Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Romance Inspirational

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Romance Inspirational

आधी सैलरी

आधी सैलरी

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हम बूढ़े हुए व्यक्तियों के जीवन में अनेक कहानियाँ, अनुभव और सही गलत निर्णयों से ग्रहण की गईं सीखें होतीं हैं। यह भी सत्य है कि 50 वर्षों में दुनिया, समाज एवं संस्कृति में बहुत कुछ बदला होने से, बूढ़े व्यक्ति पुरातन विचारों के बताए जाते हुए, हाशिए पर डाल दिए जाते हैं। ऐसे में मैं भी अब समाज हाशिए पर हूँ। फिर भी कुछ ऐसी बातें लिखते रहता हूँ, जो कभी पुरातन नहीं होती हैं। वे बातें जो पुरातन होते हुए भी हमेशा प्रासंगिक होती हैं। 

ऐसी ही बातों में एक होता है पति-पत्नी का रिश्ता, विवाह संस्कृति सहस्त्रों - लाखों वर्ष पहले भी थी, आज भी चली आ रही है। ऐसे में, आज मैं अपने एवं अपनी पत्नी रचना के बारे में ऐसा लिखने जा रहा हूँ, जिसे पढ़ना आप पसंद करेंगे और मुझे विश्वास है, यदि आप अभी युवा हैं तो इससे कुछ अच्छा संदेश ग्रहण करके अपने वैवाहिक जीवन को अधिक सुखद बनाएंगे। 

यह बात सन् 1984 की है, हम दोनों के परिवार में हमारे विवाह की सहमति बन गई थी। रचना ने इसी वर्ष हरिसिंग गौड़ विश्वविद्यालय से एम. ए. (पोलिटिकल साइंस) की डिग्री प्रावीण्य सूची में स्थान पाते हुए अर्जित की थी। जब हम दोनों का विवाह होता तय लगने लगा तब रचना ने मुझसे पूछा था - क्या मुझे जॉब के लिए आवेदन करना चाहिए? 

मैंने उत्तर दिया था - मुझे नहीं लगता, आपको जॉब करने की आवश्यकता है। 

मेरे उत्तर के पीछे कारण यह था कि मैं इंजीनियर था और इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड में जॉब कर रहा था। यह सच था कि रचना को अपनी योग्यता के बलबूते तब स्कूल/कॉलेज में लेक्चरर की जॉब सरलता से मिल सकती थी। ऐसी स्थिति में हमारे विभाग अलग होने से, विवाह होने के बाद इसकी संभावना बन जाती कि हम दोनों, कई बार एक ही शहर में पदस्थ नहीं रहने से, अलग अलग रहने को बाध्य होते। 

रचना के डैडी, स्वयं पीडब्लूडी में इंजीनियर थे और रचना ने अपने डैडी के साथ, अपनी मम्मी जो जॉब नहीं करतीं थीं, का जीवन सुखद देखा था। यह लिखना प्रासंगिक होगा, रचना की मम्मी उस समय कार चलातीं थीं जब बिरली महिलाएँ ही कार चलाती देखीं जातीं थीं। इन कारणों से रचना को, मेरे कहने को नहीं मानने का कोई कारण नहीं दिखा। रचना ने उसके बाद फिर कभी मुझसे जॉब करने की बात नहीं की। 

मई 1986 में हम दोनों का विवाह हो गया। रचना सुघड़-निपुण गृहिणी की तरह घर में रहने लगी। मुझसे समय पर ऑफिस जा सकने में सहयोग करना एवं संध्या काल में मेरे घर लौटने की प्रतीक्षा करना उनकी दिनचर्या बन गई। जब बारी बारी हमारी दो बेटियाँ हुईं तब उनका उत्तम प्रकार से लालन-पालन भी रचना की दिनचर्या में समाहित हो गया। 

इतना लिखने के बाद, यह लेख लिखने के अभिप्राय पर आते हुए, मैं लिखना चाहता हूँ कि वर्षों व्यतीत हुए स्वयं मैंने यह अनुभव किया कि रचना में जो स्मार्टनेस एवं घर से बाहर होने के समय में जो आत्मविश्वास 1986 में था, वह गृहिणी रहकर घर में अधिकतर समय बिताने के कारण धीरे धीरे कम होने लगा, स्मार्टनेस तो शायद उतनी ही थी, मगर बाहर की दुनिया उनकी स्मार्टनेस की तुलना में बहुत आगे बढ़ गई थी। 

