आहा... रेनबो डिलक्स
आहा... रेनबो डिलक्स
"माँ ! आप फ़िक्र मत करो, पापा की बरसी से पहले हम सब घर पहुँच जायेंगे !"
सबसे छोटी चंचल, चुलबुली निर्मला ने फोन पर गायत्री जी को आश्वास्त करते हुए कहा था। अभी डेढ़ साल पहले ही तो हुई थी निर्मला की शादी। उसके पहले यह छुटकी कितनी चंचल और बिंदास हुआ करती थी, और आज कैसे दादी अम्मा की तरह अपनी माँ को समझा रही है। कितनी मुश्किल से मानी थी शादी के लिए वरना निम्मी का बस चलता तो कभी अपने बाबुजी और अम्मा को छोड़कर कहीं नहीं जाती। बाबुजी की जान थी उनकी छुटकी निम्मी उर्फ़ निर्मला... जिसे दादी प्यार से कोखपोछनी बेटी भी कहा करती थी। मतलब सबसे आखिरी संतान।वो तो अच्छा हुआ कि घनश्याम जी अपने जीवनकाल में सारे बच्चों की ज़िम्मेदारी से फ़ारिग हो चुके थे।
अब घनश्याम जी की पहली बरसी थी सो सबको आना तो था ही। जब परिवार के सारे सदस्य मतलब दोनों बेटा बहू, दोनों बेटी दामाद, नाती पोते पोती, सब एक साथ इकट्ठे हुए तब गायत्री जी के जेहन में अतीत की कई यादों के साथ अपने पति घनश्याम जी की यादें भी जीवंत हो उठीं।वैसे उम्र के इस अंतिम मुकाम पर जीवनसाथी का साथ छूटने पर भी उसकी यादें,उसका वज़ूद इस तरह रूह में रिलमिल जाता है कि सशरीर साथ ना रहने पर भी अक्सर उनकी उपस्थिति का एहसास होता रहता है।गायत्री जी भी घनश्याम जी को हमेशा अपने साथ ही महसूस करती थीं।
आज सब एक साथ बैठकर कुछ आज कुछ कल और कुछ बहुत सालों पहले गुजरे हुए कल की बातें करते हुए जैसे एक नए ही दौर से पुराने जमाने को जोड़ने की कोशिश कर रहे थे।
गायत्री जी का भरापूरा परिवार था जो पिछले साल तक गायत्री जी और घनश्याम जी का परिवार कहलाता था।इस साल गायत्री जी अकेली रह गई थी क्योंकि एक साल पहले ही घनश्याम जी का देहांत हो चुका था जिसके हाथ थाम कर वह इस घर में आई थी वह अपनी जीवन लीला समाप्त कर जा चुका था।और परिवार के बाकी लोगों का इसकी जिम्मेदारी और घर की बागडोर अपनी पत्नी गायत्री जी के हाथ में थमा चुका था।
घनश्याम जी और गायत्री जी ने अपनी जीवन यात्रा तब शुरू की थी जब घनश्याम जी बमुश्किल से इक्कीस साल के थे।नए-नए आर.पी.एफ. में भर्ती होकर आए थे और जोश भी था, कुछ भी कर दिखाने का जज्बा भी भरपूर था।
इधर गायत्री जी की उम्र अट्ठारह साल थी और जमींदार परिवार की खाते पीते घर की लड़की गृहकार्य दक्ष तो थी ही।साथ ही आंखों में कई रंगीन सपने सजाए वह घनश्याम जी की पत्नी बन कर जब इस घर में आई तो सब ने नई दुल्हन को बहुत ही प्यार से अपनाया था।और उसे सब दुल्हन ही बुलाते थे यहां तक कि घनश्याम जी भी पूरी जिंदगी अपनी पत्नी को दुल्हन कहकर ही बुलाते रहे।
उनदोनों का छुटपन का प्यार आपस में सोच समझ कर किया हुआ प्यार नहीं था। वह तो एक शादी थी जिसे निभाना था और निभाते निभाते दोनों ने एक दूसरे को अपनाया था। और दो बेटे व दो बेटियों का चार बच्चों का सुंदर सा परिवार खड़ा किया था।
चारों बच्चों के दो दो बच्चे थे मतलब आठ नाती पोते हो गए अब गर्मी की छुट्टियों में सब इकट्ठे हुए थे तो जाहिर था कि,आम का मौसम था तो सब जमकर आम खाते और बचे हुए समय में बच्चे अपने गायत्री जी से कहानी सुनना और घनश्याम जी को याद करते थे।
उनकी छोटी बेटी निर्मला ने सोचा कि, आज माँ बाबूजी का कमरा साफ कर देते हैं ,और अब कुछ नई चीजें लगा देते हैं ।एक टीवी बैठक में था जिसमें गायत्री जी पुराने गाने पुरानी फिल्में देखना पसंद करती थी।लेकिन अब बच्चे आ गए थे। वह कार्टून देखते या वेब सिरीज देखते तो उन्हें थोड़ी मुश्किल होती थी।इसलिए सब बच्चों ने निश्चय किया कि एक नया टीवी खरीदा जाए और उसे माँ और बाबूजी के कमरे में लगाया जाए।
हालंकि बाबूजी अब नहीं रहे थे।
तो क्या... अभी भी वह कमरा बच्चों के लिए माँ और बाबूजी का कमरा ही था।
घर की सफाई करते हुए निम्मी पुराने टीवी को जो कपड़े से ढका हुआ था उसे हटाने लगी तो गायत्री जी ने अपनी दोनों बेटियों उर्मिला और निर्मला को कहा कि ,
"बेटा ! इस टीवी को यहीं रहने दो। इस टीवी के साथ तुम्हारे पिता की बहुत सी यादें जुड़ी हुई है। और उन यादों के सहारे ही मेरे दिन और रात कटते हैं।इसके अलावा इस टीवी से जुड़ी हुई एक छोटी सी बड़ी ही भावुक कहानी है , जो मैं जब भी याद करती हूँ,मुझे तुम्हारे पापा का प्यार याद आता है।और हम दोनों के इतने साल के वैवाहिक जीवन की सफलता का राज भी छोटी-छोटी बातों में ही छुपा हुआ है !"
