आ अब लौट चलें
आ अब लौट चलें
अपना कार्य का चुनाव आज नीति को ही दुविधा में डाल रहा था।बार-बार रहकर यही ख्याल आ रहा था जिस मुकाम को पाने के लिए रात दिन एक कर दिया वह पाकर खुश क्यों नहीं थी।
सफल होकर भी आज वह मन के किसी अतीत कोने में असफल थी। रह-रहकर विचार उसके मन में आ रहे थे।
विचारों में वह डूबी ही थी कि माधव के पुकारते आवाज ने उसे चौंका दिया,"दीदी घर नहीं चलना जल्दी चलो।"
माधव उसका ड्राइवर था पर रौब जनाब के कम नहीं थे। पापा का सिर चढ़ा जो था।उसकी आज्ञा देती आवाज को सुन नीति उसे डांटना तो चाह रही थी पर थकान ने उसके मन को ही नहीं मुंह को भी अपनी गिरफ्त में ले रखा था।बिना उससे उलझे कार की पिछली सीट पर आंखें बंद कर कर बैठ गई।
आज उसका बेचैन मन सालों पहले लौट गया था।
नौवीं कक्षा में थी वह जब शांति मैडम ने पूछा था कि, "बच्चों क्या बनाना चाहते हो?"
सबका ध्यान से उत्तर सुनती नीति बेसब्री से अपनी बारी का इंतजार कर रही थी।अपनी बारी आने पर उसने चहकते हुए कहा ,"मुझे ड्रमर बनना है।"
उसका कहना ही था कि पूरी कक्षा बच्चों की हंसी गूज पड़ी।
शांति मैडम जी बस नीति का सपना सुनते ही उसे देखती रह गईं।शहर के प्रतिष्ठित परिवारों में से एक था नीति का परिवार।पिताजी सफल बिजनेसमैन होने के साथ-साथ स्कूल की ट्रस्टी भी थे। और नीति की मां शहर की सफल गायनेकोलॉजिस्ट।
विलक्षण प्रतिभा की स्वयं धनी नीति को जब मैडम ने डांटा," तुम्हें अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए ।"तो नीति की आंखों में आंसू आ गए थे।नीति के साथ दो मन और दुखी थे,उसकी मित्र चारू और शेखर के।
चारू तो बचपन से साथ ही नीति के और शेखर जो दो साल पहले ही कक्षा का साथी था, वह नीति के समान ही प्रतिभा का बहुमुखी रूप था।घर आकर उस रोज नीति का मन बहुत उदास था अगले दिन उसका जन्मदिन भी था।उसकी मां अपनी लाडली की इच्छा पूरी करने को हमेशा तैयार रहती थी तो इस बार पीछे कैसे हटती।जब उन्हें नीति की उदासी का पता चला तो उन्होंने जन्मदिन पर एक योजना तैयार करी।
सुबह जब नीति उठी तो एक शानदार ऑर्केस्ट्रा देखकर तो वह बिस्तर से कूद ही पड़ी।मां को बराबर में हंसता देख वह मां के गले लग गई।बस उस दिन से ऑर्केस्ट्रा भी उसका मित्र बन गया।
साथ ही उसने मम्मी से वायदा भी किया कि वह अपनी पढ़ाई पर ध्यान देकर भविष्य में उन्हें सफल होकर दिखाएगी।
चारू और शेखर भी उसकी तरह संगीत प्रेमी थे।तीनों मिलकर अक्सर सुर छेड़ देते।शेखर ने नीति के कोमल मन में कब अपनी जगह बना ली उसे पता नहीं चला।इंटरमीडिएट में आते ही नीति ने गणित और शेखर ने चारू की तरह जीव विज्ञान चुना।।
जिस दिन शेखर और चारों ने गणित से दूरी बनाई नीति भी उनसे दूर हो गई।नीति के लाख कहने पर भी दोनों ने विषय नहीं बदला दोनों को चिकित्सक बनने का भूत जो सवार था।उसे तो पापा की कंपनी जो संभालनी थी तो फिर भी फिर अपनी चुनी विषय के साथ अब शांत हो गई थी।
