Kumar Vikrant

Abstract

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Kumar Vikrant

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आधुनिक किस्सा तोता मैना , ऑनलाइन इश्क

आधुनिक किस्सा तोता मैना , ऑनलाइन इश्क

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"मैना रानी तुमने आदमी की औरत से बेवफाई का जो किस्सा सुनाया वो बहुत बकवास था, आदमी अक्सर औरतो की बेवफाई से दुखी होकर ही बेवफाई करते है.......तेरा किस्सा मैंने सुन लिया; लेकिन अभी इस ठंडी रात अंत बहुत दूर है इसलिए औरत की बेवफाई का एक मैं भी सुनाता हूँ; ध्यान लगाकर सुन........." पेड़ की डाल पर मैना से थोड़ा दूर बैठा तोता बोला।"

"सुना तोते राजा।" मैना हँस कर बोली।

"तो सुन.........."

देवधर जैसे साधारण इंसान को अब देवयानी जैसी बिंदास लड़की का ऑनलाइन इश्क बर्दास्त नहीं हो रहा था। इश्क की एक साल पहले वाली कशिश खत्म सी होती जा रही थी। शुरुआत का प्रेमालाप अब वाद-विवाद में बदल रहा था; दोनों अक्सर बहस कर बैठते और फिर हफ्तों बात नहीं करते, चुप्पी अक्सर देवधर ही तोड़ता लेकिन अब देवयानी ऑनलाइन आवारागर्दी करने वाले आदमियों की पोस्ट पर उनके साथ भद्दे मजाक करती मिलती थी।

ये देवधर जैसे स्वाभिमानी व्यक्ति के लिए दुखद था, जब उसने देवयानी से इस बारे में बात की तो उसने चिढ़कर जवाब दिया था, "मिस्टर देव हम-तुम अच्छी तरह जानते है कि मै कोई पर्दानशीन लड़की नहीं हूँ कि घर में छिप कर बैठूंगी, ऑनलाइन तुमसे मिली हूँ तो औरो से भी मिली होऊंगी, मिली हूँ तो उनकी पोस्ट पर थोड़ा-बहुत मजाक कर लिया तो कौन सा आसमान टूट पड़ा? और सुनो जो लोग ऑनलाइन आवारागर्दी करते नजर आते है वो असली जिंदगी में शरीफ ही होते है........और जो लोग ऑनलाइन शराफत का चोला ओढ़े फिरते है वो असली जिंदगी में भी उतने ही शरीफ होंगे ये तो वही जाने।"

गजब लॉजिक था ऑनलाइन आवारागर्दी को जस्टिफाई करने का।

आज देवधर को अचानक सरकारी काम से देवयानी के शहर आना पड़ा, आने से पहले उसने देवयानी को फोन करके उससे मिलने की बात की उसने खुद को शहर से बाहर होने की बात करके उससे मिलने में असमर्थता जाहिर की।

देवधर को यहाँ सिर्फ कुछ देर के लिए काम था इसलिए उसने एक सस्ते मोटल में नहा कर हेड ऑफिस जाने का इरादा किया। वो रजिस्टर में एंट्री कर ही रहा था कि उसे अपने पीछे एक औरत की हँसी सुनाई दी, वो किसी से कह रही थी कि, "दुग्गल साब इतने दिन का गैप करके मिलोगे तो आशिकी कच्ची पड़ सकती है.......तुम्हारी वजह से आज मैंने देवधर से भी मिलने से इंकार कर दिया........चलो अब तुम्हारे रूम में चलते है।"

आवाज देवयानी की थी, देवधर ने पीछे मुड़कर देखा तो देवयानी एक ऑनलाइन आवारागर्दी करने वाले दुग्गल नाम के आदमी के साथ मोटल के अंदर जा रही थी।

"तुम्हारे मोटल में बिना महिला-पुरुष का रिश्ता जाने उन्हें ऐसे ही ठहरने दिया जाता है?" देवधर ने रिसेप्सनिस्ट से पुछा।

"सर मंदी का दौर चल रहा है; मोटल के खर्चे निकलने के लिए महिला-पुरुष का रिश्ता जाने बिना उन्हें ठहरने दिया जाता है; जैसे वो बुड्ढा और उसकी जवान सहेली मस्ती करने गए अंदर गए है; आपका मूढ़ करे तो आप भी किसी को ले आना मस्ती करने के लिए, सिर्फ ५०० रुपए एक्स्ट्रा लगेंगे।"