कई बार मैं किसी दार्शनिक या चिंतक के तरह विचार करने लगता हूँ। ऐसे में, मन ही मन मैंने माना था कि रचना के आत्मविश्वास एवं स्मार्टनेस बढ़ने में विराम का कारण मैं था। अगर मैं 1984 में रचना के जॉब के प्रश्न पर, उन्हें जॉब करने की सहमति देता तो कदाचित् रचना पीएचडी करतीं और आज किसी अच्छे कॉलेज में प्रोफेसर होकर एक आत्मविश्वासी महिला की तरह रह रहीं होतीं। 

मैं मन से यह मानता मगर मैंने इसे रचना पर कभी प्रकट नहीं किया था। ऐसे में यह कुछ वर्ष पहले की बात है, जब रचना ने दुखी होते हुए मुझसे कहा - अगर मैं भी जॉब करती तो धन अर्जन करने के कारण मुझमें भी अच्छा कॉन्फिडेंस होता। 

मैंने कहा था - आपको अपना आत्मविश्वास यूँ नहीं खोना चाहिए। मैं यह मानता हूँ जो मेरी सैलरी है उसमें आधी अर्निंग आपकी है। घर में रहकर आपने जिस सुघड़ता-निपुणता से गृहिणी के कर्तव्य निभाए हैं एवं दोनों बेटियों को मार्गदर्शन एवं यथोचित लालन-पालन करते हुए, मुझे घर एवं परिवार की ओर से निश्चिन्त कर रखा है, उसी से मैं अपने जॉब में दिन रात लगाया करता हूँ। वास्तव में आप ऐसी नहीं होतीं तो मैं इतना सब अचीव नहीं कर रहा होता। मेरी आधी सैलरी आप अपनी ही समझो। 

रचना मुस्कुरा बस दीं थीं। मैं समझ सकता हूँ, उस समय वह यह सोच रहीं थी, रहने दीजिए यह सब कहने की बात है। 

तब से जब भी कोई ऐसा अवसर आता, मैं यही डायलॉग मारता - रचना मेरी सैलरी में से आधी आपकी अपनी ही है। वह हर समय मुस्कुरा बस देतीं थीं। 

यहाँ मैं अपना एक अनुभव और लिख रहा हूँ। वह यह कि जब हम बार बार कोई बात कहते हैं, हम वैसा ही सोचने भी लगते हैं। तथा जैसा हमारे विचार में होता है, वैसे हमारे कर्म में झलकने भी लगता है। 

तीन वर्ष पहले 31 मार्च 2020 को मैंने सेवा निवृत्ति ग्रहण की। तभी कोरोना लॉक डाउन का समय भी आया, मुझे चिंतन करने का बहुत समय मिलने लगा। रचना से, ‘आधी सैलरी आपकी है’, यह बात सिर्फ कहने तक सीमित न रहे, यह प्रश्न मेरे विचार में रहता, मैं सोचता, जो स्वयं कमाता है वह क्या किया करता है? 

मुझे उत्तर मिलता - उसे कोई भी व्यय करने के लिए किसी से कुछ पूछने की आवश्यकता कम ही पड़ती है। 

मैंने ‘रचना की आधी सैलरी’ वाली बात को सिद्ध करने के लिए, व्यय करने के सारे अधिकार, अब मैंने रचना को दे दिए हैं। रचना अपनी बेटियों के साथ परामर्श करते हुए अब मेरे परिवार की 'नारी प्रमुख' बन गई है। 

मेरा क्या है जैसा मैंने ऊपर लिखा मैं ‘एक दार्शनिक’ की तरह तब भी सुखी था, अब भी सुखी हूँ। मेरे हाथ से मेरी हेयर-बियर्ड सेटिंग-कटिंग के अतिरिक्त कुछ भी खर्चने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। सिर में बाल भी न बराबर हैं तो अधिकतर उसे भी मैं स्वयं ही ट्रिमिंग कर लिया करता हूँ। अब जबकि आय-व्यय का अकाउंट रचना के जिम्मे है, मुझे इसका कोई मानसिक तनाव नहीं है। 

आप इस बारे में अपनी राय अवश्य लिखें, मेरे और रचना के ऐसे जीवन पर आप क्या सोचते हैं?  


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