उस दिन घर आकर वह बहुत रोई उसको अब साफ दिख रहा था शेखर ने जीव विज्ञान नहीं चारु को चुन लिया था।उसने दोनों से दूरी बना ली।जिस दिन उसे चारू और शेखर साथ दिखते वह घर जाकर और ज्यादा पढ़ती।शेखर जब भी उसे देखता तो लगता कि उसकी मूक आंखें कुछ कहना चाहती हैं पर नीति को कहां समय था अब कुछ भी देखने का।
एक धुन सवार हो गई थी खुद को सर्वश्रेष्ठ साबित करने की।समय बीत रहा था। शेखर और चारू ने मेडिकल एंट्रेंस पास किया और नीति का तो कहना ही क्या इंजीनियरिंग की परीक्षा में देश में 20 वां स्थान पाया था।बधाई देने वालों में चारू और शेखर भी आए।चारु आते ही गले लगी घंटों दोनों बतियाते रहे।पता चला था उसे और शेखर को अलग-अलग मेडिकल कॉलेज मिला था।
नीति का मन यह जानकर क्यों इतना खुश था वह खुद नहीं जान पा रही थी।
शेखर भी आया उसे बस देखा भर और नीति की मां से मिल कर चला गया।आया ही क्यों था जब बात नहीं करनी थी नीति का मन बार-बार यही सोच रहा था।उसने फिर कभी शेखर से ना मिलने का निर्णय किया।अब तीनों की मंजिल अलग अलग थी समय भाग रहा था और साथ में भगा रहा था नीति को भी।इंजीनियरिंग पूरी की फिर मिल गया एमबीए करने का मौका।,चारु का भी मेडिकल पूरा हो गया था उस से ही पता चलता रहता शेखर के बारे में अब पीजी की तैयारी कर रहा था।
जब कभी वह सोने जाती तो लगता संगीत उसे पुकार रहा है पर उसने अब दूरी बना ली थी सबसे ।अचानक माधव की आवाज ने उसे वर्तमान में ला दिया।
आज वह अपने पापा की कंपनी में सीईओ थी।चारु अपनी प्रैक्टिस शुरू कर चुकी है थी और शेखर सफल सर्जन बन अपने कैरियर की बुलंदियों को छू रहा था।पापा भी नीति से बहुत खुश थे पर अक्सर उसे खोया देखकर सोच में पड़ जाते।एक दिन नीति को बुलाकर उन्होंने एक प्रोजेक्ट पर काम करने को कहा। और उसे वह जगह बताई जहां उसे टीम के साथियों से मिलना था।पता नहीं आज नीति का मन बहुत उदास था । बुझे मन से तैयार हुई।पापा की बताई जगह पर वह पहुंच चुकी थी।
वहां बहुत अंधेरा था वह धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी।अंदर हॉल में पहुंची तो आवाज आई ,"आ अब लौट चलें अपनी संगीत की दुनिया में।"आवाज सुनकर वह चौंकी ही थी कि हॉल रोशनी से नहा गया।वह सही पहचानी धी कि यह शेखर था जो मुस्कुरा रहा था।
वही गिटार लिए पास बैठी चारु हंस रही थी।उसे बेहद आश्चर्य हुआ जब उसने अपनी मम्मी-पापा को भी वही पाया।पास में उसका वही पुराना बचपन का साथी ऑर्केस्ट्रा रखा था।शेखर ने उसके पास आकर उसका हाथ अपने हाथों में लेकर धीरे से उसके कानों में कहा," क्या मेरे साथ जिंदगी का ड्रम बजाओगी।"
आंसुओं से भीगी अपनी मुदीं आंखों के साथ अब नीति शेखर की बाहों में थी।वह हॉल अब पापा मम्मी और चारू की तालियों से गूंज रहा था।