"ठीक है......." कहकर देवधर अपने कमरे में चला गया।

उसे अभी तक विश्वास नहीं हो रहा था कि देवयानी उस बुड्ढे दुग्गल के साथ मोटल के अंदर किसी कमरे में मौजूद थी और न जाने क्या कर रही थी।

अचानक उसे देवयानी की वो टिप्पणी याद आ गई जो उसने शरीफ लोगो और आवारा लोगो के ऑनलाइन व्यवहार पर की थी। आज वो शरीफ आदमी और देवयानी मोटल के किसी रूम में कौन सी शराफत में उलझे होंगे ये सोच कर उसे आजतक देवयानी के साथ खुद की शराफत याद करके हंसी आ गई और वो अपने काम पर लग गया।

दो घंटे बाद वो अपने हेड ऑफिस जाने के लिए जैसे ही अपने रूम से निकला तो वो बुड्ढा दुग्गल और देवयानी हाथों में हाथ डाले मोटल के लॉन से निकलते दिखे। देवयानी उसे देख कर चौक पड़ी और गुस्से से लाल होती बोली, "तुम्हारी इतनी हिम्मत? पीछा कर रहे हो मेरा.........?"

"नहीं; मै यहाँ अपने काम से आया हूँ.......तुम्हारा पीछा क्यों करूँगा?"

"बकवास........ऑनलाइन बड़ी-बड़ी बाते करते थे; यहाँ नजर आ रहे हो इस घटिया मोटल में........" देवयानी लगभग चिल्लाते हुए बोली।

"कौन है ये?" दुग्गल ने गुर्रा कर देवयानी से पूछा।

"तुम्हारे जैसा ही है?" देवयानी गुर्रा कर बोली।

"आवारा बदचलन इसके साथ भी वही सब करती है, जो अभी मेरे साथ किया?" दुग्गल गुर्रा कर बोला।

"चुप कर बुड्ढे; तुझसे तो बाद में निपटूंगी अभी तो इस जासूस के बच्चे की अक्ल दुरुस्त कर दूँ........." देवयानी लगभग चीखते हुए बोली।

"इसे तो मै सही करता हूँ?" कहते हुए दुग्गल ने देवधर का गिरेबान पकड़ लिया।

"गिरेबान छोड़ और जाने दे मुझे........मुझे तुम दोनों से कुछ लेना-देना नहीं है, और तुम क्या निपटेगी मुझसे देवयानी, क्या लगती हो तुम मेरी जो मै तुम्हारा पीछा करूँगा?" कहते हुए देवधर ने अपना गिरेबान छुड़ाने की कोशिश की।

दुग्गल बुड्ढा जरूर था लेकिन उसकी पकड़ बहुत मजबूत थी, उसने देवधर का गिरेबान पकडे-पकडे उसे गाली देनी शुरू की, अब ये देवधर की बर्दास्त से बाहर था। उसने बिना बुड्ढे की उम्र का लिहाज किये उसे जुडो का एक दाँव लगाकर लॉन की सख्त जमीन पर पटक दिया। पटके जाने से बुड्ढे के मुँह से रोने की जोरदार आवाज निकली।

"क्यों मारा तुमने इसे?" देवयानी उस तड़फते बुड्ढे को देखते हुए बोली।

"वजह तुम्हे अच्छी तरह पता है; न वो मेरा गिरेबान पकड़ कर मुझे गाली देता न मुझसे मार खाता; ज्यादा तकलीफ हो रही है तो पुलिस कम्प्लेन कर दो.......फ़िलहाल मेरा रास्ता, अब अलविदा।" कहकर देवधर मोटल से बाहर निकल गया।

कहानी सुना कर तोता चुप हो गया तो मैना चिढ कर बोली, "तो तुम्हारे हिसाब से औरत अगर अपनी मर्जी से किसी के साथ मिल ली तो वो बेवफा हो गई? बेवकूफ ये आधुनिक दुनियाँ है यहाँ औरत को भी अपने तरीके से जीने की आजादी है; अगर किसी को मिर्च लगती है तो लगे। तूने औरत की बेवफाई की दास्ताँ सुना दी अब मुझसे मर्द की बेवफाई की दास्ताँ सुन।"


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