Navneet Gupta

Abstract

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Navneet Gupta

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टू बी ओर नोट टू बी

टू बी ओर नोट टू बी

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होना चाहिये या नहीं, ये सवाल रोज़ ज़हन में आता है अनेक मोकों पर अपन के॥

अपनी अपनी जरूरत , इच्छा और शौक़ के चलते हम उसे कार्यान्वित करते और सबको समझाते हैं॥

ये शीर्षक भी मैंने उठाया है TOI से जिसने मुझे उकसाया कुछ शब्दों में गढ़ने को॥ ये तो नायक अमिताभ सर ने क्रिकेट फ़ाइनल में अपनी उपस्थिति को लेकर कहा कि “ उन्हें डर लगता है कि मैं दर्शक दीर्घा में होउंगा को मेरे दिमाग़ में भरा है कि भारत हार जायगा॥ सो वो नहीं ही जायेंगे, और मैं और मेरे जैसे कितने ये सोचते होंगे कि कितने सुघड़ तरीक़े से यह कर अपने को बचा लिया -6 घंटे की जेल से-जब क्रिकेट को देखने का शौक ना हो॥ सेलेब्रिटीज़ के लिये यकीनन कितनी सामाजिक और उनके फ़ैन्स की अपेक्षाओं को विचाराधीन रखना पड़ता है॥

और उधर ही कहूँ कि कभी एक समय सहाराश्री राय, जिनकी एक समय के पटल पर कठोर हस्ताक्षरों की छाप थी, उनके अन्तिम पलों में पत्नी और दोनों पुत्रों की अनुपस्थिति ने छकझोर दिया , कुछ कुछ वो भूली हुई माँ और चोर की कहानी याद आ गयी॥

ये थी सम्भ्रांत पटल से शीर्षक से छूती शब्द यात्रा॥


इधर हम साधारण उम्रदराज़ को भी गुजरना झेलना और दुखी होना होता हैं- जहां कालक्रम ने स्थिति बना दी है, कोई समाधान नहीं, सिवाय समय बीतने, भूलने और सर पीटने का ही रह जाता है॥

दीवाली होली पर कुछ जीवन यात्राओं में रहे स्वजन बनों से कुशल क्षेम लेने का अवसर मिलता है - वहाँ भी अनेक को मायूस मनी दीवाली मिली जान अपन भी दुखी हुए !


एक के बड़े बेटे की बीबी अपनी बेटी के साथ जौब के चलते यूएस में हैं , उसका पति यही नोएडा में , उसे वहाँ का वीसा नहीं मिल रहा, पिछले तीन साल से कोई मिलन नहीं, सर्विस किसी को छोड़नी नहीं, आपसी समन्वय से तलाक़ भी नहीं ले रही,

…. कर लो क्या कर सकते हो,,, माँ बाप बेटा तीनों की ख़राब मायूस दीवाली चल रही है … बीते सालों से॥

एक वरिष्ठ श्रीवास्तव जी ..जो खुद दो साल से कैन्सर से भिड़े हुए हैं खुद को डैन्गू हो गया छ दिन पहिले दीवाली के , तलाकशुदा बेटी ही सम्भाल रही थी, दीवाली के एक दिन पहिले 58 साला भाई की एक महीने से ब्लड कैन्सर की जीतोड जेबतोड प्रयासों के बाद भी मौत हो गयी , परिवार अभी सिमटा नहीं 6-7 लाख का पानी और हाथ ख़ाली॥ आज 77 साला श्रीवास्तव जी सर पकड़ कर मौत, हस्पताल और बीती परेशानियों से जूझ रहे हैं॥

और ना जाने कितने ॥


होना चाहिये या नहीं के द्वन्द से जूझते अनेक मिल रहे हैं॥

.बस जिनका समय ठीक है, वो सकुशल अपनी यात्रा पूरी कर अपने गन्तव्य पर शुकून से पहुँच रहे हैं॥

…… और यात्रा है, वो चलने के लिये ही है॥



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