-जल्दी रिक्शा चलाये जा रहा था। साथ ही एक थैला था उसके पास जिसे बार-बार सम्भाल रहा था। बहुत देर तक नोटिस करने के बाद रीता जी ने पूछ ही लिया "मैं बहुत देर से देख रही हूँ तुम बार-बार इस थैले को सम्भालने में लगे हो, ऐसा क्या है इसमें?"
तो उसने जवाब दिया "मैडम जी ठंड बहुत ज्यादा हो गई है, कई महीनों से पैसे जोड़ रहा था। आज अपने बच्चों के लिए गर्म कपड़े ले जा रहा हूँ। उनके स्कूल के लिए भी स्वेटर, टोपा और मोजे हैं इसमें और अपनी पत्नी के लिए भी एक शाल ली है। खुश हो जायेगी पिछले साल भी कह कहकर ही रह गयी थी बेचारी। इतना पैसा जोड़ ही नहीं पाया था।"
बहुत खुश हो रहा था वो, होता भी कैसे नहीं! आज घर में खुशियां भरकर जो ले जा रहा था उस छोटे से थैले में।
रीता जी ने फिर पूछा, "अपने लिए कुछ नहीं लिया तुमने? तुमको भी तो ठंड लगती होगी। कितनी हवा चल रही है देखो, कितना पतला सा स्वेटर पहन रखा है तुमने!"
तो उसने मुस्कराकर जवाब दिया "नहीं मैडम जी मुझे ठंड नहीं लगती"। मुझे तो आदत हो गई है इन हवाओं की और इस सर्द मौसम की।"
उसकी ये बात सुनकर रीता जी सोचने लगी सच में ये मर्द चाहे अमीर हो या गरीब, सबसे पहले अपने परिवार के बारे में सोचते हैं, अपने बारे में नहीं। कितनी मेहनत करते हैं अपने बीवी बच्चों की खुशी के लिए। मेरे पापा भी तो ऐसे ही हम सबके लिए कपड़े लाते थे। हर तीज त्यौहार
पर और सर्दियों का मौसम शुरू होने से पहले भी अपने लिए जब लेते थे जब मम्मी और हम बहुत ज्यादा जिद करते थे। एक बार शॉल भी लाये थे पापा जिसे मम्मी बड़ी शान से ओढ़कर बाहर जाती थी और अपनी सहेलियों को बताती थी कि रीता के पापा लाये हैं मेरे लिए।
"मैडम जी आपकी कॉलोनी आ गई, कहां उतरना है?" रिक्शे वाले की आवाज़ से रीता जी अपने ख़्वाबों की दुनिया से बाहर आ गई और बोली बस थोड़ा सा आगे और लेना है भैया। अपने घर पर उतरकर रीता जी ने रिक्शेवाले से कहा,"भैया आप कल दोपहर को मेरे घर आ जायेगें प्लीज़? मुझे बहुत ही जरूरी काम है।"
"ठीक है मैडम जी, आ जाउँगा" कहकर वो चला गया।
रीता जी घर पहुँच कर अपने पति के गले लगकर बोली, "थैंक्यू राघव जी, थैंक्यू फॉर ऐवरीथिंग"।
राघव जी ने कई बार पूछा कि क्या हुआ, लेकिन रीता जी यह कहकर चुप हो गई कि कुछ नहीं बस मन हुआ आपको थैंक्यू कहने का।
रीता जी को रातभर नींद नहीं आई और सुबह उठकर अपने और अपने पति के वो सभी कपड़े बाहर निकाले जो अभी दो या तीन बार ही पहने हैं। दोपहर हो गई, दरवाजे पर दस्तक हुई। रिक्शेवाले भैया ने आवाज लगाई, "चलिये मैडम जी कहां जाना है आपको?"
तो रीता जी ने कहा "कहीं नहीं, अन्दर आ जाओ तुम।"
वो अन्दर आ गया और रीता जी ने उसे बैठने के लिए कहा। वो जमीन पर बैठ गया, तो रीता जी ने कहा, "अरे भैया ऊपर ही बैठ जाइये, नीचे क्यों बैठे हो?"
बडी़ मुश्किल से वो सहमा-सहमा सोफे पर बैठा। रीता जी ने उसे पानी दिया और बोली, "ये बैग है, इसमें कुछ कपड़े हैं तुम्हारे और तुम्हारी पत्नी के लिए और ये तुम्हारे बच्चों के लिए। मेरे बच्चे तो बडे़ हो गये हैं और बाहर पढ़ते हैं, लेकिन आज ही खरीद कर लाई हूँ। पहनाना जरूर और हाँ ये कुछ कम्बल भी हैं। आज के बाद कभी मत कहना कि तुम्हें ठंड नहीं लगती, तुम भी इन्सान हो। अपना ख्याल रखोगे तभी तो अपने परिवार का रख पाओगे। ये कुछ मिठाई के डिब्बे हैं तुम्हारे बच्चों के लिए ठीक है, घर ले जाओ।"
बैग लेकर जाते हुए उस रिक्शे वाले की आँखों में आँसू थे क्योंकि आज उसने पहली बार मानवता का ऐसा रूप देखा था जिसने उसको इतना सम्मान दिया, उसकी परेशानी को समझा। रीता जी के मुख पर सन्तुष्टि की वो मुस्कराहट थी जो ये दिखा रही थी कुछ ही दिलों में सही लेकिन इंसानियत अभी जिन्दा है।