65
65
गुप्ता जी की कहानी हिन्दी में ही है॥ शीर्षक उन्हें ज़रूर 65 दिया है, कुछ आकर्षक बनाने को॥ बड़े मान सम्मान से उन्होंने सर्विस की , सुकून से सर्विस भी दागरहित लाकर छोड़ी . डरते डराते॥ असल में जमाना आज का और सरकारी सेवा. टेडे मेड़ें रास्ते, लोगों की बिगड़ी भ्रष्ट निष्ठायें , राजनीतिक दवाब, कर्मचारियों की नेता गर्दी, उन सारों की अपेक्षायें, अनेकऔडिट। सरकारी सेवा में अफ़सरी वो भी इंजीनियर पद की , थोड़ा मुश्किल तो होता है. ये पक्की बात है॥
कदाचित दोनों बेटों ने भी कुछ माहौल, कुछ डंडा कुछ प्रोत्साहन और बहुत सारी -माँ की केअर ने उन्हें बहुत समय पर निम्नतम आयु में क्लास वन सेवा में ला दिया. और अब तो जब गुप्ता जी और उनकी पत्नी 65 -62 के तलहटी पार कर गये हैं, बच्चे तरा -ऊपर के थे सो आज अब सीनीनियर पदों पर हैं॥अब तो उनके अपने नौनिहाल भी हैं॥अब ये भी देखें कि गुप्ताईन ने जहां दो बेटे ही जने, उनकी दोनों बहुओं ने भी बेटे ही जने॥ कभी कभी गुप्ता जी मूँछों पर ताव देते , सुनते थे … भाई हमारा डीएनए तो लड़के ही पैदा करता है॥( वैसे उनके मूँछें नहीं हैं, रोचकता के लिये कही है ये बात)। कुल मिलाकर गुप्ता जी को लोगबाग भाग्यशाली तो कहते हैं॥ उस वक्त में भी बड़ी बहू को भी अपने घर आने पर गुप्ताईन ने तैयारी करा उसे भी क्लास वन बना लिया था, वो दूसरी नहीं निकल पायी .अलग बात रही॥
सब की कहानी सब स्तर पर ठीक ठाक चलती रही है॥
समय गुजरे,
उसके रंग बदले,
शरीर करवटें बदले
कुछ नियमित
कुछ आकस्मिक ॥
गुप्ता जी ने यूँ कोई पोस्ट रिटायरमेंट कोई दूसरी कन्सल्टेंसी नहीं ली। मन और आदतों की सादगी और संतोषी प्रवृत्ति में शायद ज़रूरत भी नहीं थी और सरकारी सेवा काल के बंधनों के चलते अधूरे शोक भी अभी अधूरे ही थे, जिन्हें उन दोनों को पूरा भी करना था॥
सेवानिवृत्ति के अगले ही दिन से दूरस्थ भ्रमण , ट्रैकिंग और वो नहीं तो घर पर रहे तो गाना गाने , टहलने, लोकल सांस्कृतिक कार्यक्रमों को मंचासीन होते देखना॥
..
कहानी का दूसरा पटल, दूसरा भाव शुरू हुआ जब बुजुर्गियत की पहली सीढ़ी आँखों में मोतियाबिंद हुआ॥ गुप्ता गुप्ताईन ने अपनी व्यवस्थाओं में ही दोनों आँखों को सुधरवा लिया॥ बच्चे बहू दूर एकाध बार पूछ लिया कुशल क्षेम, वो भी सबने नहीं॥
एक साल बाद गुप्ता जी को हरपीस ने पकड़ लिया॥ बच्चों के संज्ञान म्ं बात आ भी गयी, लेकिन ऐसी कुछ मीठी वाणी के शब्द , कोई व्यवस्था नहीं बनी. आने की बात तो दूर॥ गुप्ता जी हरपीस के भयावह दर्दों के साथ कमर पेट के फोटो ही खींचते रहे, उन सब से उतरने का॥ ढेड महीने के बाद उन्हें अभी देखा टहलते घूमते॥ दो किलो वजन भी घटा दिखा ॥
..
लेकिन कुछ बदलाव , थोड़ी परिपक्वता सी दीखी॥
अब बात में बच्चों की चर्चाएँ कम दीखी, एक दिवा स्वप्न भी झलकता दिखा ..
काश
एक लड़की तो होती.
( अब में उनसे कैसे कहूँ कि अपनी छुपाऊ, जमाना बदल गया है, सब व्यस्त हैं अपने जीवन के संघर्षों में, दूरियाँ है, बच्चों की पढ़ाई यों के बोझ हैं, किस पर समय है)
…
काल चक्र के इस पड़ाव पर जब शरीर कमजोर होने लगता है ये मनोभाव हर एक उस पर आता है, जो जीवित रहता है, समझौते करता है, स्वयम् से, समय से, रिश्तों से॥
सब उजागर कर भी लें तो क्या पा लेगा कोई॥
..
वो
गुप्ता जी जो थोड़े स्वयम में सीमित रहते थे, कुछ अन्तरमुखी।
अब पड़ोसियों, हम उम्रों , स्थानीय सम्बन्धियों में झुकाव लाते दिख ख रहे हैं॥
जीवन में मथनी ऐसे ही चलती है, घी को ऊपर आना है तो जीवन की सच्चाइयों को सुहृदय स्वीकारते मस्त व्यस्त रहना है , उन सब नकारों को अनदेखा करते॥ तभी तो वो भी अपने पिता की तरह 94 तक पहुँच पाने का सपना देखते हैं॥
… गुप्ता गुप्ताईन बड़े निपुण हैं, वक्त के साथ चलने में॥
मुझे भी अब लगा वो हवा के दो झोंके आये ज़रूर,
लेकिन वो उन्हें और मज़बूत कर गये, अपनी नयी बची पारी के लिये॥