जिस तरह भावनाओं में डूबकर सजल नयनों से गायत्री जी अपने पति को याद कर रही थी।उसे सभी बच्चों में उस टीवी के बारे में जानने की उत्सुकता बढ़ गई। टीवी पर से कपड़ा हटाते हुए निर्मला का बड़ा पोता अमन बोल पड़ा,"दादीमाँ !इस पर लिखा है 'रेनबो डीलक्स' इसका मतलब यह कलर टीवी था !" दादी हँसने लगी।"हाँ,मेरे बच्चे !उस जमाने में बहुत कम लोगों के घर में कलर टीवी हुआ करता था।और तुम्हारे दादाजी की कमाई बहुत कम थी।चार चार बच्चों का पालन पोषण और साथ में तुम्हारे परदादा परदादी भी हमारे साथ रहते थे।ऐसे में मैंने उनसे कहा कि,"अब सबके घर में टीवी आ गया है तो आप रोहिणी डीलक्स जो कि ब्लैक एंड व्हाइट टीवी कंपनी का नाम था,वह लेकर आईए !"लेकिन उन्होंने अपने ओवरटाइम के पैसे से बचाकर यह टीवी खरीदा था, यही "रेनबो डीलक्स" और पूरे मोहल्ले में सिर्फ एक हमारे घर में ही रंगीन टीवी हुआ करता था।इस टीवी के साथ और भी कितनी ही मीठी यादें जुड़ी हैं।जैसे कि साथ-साथ चित्रहार देखना, रामायण,महाभारत देखना। उनदिनों रामायण के पहले पूरे परिवार का नहा धोकर बैठ जाना अपने आप में एक इतिहास है।इस परिवार के सारे सदस्यों का मेलमिलाप का एक ऐसा जरिया है जिसकी वजह से सब एक साथ बैठक में बैठते थे और क्योंकि पूरे मोहल्ले में सिर्फ हमारे घर में ही रंगीन टीवी था तो बाहर के लोग भी आकर बैठते और उस समय रामायण देखने का जो चाव था वह आजकल किसी भी शो को देखने में नहीं देखा जाता है।सुबह से हम सब नहाधो कर बैठते।खूब सारी चाय बना ली जाती,दालमोठ बनाया जाता और अच्छे से खापी के खुश होकर रामायण देखते थे।पूरे समय मेरी सास और ससुर जी हाथ जोड़कर भगवान के सामने बैठते और बच्चे बाद में रामायण, महाभारत के पात्र की नकल उतारते थे। इसलिए यह टीवी सिर्फ टीवी नहीं है इस परिवार की विरासत है,एक इतिहास है। यादों की पोटली है जिसे मैं जब भी खोलती हूँ पुराने सारे चेहरे जीवंत हो उठते हैं !"
सबने गायत्री जी की दिल की भावनाओं को समझा और उन्होंने निश्चय किया कि,
"अम्मा !यह टीवी जहाँ है वही रहेगा।आप जो चाहेंगे जैसा चाहेंगी वैसा ही होगा !"
आज गायत्री जी को लग रहा था कि उनकी परवरिश कितनी सही थी जो बच्चे उनकी भावनाओं को समझ रहे हैं।यह टीवी भले ही पुराना है लेकिन इसके साथ की यादें हमेशा गायत्री जी के दिल में ताजी ही रहती हैं।
आज कई सारे मनोरंजन के साधन है पर तब यह टीवी सिर्फ गायत्री जी और घनश्याम जी के घर की ही नहीं बल्कि पूरे मोहल्ले के लिए मनोरंजन का साधन हुआ करता था,यह बात आज के लिए नई थी। और वर्तमान पीढ़ी इससे आपसी भाईचारे और भावनाओं से बुने हुए रिश्ते के मर्म को समझने की कोशिश कर रही थी।